स्वास्थ्य क्षेत्र को उपचार की दरकार

डॉ.वेदप्रकाश

    पहला सुख निरोगी शरीर कहा गया है। इसके लिए पोषक खानपान, स्वच्छ आवास, स्वच्छ पानी, स्वच्छ हवा एवं स्वस्थ वातावरण आदि की आवश्यकता है। साथ ही बीमार होने पर व्यक्ति को समय से सही उपचार एवं दवाइयां मिलें, यह भी आवश्यक है लेकिन क्या यह सभी को मिल पा रहा है? क्या सभी को अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाना राज्यों का दायित्व नहीं है?
     भारतवर्ष विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है। ऐसे में यहां स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास जैसी मूलभूत सुविधाएं सभी को समुचित रूप में मिलना एक बड़ी चुनौती भी है। आंकड़ों के अनुसार इस समय भारत में लगभग 13000 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है जबकि वैश्विक स्तर पर आदर्श अनुपात 1000 लोगों पर एक डॉक्टर का माना गया है, क्या यह स्थिति स्वयं में ही गंभीर नहीं है? जैसे ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर हम विचार करते हैं तो पाते हैं कि विगत 10 वर्षों में कई राज्यों में एम्स खोले गए हैं लेकिन फिर भी अभी अनेक राज्य ऐसे हैं जहां पर उच्चतम स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। सुदूर गांव देहात अथवा जिलों की स्थिति तो और भी बदतर है। औसतन प्रति सप्ताह कोई न कोई समाचार ऐसा मिलता है कि जब किसी गर्भवती महिला को अथवा किसी अस्वस्थ व्यक्ति को लोग कंधों पर, मोटरसाइकिल पर अथवा चारपाई पर लिटाकर 10-15 किलोमीटर दूर स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र पर उपचार के लिए ले जाते हैं। अनेक बार वह व्यक्ति रास्ते में ही दम तोड़ देता है। कई बार स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टर उपलब्ध नहीं होते तो कई बार दवाइयां अथवा आवश्यक उपकरणों के अभाव में बीमारी का इलाज नहीं हो पाता। सभी जानते हैं नीम हकीम खतरा ए जान होते हैं लेकिन मजबूरी में क्या करें? लोग अपने से ही किसी केमिस्ट की दुकान से दवाई लेकर खा लेते हैं।

विगत वर्षों में कोरोना महामारी के दौरान भारत के छोटे-बड़े सभी अस्पतालों में मूलभूत सुविधाओं एवं जीवन रक्षक ऑक्सीजन की कमी जैसी अनेक बातें सामने आई। इस पर बहुत तेजी से काम भी हुआ लेकिन फिर भी क्या अभी बहुत काम करने की आवश्यकता नहीं है? देश के शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता तुलनात्मक दृष्टि से अधिक है लेकिन वहां भी डॉक्टर की महंगी फीस, महंगी दवाइयों और नकली दवाइयों का संकट लगातार बना हुआ है। अनेक अस्पतालों में ओपीडी एवं डॉक्टर से परामर्श हेतु ऑनलाइन व्यवस्था कर दी गई है जिससे कम पढ़े लिखे लोगों को अनेक कठिनाइयां आती हैं। वे इस भय से या तो अस्पताल जाते ही नहीं अथवा पूरा दिन उन्हें केवल डॉक्टर से परामर्श हेतु औपचारिकताओं में ही लग जाता है। कई बार समाचार छपते हैं कि गंभीर बीमारी के उपचार एवं ऑपरेशन हेतु भी रोगी को दो  तीन महीने बाद का समय दिया गया है, यानी गंभीर बीमारी में भी रोगी को तत्काल उपचार नहीं मिल पाता, इंतजार में वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है अथवा कष्ट झेलता है। क्या स्वास्थ्य क्षेत्र में कुशल एवं अनुभवी डॉक्टरों की कमी भी एक बड़ी समस्या नहीं है? ऐसे में सुदूर और ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति को सहज ही समझा जा सकता है।


