विभाजन विभीषिका का दिवस 14 अगस्त पर विशेष…
प्रदीप कुमार वर्मा
भारत माता के कई वीर सपूतों की कुर्बानी के बाद 15 अगस्त सन 1947 को भारत देश विदेशी दासता की बेड़ियों से मुक्त हो गया। भारतीयों के लिए यह एक सुखद पल था लेकिन टीस यह रही कि भारतवर्ष को अपनी आजादी की कीमत एक नए देश पाकिस्तान के रूप में भारत भूमि का “बंटवारा” करके चुकानी पड़ी। ब्रिटिश हुकूमत ने भारतवर्ष को आजाद करने से पूर्व दो स्वतंत्र देश भारत और पाकिस्तान के रूप में बांट दिया। इसके बाद पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र संघ में एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता मिल गई। भारत की भूमि का भारत और पाकिस्तान के रूप में दो देशों के बीच महज भूमि का बंटवारा ही नहीं हुआ, यह विभाजन एक “त्रासदी” लेकर आया। विभाजन के दौरान जब भारत और पाकिस्तान बने तो हिंदू बहुल इलाके भारत में और मुस्लिम बहुल इलाके पाकिस्तान में शामिल किए गए। इस दौरान आबादी की अदला-बदली हुई और बड़े पैमाने पर हिंदू- मुस्लिम दंगे हुए। जिसमें लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
भारत की आजादी के 70 साल से अधिक कालखंड के बाद भी विभाजन की त्रासदी की टीस अभी भी भारतीयों के दिलों में नासूर की तरह जिंदा है। भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन की विभीषिका के अतीत पर गौर करें तो पता चलता है कि भारत सरकार के आवाहन पर अब देश भर में आजादी की तारीख 15 अगस्त से एक दिन पहले यानी “14 अगस्त” को विभाजन विभीषिका दिवस के रूप में याद किया जाता है। आज का दिन उन लोगों की स्मृति को पुनर्जीवित करने का दिन है जिन्होंने भारत की आजादी की बलि वेदी पर विभाजन के दौरान अपने प्राणों की आहुति दी। यह सर्व विदित है कि भारत के ब्रिटिश शासकों ने हमेशा ही भारत में “फूट डालो और राज्य करो” की नीति का अनुसरण किया। अंग्रेजों की इसी नीति के कारण हिंदू और मुसलमान के बीच पहले अविश्वास की खाई पैदा हुई और वक्त के साथ यह खाई और अधिक चौड़ी और गहरी होती गई। नतीजतन आजादी के दौरान ही टू-नेशन थ्योरी का सिद्धांत कुछ लोगों के दिलों दिमाग पर चढ़कर बोलने लगा।
इस सिद्धांत का अंत भारत भूमि के बंटवारे के बाद पाकिस्तान के रूप में हुआ। स्वाधीनता संग्राम के दौरान हालात ऐसे बने कि कांग्रेस में शामिल कुछ मुस्लिम नेताओं ने यह आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी में ही मुसलमान के साथ समान व्यवहार नहीं होता तथा भारत में भी मुसलमान को हिंदुओं के बराबर अधिकार नहीं है। इसी क्रम में वर्ष 1906 में ढाका में बहुत से मुसलमान नेताओं ने मिलकर मुस्लिम लीग की स्थापना की। इन नेताओं का मानना था कि मुसलमानों को बहुसंख्यक हिन्दुओं से कम अधिकार उपलब्ध थे तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करती थी। मुस्लिम लीग ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग मांगें रखीं। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के तत्कालीन इतिहास के मुताबिक वर्ष 1930 में मुस्लिम लीग के सम्मेलन में प्रसिद्ध उर्दू कवि मुहम्मद इक़बाल ने एक भाषण में पहली बार मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य की माँग उठाई। वर्ष 1935 में सिंध प्रांत की विधान सभा ने भी यही मांग उठाई।
इक़बाल और मौलाना मुहम्मद अली जौहर ने मुहम्मद अली जिन्ना को इस मांग का समर्थन करने को कहा। इस समय तक जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में लगते थे लेकिन धीरे-धीरे उन्होने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि कांग्रेसी नेता मुसलमानों के हितों पर ध्यान नहीं दे रहे। पाकिस्तान बनने की कड़ी में एक अहम पड़ाव 23 मार्च 1940 को आया। इस दिन मुस्लिम लीग ने लाहौर में एक प्रस्ताव रखा, जिसे बाद में ‘पाकिस्तान प्रस्ताव’ के नाम से भी जाना गया। इसके तहत एक पूरी तरह आज़ाद मुस्लिम देश बनाए जाने का प्रस्ताव रखा गया। मुस्लिम लीग सम्मेलन में जिन्ना ने साफ़ तौर पर कहा कि वह दो अलग-अलग राष्ट्र चाहते हैं। महात्मा गाँधी और जिन्ना ने सितंबर 1944 में पाकिस्तान की मांग पर बातचीत की, पर ये वार्ता नाकाम रही. इस मुद्दे पर दोनों में गहरे मतभेद थे। जिन्ना को पाकिस्तान पहले चाहिए था और आज़ादी बाद में जबकि गाँधी का कहना था कि आज़ादी पहले मिलनी चाहिए।
