तुम, तुम हो
वह भी, वह ही है
यह सत्य है
जानते हैं हम सब
यह सब .
पर,
इतना ही
जानना -समझना
क्या
जीवन का लक्ष्य है ?
या
यह भी
जानना-समझना-मानना
कि
कहीं-न-कहीं
एक दूसरे में हैं हम
अन्यथा
वाकई अधूरे हैं हम !
तुम, तुम हो
वह भी, वह ही है
यह सत्य है
जानते हैं हम सब
यह सब .
पर,
इतना ही
जानना -समझना
क्या
जीवन का लक्ष्य है ?
या
यह भी
जानना-समझना-मानना
कि
कहीं-न-कहीं
एक दूसरे में हैं हम
अन्यथा
वाकई अधूरे हैं हम !
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।