पूर्वोत्तर भारत में यूनुस का ग्रेट गेम

• डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र
सहायक आचार्य
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय

विदेश नीति गत्यात्मक होती है। इसमें परिवर्तन परिस्थियों के अनुरूप होता रहता है। अगर विदेश नीति में स्थायित्व जैसा कुछ है तो वह है राष्ट्रीय हित। कब, कहाँ और कैसे नीतियों में परिवर्तन किया जाएगा, यह सुनिश्चित करना विदेश नीति का प्राथमिक कर्त्तव्य है। दक्षिण एशिया में जिस तरह का माहौल बना हुआ उस परिस्थिति में देश के विदेश नीति के नियन्ताओं को कुछ बड़ा करने के विषय में सोचना होगा। विगत तीन दशकों से चीन का हस्तक्षेप उपमहाद्वीप में तेजी से बढा है। चाहे वह सी.पी.इ.सी. हो या फिर सी.एम.इ.सी. और अब बांग्लादेश के अन्तरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस की कार्ययोजना ने उसके ड्रीम प्रोजेक्ट ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ के सपने को साकार करने के लिए बहुत हद तक मंच भी प्रदान कर दिया है।
वास्तव में बांग्लादेश के अन्तरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने चार दिन की चीन यात्रा विगत 26 मार्च को शुरू की। इस यात्रा के दौरान 26 मार्च को उनके द्वारा दिए गए एक भाषण का सोशल मीडिया पर एक वीडियो उनकी चीन यात्रा की समाप्ति के बाद बड़ी तेजी से वायरल हुआ है। इस वायरल वीडियो में मोहम्मद यूनुस यह कहते नज़र आ रहे हैं कि पूर्वोत्तर भारत जमीन से घिरा एक ऐसा क्षेत्र है जहां पहुँचने के लिए कोई रास्ता नहीं है। इस पूरे क्षेत्र के समुद्र से जुड़ने का एक मात्र रास्ता बांग्लादेश से होकर आता है। वस्तुतः इस क्षेत्र के संरक्षक हम ही हैं। इस कारण यह क्षेत्र अपार संभावनाओं का रास्ता खोलता है। उक्त क्षेत्र चीनी विस्तार के लिए कारगर साबित हो सकता है। नेपाल और भूटान के पास प्रचुर मात्रा में हाइड्रोपॉवर है। हम इनका इस्तेमाल अपने असीमित फायदे के लिए कर सकते हैं। इस प्रकार मोहम्मद यूनुस ने चीन को बांग्लादेश को आर्थिक मंच के रूप में इस्तेमाल करने का निमंत्रण दिया और स्वयं को इस क्षेत्र (पूर्वोत्तर भारत) के लिए समुद्र का एक मात्र संरक्षक बताया। ढाका के माध्यम से चीन अपना आर्थिक आधार मजबूत कर सकता है क्योंकि यहाँ विनिर्माण, विपणन की संभावनाएं है। चीन चाहे तो अपने समान को यहाँ से बेचे या फिर अपने यहाँ से। वह इसे विश्व के अन्य क्षेत्रों तक विस्तारित कर सकता है। एक और तथ्य जिस पर ध्यान देने की जरूरत है यूनुस की इसी यात्रा के दौरान दोनों देशों के मध्य एक समझौता और 8 समझौता ज्ञापन (एम. ओ. यू.) हुआ। इसमें तीस्ता नदी को लेकर ‘कम्परहेन्सिव मैनेजमेंट एण्ड रिस्टोरेशन प्रोजेक्ट’ पर भी सहमति बनी है। जिसका प्रतिकार भारत पहले से करता या रहा है, यदि इस प्रोजेक्ट से चीन का जुड़ाव होता है तो यह भारत के लिए स्त्रातजिक रूप से नुकसान पहुचाएगा क्योंकि इसके जरिए चीन की पहुँच सिलीगुड़ी गलियारे तक हो जाएगी।
