विविधा

भारतीय ”बॉन्साई पौधे”

डॉ. मधुसूदन उवाच

(१) किसी वृक्ष का, विकास रोकने का, सरल उपाय, क्या है? माना जाता है, कि वह उपाय है, उस के मूल काटकर उसे एक छोटी कुंडी (गमले) में लगा देना। जडे जितनी छोटी होंगी, वृक्ष उतना ही नाटा होगा, ठिंगना होगा। जापानी बॉन्साइ पौधे ऐसे ही उगाए जाते हैं। कटी हुयी, छोटी जडें, छोटे छोटे पौधे पैदा कर देती है। वे पौधे कभी ऊंचे नहीं होते, जीवनभर पौधे नाटे ही रहते हैं। पौधों को पता तक नहीं होता, कि उनकी वास्तव में नियति क्या थी?

(२ ) कहते हैं कि धूर्त ठग भी, ऐसे ही ठगता है, आप ठगे जाते हैं, ऐसे कि, आपको मरते दम तक, (और मरने के बाद तो पता कैसे चलें?) कभी ”ठगे गए थे ” ऐसी अनुभूति क्या, शंका तक, नहीं होती। किंतु जब , ठगोंके प्रति, अनेक देश बांधवों को, जब ”अहोभाव” से भी अभिभूत पाता हूं, तो लगता है, कि, ठग बहुत ही चालाक था। सैद्धांतिक रीतिसे, हर विपत्तिसे कुछ लाभ अवश्य होता ही है, यह लाभ कालानुक्रम से हर कोई राष्ट्रको होता है, और इस लाभ को उपलब्ध कराने में इस परतंत्रता का भी कुछ योगदान मानता हूं।

पर ऐसा लाभ तो जैसे जैसे विज्ञान विश्वमें आगे बढते गया, हर एक देश को, प्राप्त होता गया। वैसे विज्ञान को आगे बढाने में भी हिंदु अंक गणित का योगदान माना गया है।==”जिस के बिना कोई भी वैज्ञानिक आविष्कार संभव ही न था,”== ऐसा मत, ट्रॉय स्थित, रेनसेलर इन्स्टिट्यूट के स्ट्रक्चरल इंजिनीयरिंग के प्रोफ़ेसर किन्नी (जो भारतीय नहीं है) मानते हैं। { विषय, किसी दूसरे लेख में विस्तार से लिखूंगा}

पर वैसे, अंग्रेज़ बहुत चालाक और धूर्त था, उसने हमारी मानसिक जडें काटी। और हम, अपनी गौरवशाली परंपराएं भूलकर, झूठे इतिहासकी पट्टी पढ पढ कर, तोताराम बन गये।

(३) कुछ संदर्भों के आधारपर अब प्रकाशमें आ रहा है, कि, अप्रैल-१०-१८६६ के दिन रॉयल एशियाटिक सोसायटी की गुप्त बैठक (मिटींग) उनके लंदन स्थित कार्यालय में हुयी थी। इसके कुछ प्रमाण भी उपलब्ध हुए हैं। { धीरे धीरे और भी कुछ उपलब्ध होता रहेगा } इस मिटींग में भारत की बुद्धि भ्रमित करने के लिए षड्यंत्र रचे गए थे। उसका एक भाग आर्यन इन्वेजन थियरी ( भारत में सारे भारतीय बाहरसे घुसे हुए हैं।)था। जिस के परिणाम स्वरूप कोई भारतीय {जो स्वतः बाहरसे आया होने से} यह ना कह सके, कि अंग्रेज़ परदेशी है, पराया है।

एक ”एडवर्ड थॉमस” नामक धूर्त पादरी ने थियरी के घटक-अंग प्रस्तुत किए, और कोई -”लॉर्ड स्ट्रेंगफोर्ड” अध्यक्षता भी कर रहा था। भारतको ब्रेन वाश करने का षडयंत्र भी उसीका भाग था। वैसे संसार भरमें अतुल्य संस्कृति की धरोहर वाले भारत को, गुलामी में दीर्घ काल तक बांधे रखना, कितना कठिन है, यह बात, अंग्रेज़ को १८५७ के स्वतंत्रता के युद्ध के कडवे अनुभव के परिणामों से पता चली थी। मैं मानत ा हूं, कि, इस लिए यह ”ब्रेन वॉशिंग” का षड्यंत्र आवश्यक था।

