धर्म-अध्यात्म “आध्यात्मिकता रहित भौतिक सुखों से युक्त जीवन अधूरा व हानिकारक है” September 28, 2018 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on “आध्यात्मिकता रहित भौतिक सुखों से युक्त जीवन अधूरा व हानिकारक है” मनमोहन कुमार आर्य, मनुष्य मननशील प्राणी है। मनुष्य अन्नादि से बना भौतिक शरीर मात्र नहीं है अपितु इसमें एक अनादि, नित्य, अविनाशी, अमर, अल्पज्ञ, जन्म-मरण धर्मा, शुभाशुभ कर्मों का कर्ता व भोक्ता जीवात्मा भी है जो इस शरीर का स्वामी है। आश्चर्य है कि अधिकांश शिक्षित व भौतिक विज्ञानी भी अपनी आत्मा के स्वरूप व […] Read more » ईश्वर धार्मिक राजधर्म सच्चिदानन्दस्वरूप सर्वव्यापक सामाजिक
धर्म-अध्यात्म राजधर्म वा सुशासन का आधार वेद व वैदिक धर्म October 4, 2017 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य संसार में दो सौ से कुछ अधिक देश हैं। सबकी अपनी अपनी आन्तरिक एवं बाह्य नीतियां व सिद्धान्त हैं। इन्हें हम गृह व विदेश नीति भी कह सकते हैं। अन्य नियम भी होते हैं जिनसे देश मे राजव्यवस्था स्थापित रहती है। यह नियम दूसरे देशों का अध्ययन कर व कुछ विशेषज्ञ व्यक्तियों […] Read more » राजधर्म वैदिक धर्म सुशासन का आधार वेद
चुनाव राजनीति चाणक्य की दृष्टि और राजधर्म निभाने की भारतीय परंपरा May 2, 2014 by कन्हैया झा | Leave a Comment -कन्हैया झा- पिछले चुनावों में आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेताओं पर स्याही फेंकना, मुंह पर थप्पड़ मारने आदि जैसी घटनाएं भी हुई. जिस पर सोशल नेटवर्किंग फेसबुक, ट्विटर आदि पर अनेक लोगों ने नेताओं की खिल्ली भी उड़ाई. आम चुनाव असभ्य जनता के लिए खिलवाड़ हो सकते हैं लेकिन भारत जैसे प्राचीन सभ्यता वाले […] Read more » राजधर्म राजनीति वर्तमान राजनीति
विविधा राजधर्म से बड़ा है बौद्धिकधर्म January 17, 2011 / December 16, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment जगदीश्वर चतुर्वेदी बुद्धिजीवी सत्य भक्त होता है। राष्ट्र,राष्ट्रीयता, दल,विचारधारा आदि का भक्त नहीं होता। सत्य के प्रति आग्रह उसे ज्यादा से ज्यादा मानवीय और संवेदनशील बनाता है। सत्य और मानवता की द्वंद्वात्मक प्रक्रिया में तपकर ही बुद्धिजीवी अपने सामाजिक अनुभवों को सृजित करता है। कालजयी रचनाएं दे पाता है। जनता के बृहत्तर तबकों की सेवा […] Read more » Rajdharma राजधर्म