समाज

क्या भारत को आज सिकुड कर बैठना चाहिए?

डॉ. मधुसूदन

भारत को आज संसार से अलग सिकुडकर बैठने का अवसर नहीं है।
क्यों? जानने के लिए आगे पढें।

(एक) क्या विदेशी निवेश , सिकुडकर बैठने से संभव है?
मार्च-३-२०१७ का, वॉल स्ट्रीट जर्नल का आलेख आया है। जिस में भारत में निवेश को प्रोत्साहित किया है। कहा है India is the best country in Asia. निम्न कडी खोलकर देख लें।
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Mar 3, 2017 @ 04:20 PM 7,841 views
The Little Black Book of Billionaire Secrets
For Wall Street, India Is The Best Country In Asia
By –Kenneth Rapoza ,
Contributor
I cover business and investing in emerging markets.
Opinions expressed by Forbes Contributors are their own.
https://www.forbes.com/sites/kenrapoza/2017/03/03/for-wall-street-india-is-the-best-country-in-asia/#90eda1c430ce
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प्रश्न:
क्या ऐसा निवेश आज सिकुडकर बैठने से संभव था?
अवश्य, ऐसा निवेश, निवेशक आर्थिक लाभ, लक्ष्य कर ही करता है।
हम भी तो, हमारे लाभ के लिए ही निजी निवेश करते हैं।
और ऐसे परदेशी निवेशका लाभ हमें भी मिलेगा। हमारी बेकारी घटेगी; प्रजा को रोटी-रोजी मिलेगी। तो ऐसा निवेश लाने में कोई हानि नहीं है।
और दुनियासे लेन-देन का संबंध रखे बिना भी यह संभव नहीं है।

(दो) *कृण्वन्तो विश्वमार्यम्*
इसी विषय का, एक अलग पहलू हमारे शास्त्रों ने दिया हुआ *कृण्वन्तो विश्वमार्यम* का नारा भी है।
जिसका उद्देश्य था विश्व को सुसंस्कृत बनाने में योगदान करनेका। यहाँ आर्य माने उच्च चारित्र्ययुक्त संस्कारित मानव है। मुझे इस नारे में कोई संकीर्णता नहीं दिखती।
प्रश्न: समुद्र उल्लंघन पर प्रतिबंध लगाकर, घर बैठकर हम इस नारे के प्रति अपना कर्तव्य निर्वहन नहीं कर सकते। विश्व को आर्यत्व का आदर्श और कौन दिखाएगा? और आजके निकट आए हुए आधुनिक संसार में समुद्र उल्लंघन पर प्रतिबंध संभव ही नहीं है। ऐसा अव्यवहार्य सुझाव अधूरे चिंतन का परिणाम है। प्रवक्ता में प्रकाशित, कुछ आलेख इस प्रकार सिकुडनेका, जाने-अनजाने, प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष, संकेत देते प्रतीत होते हैं; इसलिए ऐसा प्रश्न खडा होता है।

(तीन) आज सिकुडकर बैठनेका अवसर नहीं है।
कम से कम, आज सिकुडकर बैठना गलत है। शायद सदा ही ऐसा सिकुडकर बैठना गलत है। पर इसका विचार छोड भी दे; तो; इतना निश्चित लगता है; कि, आज ऐसा सिकुडकर रहना गलत है। आज, सिकुड कर घर बैठने का अवसर नहीं, उलटे विस्तार से विश्वमें प्रभाव फैलाने का उचित समय है।
ऐसा अवसर गत कितने शतकों के बाद आया है। और भारत को इसका लाभ लेना चाहिए; और अपने प्रति सद्भाव बढाना चाहिए।
सद्‌भाग्य है हमारा कि हमारा समर्थ नेतृत्व यह जानता है।
मोदी जी का परदेश प्रवास और उसका फल बहुत बहुत अच्छा दिखाई दे रहा है। आपने अनेक देशों का प्रवास कर, चारों ओर भारत के प्रति सद्भाव बढाने का अभियान-सा चलाया है।
फलतः आज अनेक देशों में, भारत के प्रति सद्‌भाव बढ रहा है। बार बार परदेशी शासकों का भारत और भारतीयों के प्रति सम्मान में वक्तव्य, भारत की सराहना, इत्यादि इस वर्धमान सदभाव के द्योतक है।
और, अमरिका में भारत का सम्मान बढाने में प्रवासी भारतीयों का योगदान अनेक स्तरोंपर सफल है। पर इसी प्रक्रिया का दूसरा पहलू भी दृष्टिसे ओझल नहीं होना चाहिए। साथ पूरक है; हमारे प्रधान मंत्री का सारे विश्व में फैलता प्रभाव। जिसके अंतर्गत भारत को एक समन्वयकारी विश्व-शक्ति के रूपमें देखा जा रहा है। इसका भी श्रेय प्रधान मंत्री का ही है।

