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सिर्फ सिंदूर से क्या होगा,
आग अभी सीने में बाकी है।
खून में जो लावा बहता है,
उसमें हल्दी की तासीर बाकी है।
फिर से हवाओं को रुख देना है,
इंकलाब की आंधी बाकी है।
धधकते शोलों में रंग भरना है,
अभी मेहंदी की सरगर्मी बाकी है।
रास्तों पर बिछी हैं दीवारें,
पर हमारे इरादों की ऊँचाई बाकी है।
सिर्फ झांकी दिखी है दुश्मन को,
हमारी असली अंगड़ाई बाकी है।
सिंदूर से कह दो धीरज रखे,
अभी हल्दी का रंग बाकी है।
हम जिंदा हैं तो यह दुनिया है,
हमारे खून में बगावत की रवानी बाकी है।
- डॉ सत्यवान सौरभ