मोहम्मद यूनुस का पूर्वोत्तर भारत में चीन को मिलाकर इस प्रकार का ‘ग्रेट गेम’ खेलने के पीछे वास्तविक मकसद क्या है,यह अत्यन्त विचारणीय प्रश्न है। वास्तव में आज की तारीख में यूरोप और अमेरिका से उन्हें कोई मदद नही मिल रही है और यूनुस के समर्थन में वहाँ की सेना भी नही है। ऐसी परिस्थिति में यूनुस के पास अत्यन्त सीमित विकल्प हैं। यूनुस ने चीन की तरफ रूख कर एक तीर से दो निशाने लगाने का प्रयास किया है। पहला चीन को सामरिक तौर पर सिलीगुड़ी गलियारे के क़रीब लाने का दाव खेला है और दूसरी तरफ यदि भारत ऐसी परिस्थिति में हार्ड पॉवर का इस्तेमाल करता है तो बांग्लादेशी सेना और वहाँ की जनता का भी समर्थन प्राप्त करने में उन्हें मदद मिलेगी।
वैश्विक स्तर पर बदलते भ्-अर्थिकी को दृष्टिगत रखते हुए क्या ऐसा प्रतीत नही होता है कि भारत को भी इस क्षेत्र में कुछ आधारभूत परिवर्तन करने की जरूरत है? सम्प्रति अमेरिका, रूस और चीन विस्तारवाद के विषय में सोच रहे हैं और चीन तथा रूस इसे मूर्तता प्रदान करने के लिए आतुर भी हैं तो क्या भारत को भी अपनी भू-रणनीति के नजरिए से अपनी सुरक्षा के निमित्त प्रयास करने की आवश्यकता नही है? इसका जवाब बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखकर दिया जा सकता है, क्योंकि वह स्वयं भारत से तीन तरफ से घिरा है। वस्तुतः यूनुस के इस नापाक ग्रेट गेम को रोकने के लिए भारत के पास कई विकल्प मौजूद हैं, हालाँकि इनमें से कुछ विकल्पों को पूर्णता प्रदान करने के लिए स्ट्रेट फारवर्ड और बेहद आक्रामक विदेश नीति की जरूरत होगी अथवा यूं कहें कि हार्ड पावर की आवश्यकता होगी। पहला,भारत पूर्वोत्तर के सात राज्यों को शेष भारत से जोड़े जाने वाले 22 किमी चौड़े सिलीगुड़ी गलियारे का विस्तार करे, ध्यातव्य रहे कि यह विस्तार बांग्लादेश की सीमा में होगा। दूसरा विकल्प है चिटगांव क्षेत्र को त्रिपुरा से आगे बढ़कर चोक कर दिया जाए और इस प्रकार भारत के इस क्षेत्र की पहुँच बंगाल की खाड़ी तक हो जाएगी और बांग्लादेश खुद दो टुकड़ों में बँट जाएगा। यूनुस की यह शिकायत भी दूर हो जाएगी कि पूर्वोत्तर भू-आबद्ध क्षेत्र है। तीसरा विकल्प है कि अगर भारत चाहे तो मोंगला और चिटगांव पोर्ट को ब्लाक कर बांग्लादेश की जीवन रेखा को बन्द कर दे क्योंकि यहीं से उसका 90 फीसदी व्यापार होता है।
बांग्लादेश को रोकने के और भी आसान तरीके हैं यथा उसके ऊपर व्यापार पर शुल्क बढ़ दिया जाए। यह भी किया जा सकता है कि उनके मालवाहक पोतों को उनके बंदरगाहों तक पहुँचने में जन बूझकर देरी करायी जाए। भारत से जाने वाली नदियों के पानी को ब्लाक करना भी एक विकल्प हो सकता है। ऊर्जा को अवरुद्ध किया जा सकता है। वास्तव में यूनुस अपने आखिरी दाव को खेल चुके हैं। अगर भारत यहाँ कुछ बड़ा करता है तो यूनुस को इसका फायदा मिल सकता है। यहाँ भारत को बहुत ही चतुराई से काम करना होगा। दूसरे शब्दों में प्रतीक्षा करना होगा कि वहाँ चुनाव कब होता है। अगर उसके बाद भी यह स्थिति वर्तमान रहती है तो भारत के पास सारे विकल्प खुले हैं।

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