(४) दुर्भाग्यसे, स्वतंत्र होकर ६३ वर्ष बीत चुके, पर अब भी हमारा सामान्य नागरिक, उस अतीत की परतंत्रता से प्रभावित, मानसिक दासता, गुलामी, और उस से जनित हीनता (Inferiority Complex) ग्रंथि से पीडित हैं। पहले अंग्रेज़ राज करते थे, अब अंग्रेज़ी राज करती है, अंग्रेज़ियत राज करती है। गोरे अंग्रेज़ राज करते थे, अब काले अंग्रेज़ राज करते हैं। गुलामी की मानसिकता से पीडित समाज, ”लघुता ग्रंथि” को ही ऐसे संभाले रहा है, जैसे वही सबसे बडी मूल्यवान वस्तु हो।

(५) आत्म विश्वास का खोना, पुरूषार्थ बिना का जीवन, पराक्रम में विश्वास खोना, इत्यादि उसीके लक्षण है। साथमें बिना काम किए, बिना योगदान दिए, भ्रष्टाचार द्वारा एक रातमें धनी हो जानेकी इच्छा रखना भी उसीका परिणाम है। यह तो कपट पूर्ण व्यापार है।

(६) स्वतंत्रता को अंग्रेज़ीमे Independence कहते हैं। जो दूसरोंपर Dependent {निर्भर) नहीं है, वही Independent {स्वतंत्र} है। हमें तो हर इज़्म; {कम्युनिज़्म, सोशियलिज़्म, मायनोरिटिज़्म,—-इत्यादि} शासन पर ही (Dependent), निर्भर बना कर पंगु बना देते हैं।

पर हम यह नहीं सोचते, कि, Dependent फिर Independent कैसे हुआ?

(७) अपने लोगों के प्रति, द्वेष-या मत्सर की अभिव्यक्ति, अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूपसे उसी का निदर्शक है। एक घटना, हमारे गुलामी की प्रस्तुत है।

मेरे एक रसायन शास्त्र के प्रोफेसर (जो मिलीयन डॉलरों की ग्राण्ट वॉशिंग्टन से पाते हैं।) मित्रनें, सुनाया हुआ घटा हुआ, अनुभव है।

एक लब्ध प्रतिष्ठ भारतीय शोध कर्ता भारत, वहां युनिवर्सीटियों में, एक प्रयोग (Demonstration) दिखाने के लिए अपने सहायक गोरे, टेक्निशीयन के साथ जाता है।दिल्ली, हवाई अड्डे पर स्वागत के लिए, कुछ कर्मचारी हार और फूलोंका गुच्छ लेकर भेजे जाते हैं। किंतु, जब वे देखते हैं, कि, एक गोरा भी आया है, तो उसे ही प्रोफेसर मान हार उसे ही पहना देते हैं, और सच्चे प्रोफेसर को गुच्छ अर्पण किया जाता है। गोरा मना करने पर, वे उसकी शालीनता मान लेते हैं, शायद उसके उच्चारण भी समझ नहीं पाते।

(८) परायों के अंध-अनुकरण (लाभहीन अनुकरण) से पीडित समाज तीन प्रकारकी मानसिकता धारण करता है।

(क) वह अपना आत्म विश्वास खो देता है, और कोई दूसरा ही हमारा उद्धार करेगा, ऐसी धारणा बना लेता है।

(ख) कोई अवतार हमारी सारी समस्याएं सुलझा जायगा, यह धारणा बना लेता है।

(ग) निष्क्रीय हो कर, शासन ही सब कुछ कर देगा ऐसा विश्वास भी उसी की देन हैं।

(९) निम्न –॥प्रश्न मालिका॥ –मानसिकता या वैचारिकता से अधिक, संबंध रखते हैं।

लाभकारी सुविधा ओं से नहीं, पर लाभहीन अनुकरण से अधिक जुडे हुए हैं।

लाभ कारी विचारों के विषयमें तो हमारे पुरखें बहुत उदार थे।

ज्ञान प्राप्त कहींसे भी करने के लिए हमारे पूरखोंने तो सूक्तियां भी रची थी। ऋग्वेद (१-८९-१) -में कहा था, ”आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः॥” -अर्थात : उदात्त विचार हर दिशासे हमारी ओर आने दीजिए। पर, हमारा मस्तिष्क हमने ऐसा खुला रखा कि, उस खुले मस्तिष्क में , लोगोंने कूडा, कचरा ही फेंक दिया। आज उस कूडे ने ही हमें गुलाम रखा हुआ है।

