व्यंग्य साहित्य मैं जब भ्रष्ट हुआ February 24, 2017 / February 24, 2017 by वीरेन्द्र परमार | Leave a Comment वीरेन्द्र परमार मेरी नियुक्ति जब एक कमाऊ विभाग में हुई तो परिवार के लोगों और सगे – संबंधियों को आशा थी कि मैं शीघ्रातिशीघ्र भ्रष्ट बनकर राष्ट्र की मुख्यधारा में जुड़ जाऊंगा लेकिन आशा के विपरीत जब मैं एक दशक तक भ्रष्ट नहीं हुआ तो सभी ने एक स्वर से मुझे कुल कलंक घोषित कर […] Read more » Featured भ्रष्ट भ्रष्ट होना एक राष्ट्रीय उत्सव भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार मुक्त समाज