लोकतंत्र की जान है थू-थू !

आत्माराम यादव पीव

नर्मदापुरम दुनिया का सबसे विचित्र शहर है, इसकी विचित्रता के चर्चे होते है पर क्या विचित्र है उसके चित्र किसी के पास नहीं है, यानी दस्तावेजों में यहाँ के सारे विचित्र कार्य और योजनायों के स्वरूप बनते- बिगड़ते है जिसके लिए प्रदेश सरकार करोड़ों रूपये भेजती है। मसलन वर्ष-2012  में किसी ने सेठानी घाट के नीचे खोह होने की खबर फैला दी, करोड़ों रूपये खोह भरने के लिए आए, खोह की वीडियोग्राफी होने की बात हुई पर वीडियो विभाग उपलब्ध नहीं करा सका, जो खोह थी किसी को दिखी नहीं, दिखा खोह का डर जिसमे नहाते समय आदमी चला जाए तो लौट कर न आये, खोह के डर के कागज चले, किसी को खोह की थाह नहीं मिली पर जिला प्रशासन की टीम खोह भरने लग गई, कब कितनी खोह कैसे भरी सब राजनीति के कैनवास पर दिखाई दिये, असल में खोह की टोह न मिलने पर विभाग की जमकर किरकरी हुई लोग थू थू करने लगे। अनेक सार्वजानिक स्थानों, शासकीय भवनों में स्व्च्छता हेतु अनेक जगह थूकने के लिए कनस्तर रखे जाने की व्यवस्था कर यहाँ थूकिये लिखने का चलन है किन्तु विशुद्ध रूप से भ्रष्टाचार का कालिख जनता की आँखों में लगाने वालों के कारनामों पर थू- थू कर आक्रोश व्यक्त करने की भी व्यवस्था की जाना चाहिए और जानते समझते अनुचित को पोषित कर कुत्ते की पूंछ की तरह टेड़े रहने वालों के मन परिवर्तन हेतु एक सामाजिक चेतना जाग्रत हो की आइये आप भी थूकिये और हम भी थूकेंगे ,के आव्हान के साथ उन्हें गबन, धोखाधड़ी और आर्थिक अनियमितता के जाल नही बुनने देंगे?

दूसरी और देखा जाए तो थू थू को आप लोकतंत्र की जान समझ सकते हो। जो नेता अपने वोटरों की थू थू को श्रद्धा और प्रेम से अंगीकार नहीं करता वह असली नेता हो ही नहीं सकता है और राजनीति के क्षितिज को छूने वाले वे ही नेता बन सके जिन्होंने फैके गए थूक से अपनी राजनीति में रंग भरे है वे अपमान को झेलकर ही स्वार्थ के महलों तक पहुच सके है। राजनीति हो या पत्रकारिता यहाँ ज्यादा थूकने वाले पदों पर होते है। आप किसी भी टीवी न्यूज़ की बिना सिर पैर की बहसबाजी देख लीजिये जिसका न कोई अर्थ है न अर्थ निकलने वाला है. गरीबी की रेखा पर बहस करते हुए कब रेखा की गरीबी पर तर्क वितर्क का महाजाल बिछा दे दर्शक समझ ही नहीं पाता है कि किस ओर ज्यादा ज़ोर से थूका गया। खिलाड़ी, राजनेता, पत्रकार, व्यापारी सभी अपना मौल लगा रहे है, बाजार में उन्हें उनकी मुंह मांगी कीमत मिल रही है। लोग नालियों में नहीं थूकते वे तो पहले से भरी होती है, असल में थूकने वाले का थूकने के लिए मुह तब खुलता है जब उसे साफ-सुथरी सड़कें, चमचमाती दीवारें और नए सरकारी भवन हो। सुबह से देररात तक घरों से बाहर रहने वाले हजारों लोग है जो सुन्दर मुखड़े पिचके मुह से रंगभरी पिचकारी चलाकर कही भी किसी भी सडक, दीवार को अपना कैनवास समझते हुए थूक की गजब की पीक से चित्रकारी कर रहे हैं। कच्ची-पक्की, उधड़ी, साबुत, सरकारी या गैर-सरकारी कोई भी दीवार उनके लिए दीवार नहीं एक केनवास है।