निम्न प्रश्न आप की मानसिकता से अधिक जुडे हुए हैं। कुछ अध्ययन और अनुभव के आधार पर चुने गए हैं।

ध्यान रहे: कि, दो चार प्रश्नों के उत्तरोंपर निष्कर्ष नहीं निकल पाएगा। हज़ारों वर्षों की गुलामी के कारण कुछ गुलामी का प्रभाव हर कोई पर हुआ है। मैं भी इसका अपवाद नहीं हूं, पर अच्छे संग के कारण टिक पाया हूं।

समग्र रूपसे यह देखा जाए। लेखक की दृष्टिसे सही उत्तर हर प्रश्नके अंतमें कंस में दिया गया है।

== जन तंत्र में जनता, पढी लिखी, जागृत, चौकन्नी, जानकार, और स्वावलंबी (स्वतंत्र= अपने तंत्र से चलने वाली )होती है।

प्रामणिकता से उत्तर देने पर आप को उन्नति की दिशा का निर्देश देने के सिवा, और कोई उद्देश्य नहीं। सही उत्तर कंस में दिए हैं।

(१) क्या आपको अपनी संस्कृति/देश के प्रति (सक्रिय, कुछ करते रहते हैं, ऐसा) गौरव अनुभव होता है?—>[ हां ]

(२) या, आपको मालिक (अंग्रेज) की रीति, शैली, के प्रति गौरव है?—–>[ ना ]

(३)क्या आपके मित्र आपको देश के प्रति निष्ठावान मानते हैं?—->[ हां ]

(४) क्या आप काले/सांवले रंग को हीन मानते हैं?-> [ ना ]

(५) क्या आप गोरी चमडी से ही( यह ’ही’ महत्वका है) सुंदरता की कल्पना कर सकते हैं? —->[ ना ]

(६) क्या आप अपनी भाषा (हिंदी या प्रादेशिक) में व्यवहार करने में हीनता का अनुभव करते हैं?—>[ ना ]

(७) क्या आप आपकी अपनी प्रादेशिक भाषा में और/या (हिंदी) में गलती होनेपर शर्म अनुभव करते हैं?—> [हां ]

(८) अंग्रेजीमें गलती करनेपर गहरी शर्म अनुभव होती है?(ना) {”गहरी” महत्वका है} —->[ ना ]

(९)क्या, आपको अपने धर्म/संस्कृति के विषय में जानकारी है, ऐसा आपके मित्र मानते हैं।—> [ हां ]

(१०) और उस विषयमें आप कुछ अध्ययन करते रहते हैं? —>[ हां ]

(११) आपसे अगर आपका देशबंधु या मित्र, आगे निकल जाए, तो आपका मत्सर, जागृत होता है?—>[ ना ]

(१२) आप अपनी (गुजराती, तमिल, हिंदी, उर्दू, संस्कृत….. इत्यादि) भाषाकी पुस्तकें पढते रहते हैं ? —>[ हां ]

(१४) आप उसे जानने में गौरव लेते हैं?—-> [ हां ]

(१५) कोई आपसे प्रश्न हिंदी (या आपकी ) भाषामें पूछे, तो आप उत्तर अंग्रेज़ीमें देते हैं ? —-> [ ना ]

(१६) आप सोश्यलिज़म, कम्युनिज़म, ह्युमनीज़म, फलाना-इज़म, — इत्यादि अंगेज़ी शब्दोंके प्रयोग करते हैं, {ना}

(१७) समाजवाद, साम्यवाद ऐसे शब्द प्रयोग करते है ? [ हां]

(१८) आप प्रमुख्तः हमेशा –बोम्बे, — डेली,– बनारस,– इंडिया, इत्यादि अंग्रेज़ प्रायोजित शब्दों का प्रयोग करते हैं? —[ ना ]

(१९) आपको मौसा, मामा, चाचा कहने/कहानेमें लाज आती है, पर अंकल ही अच्छा लगता है?[ ना ]

(२०) महिलाओंके लिए, मौसी, मामी, चाची इत्यादि के बदले आंटी सुनने में आदर प्रतीत होता है?—->[ ना ]

(२१) क्या आपको गीता, रामायण, या कुरान, धम्मपद, इत्यादि की कुछ जानकारी है, –>[हां]

(२२) उनका मनन या पठन इत्यादि होते रहता है? कुछ मालूम भी है?—–>[हां ]

सूचना: इसे जानकर आप अपनी मानसिकता बदल सकते हैं। किसीका अवमान करने का उद्देश्य नहीं है।