अशोक कुमार झा
भारत में इंटरनेट सेवा के क्षेत्र में एक नया अध्याय शुरू हो गया है। टेस्ला और स्पेसएक्स के मालिक और विश्व के सबसे चर्चित उद्यमियों में से एक एलन मस्क की सैटेलाइट-आधारित इंटरनेट सेवा स्टारलिंक (Starlink) को आखिरकार भारत में काम करने का आधिकारिक लाइसेंस मिल गया है। यह सेवा अब उन क्षेत्रों में भी इंटरनेट प्रदान करने की दिशा में अग्रसर है, जहां अब तक केवल डिजिटल खामोशी थी।
क्या है स्टारलिंक और कैसे करता है काम?
स्टारलिंक दरअसल एलन मस्क की अंतरिक्ष अनुसंधान कंपनी SpaceX का एक प्रोजेक्ट है, जिसका उद्देश्य पृथ्वी के हर कोने में इंटरनेट पहुंचाना है, खासतौर पर उन दूर-दराज़ क्षेत्रों में जहां फाइबर ऑप्टिक या मोबाइल नेटवर्क का पहुंचना संभव नहीं हो पाता।
यह सेवा Low Earth Orbit (LEO) में स्थित हजारों छोटे उपग्रहों (satellites) के जरिए संचालित होती है। ये उपग्रह पृथ्वी से मात्र 550 किलोमीटर की ऊंचाई पर लगातार चक्कर लगाते हैं और एक-दूसरे से लेजर के माध्यम से जुड़े रहते हैं। जब कोई यूजर स्टारलिंक की सेवा लेता है, तो उसे एक स्टारलिंक टर्मिनल (एक प्रकार की डिश एंटीना) मिलता है, जो सीधे इन सैटेलाइट्स से जुड़ता है और इंटरनेट डेटा को भेजता और प्राप्त करता है।
ग्राउंड स्टेशन भी बनाए जाते हैं, जो उपग्रहों से सिग्नल प्राप्त करते हैं और उसे ग्लोबल इंटरनेट सिस्टम से जोड़ते हैं। इस पूरी प्रणाली के चलते स्टारलिंक बिना किसी फाइबर या केबल के – केवल खुले आकाश के सहारे – इंटरनेट सेवा प्रदान करता है।
स्टारलिंक की प्रमुख खूबियां
1. दूर-दराज़ क्षेत्रों में भी कनेक्टिविटी:
भारत जैसे विशाल और विविध भौगोलिक परिस्थितियों वाले देश में, जहां कई गांव अभी भी डिजिटल डिवाइड के शिकार हैं, वहां स्टारलिंक क्रांतिकारी साबित हो सकता है।
2. उच्च स्पीड और लो लेटेंसी:
स्टारलिंक की स्पीड 100–200 Mbps तक होती है और इसकी लेटेंसी (ping) भी अपेक्षाकृत कम है, जिससे यह गेमिंग, वीडियो कॉलिंग और हाई-स्पीड डाउनलोडिंग के लिए उपयुक्त है।
3. तेज़ डिप्लॉयमेंट:
जहां पारंपरिक इंटरनेट कंपनियों को नेटवर्क बिछाने में महीनों या सालों लग जाते हैं, वहां स्टारलिंक कुछ ही घंटों में सेवा चालू कर सकता है – बशर्ते टर्मिनल इंस्टॉल हो जाए।
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क्या हैं स्टारलिंक की चुनौतियाँ?
1. उच्च लागत:
स्टारलिंक की सबसे बड़ी चुनौती इसकी कीमत है। एक टर्मिनल किट की कीमत ₹60,000 से ₹80,000 तक हो सकती है और मासिक शुल्क ₹6,000 से ₹8,000 तक जा सकता है जो कि एक आम भारतीय उपभोक्ता के बजट से बाहर है।
2. मौसम पर निर्भरता:
खराब मौसम – विशेष रूप से भारी बारिश या तूफान – के दौरान कनेक्टिविटी प्रभावित हो सकती है क्योंकि यह तकनीक साफ आसमान पर निर्भर करती है।
3. भीड़भाड़ वाले इलाकों में सीमित प्रदर्शन:
जहां अधिक यूजर्स होंगे, वहां स्पीड में गिरावट आ सकती है क्योंकि बैंडविड्थ शेयर हो जाती है।
क्या भारतीय कंपनियों के लिए स्टारलिंक खतरा है?