      पिछले कुछ महीनों से नकली दवाओं अथवा गुणवत्ता के मानकों पर खरी न उतरने वाली दवाओं के समाचार लगातार प्रकाशित हो रहे हैं। नवंबर 2024 में छपे एक समाचार के अनुसार देशभर में निम्न गुणवत्ता वाली दवाओं के खिलाफ जारी अभियान के तहत दवाओं के 111 सैंपल गुणवत्ता के मानक पर खरे नहीं उतरे। इसके अलावा कुछ सैंपल नकली दवाओं के भी मिले हैं। जनवरी 2025 में छपे एक समाचार के हवाले से सामने आया कि औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) व स्टेट ड्रग अथॉरिटी की ओर से जारी ड्रग अलर्ट में देशभर की 135 दवाओं के सैंपल गुणवत्ता पर खरे नहीं उतरे। इनमें सर्दी, खांसी, जुकाम, एलर्जी व दर्द  निवारण के लिए प्रयोग होने वाली दवाएं शामिल हैं। ऐसे में सामान्य व्यक्ति तो दवा पर दवा खाता रहता है। उसका शरीर तो कमजोर होता ही है वह आर्थिक रूप से भी गंभीर संकट झेलता है। फरवरी महीने के एक समाचार में सामने आया कि छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा दवा कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए 305 करोड़ रुपए की दवाएं उधार में खरीदी गई। बता दें कि छत्तीसगढ़ में लगभग 411 करोड़ के रिएजेंट और उपकरण खरीद घोटाले की जांच जारी है।


      हाल ही में राजधानी दिल्ली में विगत सरकार के कार्यकाल में दवाओं की खरीद में अनियमितताएं और निम्न स्तरीय दवाओं का मामला कैग रिपोर्ट से सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार राजधानी की स्वास्थ्य सुविधाएं चरमराई हुई हैं क्योंकि दिल्ली सरकार के अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर,नर्स और पैरामेडिकल कर्मियों की कमी है। दिल्ली सरकार के अस्पतालों में 10000 बेड से बढ़ाकर उन्हें दोगुना करने की घोषणा भी पूरी नहीं हुई। इतना ही नहीं, वर्ष 2016-17 से 2021- 22 के दौरान स्वास्थ्य परियोजनाओं के लिए आवंटित बजट 13.29 से 78.41 प्रतिशत तक बचा रह गया। कैग के ऑडिट में अस्पतालों में दवाओं की खरीद में भी अनियमितताएं पाई गई हैं। यहां तक कि अस्पतालों में मरीजों को घटिया दवाएं देने की बात भी रिपोर्ट में सामने आई है। इसके साथ ही अस्पतालों की लैब व विभागों में उपकरणों व कर्मचारियों की कमी पाई गई है, साथ ही निगरानी व्यवस्था भी लचर मिली है। जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की यह हालत है तो फिर देश के अन्य हिस्सों में स्वास्थ्य सेवाओं की क्या दशा होगी, यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार स्वस्थ भारत के लिए मिशन मोड में काम कर रहे हैं। बजट 2025 में भी देश के सभी जिला अस्पतालों में कैंसर के इलाज की सुविधा विकसित करने का ऐलान किया गया है। इसके लिए अस्पतालों में डे केयर कैंसर केंद्रों की स्थापना की भी बात है। साथ ही 36 जीवन रक्षक दवाओं पर आयात शुल्क खत्म करने की घोषणा भी की गई है। महत्वपूर्ण यह भी है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को इस बार 99,858.56 करोड रुपए आवंटित किए गए हैं जो 2024- 25 के 89,974.12 करोड़ रुपए से लगभग 11 प्रतिशत अधिक हैं। इसके अलावा आयुष मंत्रालय को भी 3,992.90 करोड रुपए आवंटित किए गए हैं। सरकार ने देश भर में खोले गए 1.76 लाख पीएम आरोग्य मंदिरों में अन्य बीमारियों के साथ-साथ कैंसर की जांच का प्रविधान भी किया है। आयुष्मान भारत योजना पहले से ही चल रही है। इन सब प्रावधानों के उपरांत भी समस्या वहीं खड़ी है- स्वास्थ्य सेवाओं की कम उपलब्धता, नकली दवाइयां, महंगा इलाज और प्रत्येक व्यक्ति तक उसकी पहुंच न होना। दिन प्रतिदिन छपने वाले समाचारों से यह स्पष्ट है कि स्वास्थ्य क्षेत्र भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित है . ऐसे में यह आवश्यक है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय इस दिशा में कड़े दंडात्मक नियम बनाए। अनेक बातों पर निगरानी हेतु त्वरित टीम बनाई जाएं, जिससे किसी भी स्तर पर लापरवाही न हो सके। देश भर में लगातार निजी अस्पतालों का भी जाल बिछता जा रहा है, ऐसे में उन पर भी भिन्न-भिन्न रूपों में नियंत्रण की आवश्यकता है। विगत दिनों अनेक नकली दवाइयां एवं सिंडिकेट पकड़े गए हैं किंतु अब तक उनमें संलिप्त लोगों पर क्या कठोर कार्रवाई हुई इसका कोई समाचार नहीं छपा। ऐसे लोग भ्रष्टाचार के सहारे बच निकलते हैं जबकि नकली दवाई बनाना व बेचना सीधे-सीधे जीवन से खिलवाड़ है, क्या इसमें संलिप्त लोगों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान नहीं होना चाहिए?


डॉ.वेदप्रकाश

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