कुछ पत्रकार नेताओं पर थू थू कर उनकी जन्मकुंडली से लेकर उनके किये गए कामों सहित उनकी गतिविधियों को रोज अख़बार में सिंगल डबल तिवल कालम में पूरी तस्वीर रखकर चर्चा में रहते है जबकि नेता के प्रति जनता 5 साल में एक बार ही थू थू कर पाती है और वे जनता की थू थू को अपने चेहरे पर ले लेते है बाबजूद जनता उन्हें फिर 5 साल तक मौका देती है ताकि वे थू थू करते रहे। देशवासी थू थू में इतने पारंगत हो चुके है जो चाय की दुकान हो या घर पर टीव्ही में देखकर ही सरकारों पर थूककर समस्याएँ हल कर लेते हैं। जहाँ तक थूकने का आव्हान की बात है तो आइये आप कागजी निर्माण कर भ्रष्टाचार, गबन, धोखाधड़ी के कृत्यों पर थूकिये। आप इन्हें कैसे पहचाने मसलन देखे नर्मदापुरम में हाल में पुराना बसस्टैंड बना, जो दुकानदार वर्षों से जहा है उसकी दुकान के 10 फीट आगे नाली खोदकर नाली का निर्माण कर बसस्टैंड की 10 फिट काम आने वाली भूमि एक षड्यंत्र के तहत दुकानदारों को समर्पित कर दि गई जबकि सालों पूर्व से इन दुकानों के पीछे पक्की नाली निर्माण होने के बाबजूद बसस्टैंड बनाने वाले ठेकेदार ने आगे नाली निर्माण कर करोडो रुपये की जमीन दुकानदारों को देकर बसों के आने जाने के मार्ग को सकरा कर गंभीर अपराध किया है जिसपर उसे बसस्टैंड निर्माण के ठेके की राशि का भुगतान करने की बजाय जो जमीन उनको मुफ्त दी है की वसूली की जाना चाहिए और इसी तरह सतरास्ता से ग्वालटोली रेलवे पुलिया सड़क निर्माण में एक और दुकानदारों को इसी प्रकार लाभ देकर कब्ज़ा कराकर साप्ताहिक बाजार की भीड़ पर अंकुश न लग पाने से इनके यह कार्य जनभावनाओं के विपरीत होने पर इनके खिलाफ थू थू का आव्हान हो की इनके द्वारा पैदा की गई समस्या पर इन्हें थू थू करे। ताकि थूकने की इनकी यह कला के चर्चे और इनकी प्रतिभा देश में ख्याति प्राप्त कर सके, इन्हें थूक प्रदर्शनकारी का दर्जा मिले ताकि ये थूके तो इन्हें थूके जाने का ठेका मिले और थूकने थुकाने का इनका कारोबार उन लोगों के खिलाफ असर कर सके जो पैसा कमाते समय अपने देश अपनी माटी के साथ गद्दारी कर लाभान्वित होते है।

अब देखिये न सरकार के विभागों में अधिकारी नही है, काम चलाने के लिए दैनिक वेतनभोगी को प्रभारी अधिकारी बनाया गया है, सरकार बाजारों की प्रमुख सड़कों से, नालों से अतिक्रमण हटाती है, दो घंटे बाद अतिक्रमण अपने पैरो से चलकर जहा से हटाया है वहा से दो कदम आगे बैठ जाता है। यानी जब से अतिक्रमण हुआ है हटाया गया, पर हटा नहीं और फ़ैल गया,मतलब इन प्रभारी अधिकारीयों के जिम्मे जो सेवा सौपी गई उसमें शहर दिनोंदिन सिमटता गया और इन प्रभारी दैनिक वेतनभोगीओं के पास सम्पति का अम्बार लगने के साथ कई मकान, बैंकों में खाते आदि की कमी नहीं और अधिकारी इनके दम पर अपने लिए भी कृषिफार्म, रिसोर्ट आदि अर्जित कर मनमानी करते से नही चुके। अब देखिये न सरकार के विभागों में अधिकारी नही है, काम चलाने के लिए दैनिक वेतनभोगी को प्रभारी अधिकारी बनाया गया है, सरकार बाजारों की प्रमुख सड़कों से, नालों से अतिक्रमण हटाती है, दो घंटे बाद अतिक्रमण अपने पैरो से चलकर जहा से हटाया है वहा से दो कदम आगे बैठ जाता है। यानी जब से अतिक्रमण हुआ है हटाया गया, पर हटा नहीं और फ़ैल गया। घर घर शराब पहुच सेवा हो रही है, मोहल्लों की गलिया चौराहे पर खुलेआम सट्टा जुआ चलता है, पुलिस रोकती है, रुक जाता है, पुलिस के जाते है फिर शुरू हो जाता है। मजे की बात है जिलों में पुलिस अधीक्षक जिले के सारे थानेदारों को महीने में एक दिन क्राईममीटिंग को बुलाते है, लोगों को लगता होगा क्राइम समाप्त हो गया या कम हो गया जबकि सारे क्राईमकरने वालों से वसूली कर मीटिंग में परदे के पीछे सौपने का काम चल रहा है, जंगल पहाड़ और नदिया के सौदे होते है वे मिट रहे है और मिटाने वाले मौज कर रहे है, जबकि यह अनुचित है, पर करने वाले कानून के रक्षक है, कानून उनके हाथ में है इसलिए यह सब चल रहा ठीक उसी तरह जैसे भवनों के समक्ष पीकदान रखी जाकर लिखा जाता है यहाँ थूकिये, पर वहां से गुजरने वाले सभी लोग थूकने नहीं है। थूकता वही है जिसे थूकना हो, तो यहाँ थूको। यों ‘यहाँ’ पर जोर है। यदि ‘यहाँ’ को आगे से उठा कर पीछे रख दिया जाय, तो उस पर जोर आ जाता है- ‘थूको यहाँ’ । इसी लिए ‘थूको यहाँ’ में मतलब बदल गया और ‘यहाँ’ पर जोर आ गया।”