इस समय भारतीय इंटरनेट कंपनियाँ – जैसे जियो, एयरटेल और वीआई – फिलहाल स्टारलिंक से ज़्यादा चिंतित नहीं हैं। इसकी वजहें साफ हैं:
· मध्यम वर्ग की प्राथमिकता: भारतीय कंपनियों की सेवाएं किफायती हैं और उन्होंने शहरी और ग्रामीण बाजारों में व्यापक नेटवर्क फैला रखा है। उनके पैकेज ₹500 से भी कम में उपलब्ध हैं, जबकि स्टारलिंक की सेवाएं अभी लग्ज़री कैटेगरी में आती हैं।
· स्थानीय प्रतिस्पर्धा की तैयारी:
जियो और एयरटेल दोनों ही सैटेलाइट-आधारित इंटरनेट सेवा लाने की तैयारी में हैं। जियो ने तो अपना “जियो-सैट” प्रोजेक्ट लॉन्च कर भी दिया है, जिससे जाहिर है कि भारतीय कंपनियां सतर्क हैं और मुकाबले के लिए तैयार भी।
· नीतिगत और नियामकीय फायदा:
स्थानीय कंपनियों को भारत सरकार के नियमों और नीतियों का बेहतर अनुभव है, जबकि स्टारलिंक को अभी कई चरणों से गुजरना होगा – स्पेक्ट्रम परीक्षण, लाइसेंस विस्तार, और सुरक्षा अनुमतियाँ।
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ग्राहकों को क्या होगा फायदा?
गांवों और सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए वरदान:
झारखंड, छत्तीसगढ़, लद्दाख, अरुणाचल जैसे राज्यों के दुर्गम इलाकों में जहां आज भी बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मोबाइल नेटवर्क के इंतज़ार में पेड़ों पर चढ़ते हैं, वहां स्टारलिंक उम्मीद की किरण बन सकता है।
आपदा प्रबंधन में उपयोगी:
बाढ़, भूकंप या अन्य आपदा की स्थिति में जब सामान्य नेटवर्क बंद हो जाते हैं, वहां स्टारलिंक जैसी सैटेलाइट सेवाएं त्वरित कम्युनिकेशन का जरिया बन सकती हैं।
सीमावर्ती और सैन्य उपयोग:
भारतीय सेना और सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी यह तकनीक विशेष महत्व रखती है क्योंकि यह दुर्गम और शत्रु-संवेदनशील क्षेत्रों में निर्बाध संचार की सुविधा देती है।
भविष्य की तस्वीर कैसी हो सकती है?
एलन मस्क का कहना है कि जैसे-जैसे सब्सक्राइबर्स की संख्या बढ़ेगी, वे सेवा की लागत को घटा देंगे। यदि ऐसा होता है तो आने वाले वर्षों में स्टारलिंक भारत के डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को नया आयाम दे सकता है।
भारत सरकार भी डिजिटल समावेश (Digital Inclusion) को बढ़ावा देने के लिए नई तकनीकों को सहयोग देने के पक्ष में है। ऐसे में यदि सब कुछ योजना के अनुसार चलता है, तो आने वाले दशक में भारत के हर गांव में आकाश से इंटरनेट उतरता दिखाई दे सकता है।
स्टारलिंक भारत के लिए “मेक इन इंडिया” की चुनौती भी है और “डिजिटल इंडिया” का अवसर भी। यह सेवा अगर सस्ती होती है और स्थानीय ज़रूरतों के मुताबिक ढाली जाती है, तो यह न केवल भारत के लाखों गांवों को इंटरनेट से जोड़ सकती है, बल्कि एक नई डिजिटल क्रांति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
लेकिन फिलहाल यह सेवा आम भारतीय की पहुंच से बाहर है। आने वाला वक्त बताएगा कि स्टारलिंक “इंटरनेट का भविष्य” बनती है या सिर्फ एक चमकता हुआ सपना ही रह जाती है।
अशोक कुमार झा