प्रशंसक बिना जग सूना

             प्रशंसक की अपनी दुनिया है। दुनिया में कोई भी प्रशंसक के बिना जीना नहीं चाहता है, इसलिये सभी के प्रशंसक होते है, प्रशंसक न हो तो यह जीवन बोझ लगने लगता है। जब तक हमें अपने कानों से अपनी प्रशंसा न सुनने को मिले या सोसलमीड़िया के विभिन्न प्लेटफार्मो, अखबारों में की गयी प्रशंसा के लाईक-कमेंन्टस करने वाले प्रशंसकों को न देख लिया जाए तब तक हर किसी को यह जग बिना प्रशंसक के सूना ही लगता है। प्रशंसक कितना अहम अनमोल किरदार है, उसका मूल्य वही समझता है जिसके प्रशंसक होते है। दुनिया बनाने वाले को किसी ने देखा नहीं है पर हॉ दुनिया उसे विधाता मानती है और विधाता को देश-दुनिया, भाषा आदि में कोई न कोई सम्बोधन देकर उसकी प्रशंसा की जाती है। कोई उसे ब्रम्ह मानता है।  कोई प्रकृति मानता है। कोई उसे नियति मानता है, तो कोईउसे समृष्टि मानता है। अपने-अपने धर्मानुसार भगवान, ईश्‍वर, गॉड, अल्लाह आदि अनेक नामों से उसकी प्रशंसा कर उससे अपनी किस्मत का कनेक्शन जोड़कर उसका प्रशंसक बना रहना इंसान अपनी फितरत समझता है। यानि यह स्वीकार्य सत्य है कि जब से दुनिया बनी है तब से दुनिया में प्रशंसकों की पहली चाह भगवान को है, भगवान के प्रशंसक मनुष्‍य ही नहीं बल्कि देव व दानव जगत पर शासन करने के लिये  अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष पाने का मार्ग अपनाकर उनकी नाना प्रकार से प्रशंसा कर प्रशंसक बने हुए है।

                देश में पहले नेताजी हुआ करते थे जो सदचरित्र होने से सम्मानीय थे।  नेतृत्‍व करने वाले इन राजपुरूषों -राजाओं केे बाद नेता शब्‍द आया जो नेतृत्‍व से लिया गया।  ‘ने’ शब्‍द  से नेतृत्‍व और ताकत से ”ता” शब्‍द लेकर ‘नेता” बना तथा उसके उत्‍कृष्‍ट आचार-व्‍यवहार से उसमें ”जी” शब्‍द जोडकर नेताजी कहलाया।  हर देशवासी  ”नेताजी” के प्रशंसक हुआ करते थे, पर आज ‘‘नेताजी‘‘ नहीं, नेता होते है, इसमें ‘‘नेता‘‘ से ‘जी‘ शब्द गायब हो गया है। नेताजी कभी प्रशंसा या प्रशंसकों के लिये नहीं थे, देश और संविधान के लिये थे।  दुर्भाग्य से नेताओं की बात करता हॅू जो नेताजी के चाल,चरित्र और चेहरे से कोसों दूर है। आज का नेता प्रशंसा का भूखा है, इसलिये उसके प्रशंसक नहीं है। प्रशंसक नहीं होने का कारण समझ लीजिये। ‘‘नेता‘‘ दो अक्षरों का जोड़ है ‘‘ने‘‘ और ‘‘ता‘‘  इसमें ‘‘ता‘‘ शब्द खो गया है। नेता का अर्थ है नेतृत्व करने की ताकत। ‘‘ता‘‘ खो गया यानि ताकत खो गयी, सिर्फ ‘‘नेतृत्व‘‘ रह गया है। नेताओं ने नेतृत्व के ‘‘ने‘‘  शब्‍द से काम लेना शुरू किया है। अब प्रदेश-देश के  नेता का ‘‘मैं‘‘ काम करता है जिसमें ‘मै‘ के साथ ‘‘ने‘ जोड़ने पर ‘‘मैंने‘‘ किया, मैं कर रहा हॅू। मैंं करूॅगा, मेरे मन की बात।