घर घर शराब पहुच सेवा हो रही है, मोहल्लों की गलिया चौराहे पर खुलेआम सट्टा जुआ चलता है, पुलिस रोकती है, रुक जाता है, पुलिस के जाते है फिर शुरू हो जाता है। मजे की बात है जिलों में पुलिस अधीक्षक जिले के सारे थानेदारों को महीने में एक दिन क्राईममीटिंग को बुलाते है, लोगों को लगता होगा क्राइम समाप्त हो गया या कम हो गया जबकि सारे क्राईमकरने वालों से वसूली कर मीटिंग में परदे के पीछे सौपने का काम चल रहा है, जंगल पहाड़ और नदिया के सौदे होते है वे मिट रहे है और मिटाने वाले मौज कर रहे है, जबकि यह अनुचित है, पर करने वाले कानून के रक्षक है, कानून उनके हाथ में है इसलिए यह सब चल रहा ठीक उसी तरह जैसे भवनों के समक्ष पीकदान रखी जाकर लिखा जाता है यहाँ थूकिये, पर वहां से गुजरने वाले सभी लोग थूकने नहीं है। थूकता वही है जिसे थूकना हो, तो यहाँ थूको। यों ‘यहाँ’ पर जोर है। यदि ‘यहाँ’ को आगे से उठा कर पीछे रख दिया जाय, तो उस पर जोर आ जाता है- ‘थूको यहाँ’ । इसी लिए ‘थूको यहाँ’ में मतलब बदल गया और ‘यहाँ’ पर जोर आ गया।”

थूकने और थुकाने में मेरा शहर किसी से कम नहीं है। सरकार बेरोजगारी दूर करने में सक्षम नहीं है किन्तु जहाँ कही उनके किसी विभाग, अधिकारी पर करोड़ों का गबन अनियमिता उजागर हुई वकील-पुलिस इन लोगों पर थूकने वाले समाज और थुकाने वाले विभाग पर थूक के रंग रोगन को मिटाने के लिए जमकर खर्च करती है। अपने माँ बाप की जमीन जायदाद बेचकर शिक्षित होने वाले, अपने सपनों को होम करने वाले कर्मचारी के शिक्षित बच्चे रोजगार के अवसर न मिलने से बेकाम है अगर नर्मदापुरम से ही कोई संगठन बनाकर थूकने थुकाने का काम चालु करे तो इस शहर के वे सारे बेरोजगार जिनके फेफड़ों में थूक का सागर हिलोर मार रहा है वे सभी थूकने वाले पैसा लेकर थूकने का कारोबार शुरू कर सकते है, इससे सरकार को थूक रोको अभियान चलाने के लिए रोजगार की व्यवस्था करनी होगी, इससे जहाँ थूकने वाले कतार में या एकजाई एक स्थान पर थूक सकेंगे और थूक रोको वाले रोकेंगे? थूकने वाले संगठन के सामने आने पर सरकार को थूकने वालों और उनमें थूक के स्टाक आदि का व्योरा जुटाने में दिक्कत नही होगी और वह उसी अनुसार व्यवस्था मे जुट जायेगी। अभी कई सरकारी भवनों पर सरकार ने दीवारों पर लिखवा दिया है कि – ‘यहाँ थूकना मना है।’  सभी जानते है कि सरकार की और से कही भी ढुकने का नियम या विधान नहीं बनाया है उल्टे थूकते मिलने पर दण्ड का प्रावधान अवश्य है पर सरकार की कोई मानता नहीं है और थूकते हुए कभी कोई पकड़ाता नहीं है तभी तहसील, जिले, संभाग की बात छोडिये राजधानी में मंत्रालय तक की दीवारों को थूक की कला से सतरंगी धार चलाकर अजीव चित्रकारी को जीवंत देखा जा सकता है। 

आत्माराम यादव पीव

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here