वर्ष 1946 में मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन की योजना से खुद को अलग कर लिया और आंदोलन छेड़ दिया जिसके बाद देश भर में मारकाट शुरू हो गई। भारत के विभाजन की पृष्ठभूमि में हिंसा की पहली लहर कलकत्ता में 16 से 18 अगस्त के बीच शुरू हुई,जिसे ‘ग्रेट कैलकटा किलिंग्स’ के नाम से याद किया जाता है। इस घटना में करीब 4 हजार लोग मारे गए, हज़ारों घायल हुए और लगभग एक लाख लोग बेघर हुए। इस हिंसा की आग पूर्वी बंगाल के नोआखाली ज़िले और बिहार तक फैल गई। हिन्दू बहुमत वाले इलाके भारत में और मुस्लिम बहुमत वाले इलाके पाकिस्तान में शामिल किए गए। भारत के विभाजन के ढांचे को ‘3 जून प्लान’ या माउण्टबैटन योजना का नाम दिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमारेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया, जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया।
इस समय ब्रिटिश भारत में बहुत से राज्य थे जिनके राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार ने तरह-तरह के समझौते कर रखे थे। इन 565 राज्यों को इस बात की आज़ादी दी गयी कि वे चुनें कि वे भारत या पाकिस्तान किस में शामिल होना चाहेंगे। अधिकतर राज्यों ने बहुमत धर्म के आधार पर देश चुना। जिन राज्यों के शासकों ने बहुमत धर्म के प्रतिकूल देश चुना उनके एकीकरण में काफ़ी विवाद हुआ। विभाजन के बाद पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया और भारत ने ब्रिटिश भारत की कुर्सी संभाली। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सौ से ज़्यादा वर्षों के शासन और 90 वर्षों के ब्रिटिश राज के बाद भारतीय उपमहाद्वीप को आखिरकार आज़ादी मिल गई। वर्षों के उपनिवेश-विरोधी संघर्ष के बाद जो एक शानदार विजय का क्षण होना चाहिए था, वह अकल्पनीय हिंसा और रक्तपात से अमिट रूप से कलंकित हो गया। यह सत्य है कि वर्ष 1947 में भारत का विभाजन एक दुखद घटना थी जिसने भारत और पाकिस्तान नामक दो अलग-अलग राष्ट्रों को जन्म दिया।
इस विभाजन ने न केवल भौगोलिक सीमाओं को बदल दिया बल्कि लाखों लोगों के जीवन को भी प्रभावित किया, जिससे बड़े पैमाने पर विस्थापन और हिंसा हुई। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस को लेकर 14 अगस्त 2021 को केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से भारत सरकार के राजपत्र में गजट नोटिफिकेशन जारी किया गया था। भारत सरकार के राजपत्र में गजट नोटिफिकेशन में कहा गया कि भारत सरकार भारत की वर्तमान और भावी पीढ़ियों को विभाजन के दौरान लोगों द्वारा सही गई यातना और वेदना का स्मरण दिलाने के लिए 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवसके रूप में घोषित करती है।
तब से विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस भारत में 14 अगस्त को मनाया जाने वाला एक वार्षिक राष्ट्रीय स्मृति दिवस है, जो 1947 के भारत विभाजन के दौरान लोगों के पीड़ितों और कष्टों को याद करता है। इसे पहली बार 2021 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद मनाया गया था। आज हम आजादी की आबोहवा में सांस ले रहे हैं और कल 15 अगस्त को आजादी का जश्न भी मनाएंगे।
लेकिन इस आजादी की खुशी के साथ एक मलाल भारत भूमि के विभाजन का भी है। हालात ऐसे हैं कि देश में अमन और चेन के लिए आजादी के बाद धर्म के नाम पर भारत भूमि का बंटवारा हुआ था। तत्कालीन नीति नियंत्रण में हिंदू और मुसलमान दोनों के हक और हकूक का ध्यान रखते हुए बंटवारे को मान्यता दी। कुछ ऐतिहासिक तथ्यों एवं मीडिया रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र मिलता है कि कुछ नेताओं की खुद को प्रधानमंत्री बनाए जाने की “जिद” के चलते भारत भूमि को बंटवारे का दंश झेलना पड़ा। हो सकता है कि उस समय ऐसी सोच रही हो कि समय के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका। अपने ही जिगर का टुकड़ा कहे जाने वाला पाकिस्तान आज भारत का दुश्मन नंबर वन बना हुआ है। बंटवारे की टीस भारत में है। लेकिन इसके उलट पाकिस्तान आए दिन कश्मीर समेत अन्य इलाकों में आतंकी वारदातों को अंजाम देता रहा है। जम्मू कश्मीर की वैसारण घाटी में पहलगांव में हुआ आतंकी हमला इस की सबसे ताजी मिसाल है।
प्रदीप कुमार वर्मा