कुछ अपवादात्मक हिंसक घटनाएँ हो रही हैं। पर वे भी हमारे प्रवासी भारतीयों की सफलता पर, ईर्ष्या को अधोरेखित करती है। उनपर विचार अलग आलेख में किया जा सकता है।

(चार) सुसंस्कृत प्रतिनिधित्व चाहिए।
एक गौण पर महत्त्वपूर्ण पहलू पर विचार होना चाहिए। वो पहलू है; प्रवासी भारतीयों का परदेशों में, छोटे पैमाने पर सांस्कृतिक दूत जैसे कर्तव्यका। जाने अनजाने पर्त्येक प्रवासी भारतीय अपने व्यवहार से, भारत का संदेश देता है। उसके अच्छे-बुरे व्यवहार से भारत की साख जुडी हुयी है।
जितने संस्कारशील भारतीय प्रवासी बाहर आए हैं, अपने वैयक्तिक और व्यावसायिक प्रभाव के साथ साथ सुशिक्षित अमरिका का भारत के प्रति सद्भाव बढा रहे हैं। वस्तुतः ऐसा करने से उनकी अपनी व्यावसायिक सफलता भी होती है। और जब आप सार्वजनिक समस्याएँ सुलझाने में सहायक होते हैं, तो साथ साथ भारत के प्रति सद्भावना बढ ही जाती है।
वस्तुतः भारत के प्रति सद्भावना इस विशेष वर्ग का ही बडा योगदान है।
केवल धन के पीछे भागनेवाले स्वार्थी भारतीय द्वेष का भी कारण बन जाते हैं।

प्रवासी भारतीय जिस बस्ती में रहे; भाईचारे से रहे। आस पास युवाओं को इकठ्ठा कर पढाई में सहायता करें, लोगों से मिलजुल कर रहे। अपने बाल बच्चों को यदि अध्ययन में सहायता करते हैं, तो, पडोसियों के बच्चों को भी साथ साथ सहायता करें।
जानता हूँ, एक मित्र को, जो अपने तीन बालकों के साथ बसति के बालकों को लघोरी का खेल खिलाते हैं साथ, कहानियाँ भी सुनाते हैं। एक त्रिनिदाद से आए भारतीय अपने घर बच्चों को गणित सिखाते हैं। एक मध्यम वय के मेरे मित्र निवृत्त लोगों की घर-ग्रहस्थी की वस्तुएं लाकर देते हैं। रुग्णों की सहायता भी करते हैं।
संक्षेप में जब हम स्थानिक समस्याओं को सुलझाने में सहायक होंगे, तो किसी की आँख में खटकेंगे नहीं।

(पाँच) क्या आवश्यक है?
आवश्यकता है, विशेषतः शिक्षा के लिए, ऐसे परदेश जाने वाले प्रवासी भारतीयों को, भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने के लिए कुछ प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने की। ऐसे भारतीय संस्कार करने की, जिसके फलस्वरूप वें भारत का सही प्रतिनिधित्व कर सकें। कुछ अल्प मात्रा में ही सही, पर ऐसा *कृण्वन्तो विश्वमार्यम* के अनुरूप योगदान कर सकें।
इसके लिए भारत का शासन ऐसे भारतीय संस्कृति ज्ञान प्रदान करने योजना बनाए। हर प्रवासी भारतीय को बाहर भेजने के पूर्व; कोई संक्षिप्त पाठ्यक्रम हो।
वास्तव में आज भारत के प्रति, जो भी सद्भाव अर्जित किया जा रहा है; उसका योगदान करनेवाले कतिपय प्रवासी भारतीय राष्ट्रीय संस्थाओं से संस्कार पाकर आए हैं। इस गुटका बहुत भारी मात्रा में योगदान है।
इनकी संख्या बढनी चाहिए। इस दृष्टि से, शासन ने ऐसा संक्षिप्त पाठ्यक्रम स्थापित करना चाहिए जो प्रवासी भारतीय की मानसिक सिद्धता करवा ले।

आज सिकुडकर बैठनेका अवसर नहीं है।