कविता साहित्य उर में आता कोई चला जाता ! February 10, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment उर में आता कोई चला जाता, सुर में गाता कभी है विचलाता; सुनहरी आभा कभी दिखलाता, कभी बे-रंग कर चला जाता ! वश भी उनका स्वयं पे कब रहता, भाव भव की तरंगें मन बहता; नियंत्रण साधना किये होता, साध्य पर पा के वो कहाँ रहता ! जीव जग योजना विविध रहता, विधि वह उचित […] Read more » उर में आता कोई चला जाता !