  नेता के उल्टे ‘‘ताने‘हो गये और ‘ता‘ गायब होते ही नेता की खोपड़ी में बकरी की तरह मैं-मैं समा गयी। ‘‘मैंने‘‘ किया, मैंने दिया, मैंने-मैने ही सर्वस्य व्याप्त है। यह शब्द  ‘मैंने‘,  मेरी सरकार ने, मेरी सरकार के  विकास, मेरे किये गये वायदे, मेरी सरकार की घोषणा, मेरी सरकार की अलाउददीन के चिराग से उत्‍पन्‍न अविश्‍वसनीय ऑकडों की उपलब्धि की ही गूंज है। सरकार का, विकास का काम ‘लेता के ‘‘ले‘ और देता के ‘दे‘ शब्‍द के जोड लेके देके  चल रहा है पर मैं न ‘‘ले‘ ता हॅू न ‘दे‘ता हॅू। ‘ने‘ता से ‘‘ता‘‘ गायब होने का प्रश्न मीडिया द्वरा किये जाने पर वे गायब ता को इशारों से ‘‘जूता‘‘ में ”ता’ दिखाकर घर के भीतर चले गए। इधर जूता में ”ता” को पाकर अपनी ब्रेकिंग न्‍यूज परोसने के लिये मीडिया स्‍टुडियों की ओर भागती है। प्रभावित मीडिया नेता की प्रशंसा में उनके कार्यकर्ताओं, एजेन्टों, बूथ प्रभारियों, दलालों को उनका जबजस्त प्रशंसक बनाने में जुट जाती है, ताकि नेता के लिए प्रशंसकों की भीड खडी की जा सके, और प्रशंसक बिना सूना नेता का संसार हरा-भरा हो जाये।

अब भगवान के प्रशंसकों के प्रशंसकों की बात की जाए तो कुछेक विशेष प्रशंसक भगवान की प्रशंसा के सागर में गोते लगाकर खुद मोक्ष पाये बिना मोक्ष का रास्ता बताकर अपने लाखों-करोड़ों प्रशंसकों का प्लेटफार्म खड़ा कर लेते है, ये प्रशंसक असल में वेद-पुराण और शास्त्रों से भगवान की प्रशंसा कर खुद के प्रशंसकों की दुनिया में खो जाते है। जबसे दुनिया बनी है तभी से इस धरती पर अपने-अपने धर्म, भाषा, संस्कृति और संस्कारों के साथ भगवान के प्रशंसकों से यह दुनिया भरी पड़ी है। इस दुनिया के हर गॉव-गली में विधाता के  छोटे-बड़े प्रशंसक है और मजे की बात यह कि इन प्रशंसकों के भी प्रशंसक है। भगवान के खेल निराले है वह यह सब समझता है इसलिये उसने सृष्टि में, प्रकृति में, नियति में हरेक को अनेक गुणों से परिपूर्ण कर प्रशंसा का पात्र बनाया है और जगत में उनके भी प्रश्ांसक बनाकर प्रशंसकों का जाल बुनकर यह सिद्ध किया है कि इस जगत में प्रशंसकों के बिना सब सूना है।

प्रशंसकों के बिना जग सूना है, इस बात की गहराई में उतरा जाए तो पाएॅगें कि जगत की जितनी भी विधाए है उसमें प्रशंसा और प्रशंसक न चाहकर भी मौजूद है। मनुष्य जीवन में प्रत्येक व्यक्ति जन्म से मृत्यु तक अनेक अवसरों पर नाटक, कहानी, एकाकी, आलोचना, हास्य-परिहास आदि अनेक तरंगों को जीते हुए प्रशंसा और निंदा पाकर निंदा और प्रशंसा के भी प्रशंसकों को तैयार करता है। एक साहित्यकार, संपादक, लेखक,, कवि, गीतकार, संगीतकार,नाटयकार, कथाकार,व्यंग्यकार, चित्रकार, छायाकार, पत्रकार और कलाकार तथा सम्प्रदाय के प्रवर्तक एवं सम्प्रदाय प्रमुख सभी अपनी-अपनी प्रशंसा और अपने-अपने लिये असंख्य प्रशंसकों की चाह लिये जीवन जीते है। इन विधाओं के मर्मज्ञ, कलाओं के दक्ष अपनी-अपनी योग्यताओं में पारंगत रहते अपनी जीविकोपार्जन के साथ कल्याण के साधन मुहैया कराकर संसार में प्रशंसा पा स्वयं के प्रशंसकों की भीड़ लिये खड़े होते है जिससे ये स्वयं अपने प्रशंसकों से भरपूर खुशी पाते है और मन पुष्प की तरह खिला रखते है। अब आप मुझे ही देख लीजिये, क्या मैं खुद के लिये कलमघिस रहा हॅू ? नहीं, अपनी खुशी के लिये, अपने आत्मसंतोष के लिये मैं यह सब कर रहा हॅू, जिसमें मुझे अपने प्रशंसकों को प्रसन्न रखने के लिये ज्यादा मेहनत कर पापड़ बेलना पड़ता है। भले मेरे प्रशंसक मेरे पास नहीं है, मुझे जानते नहीं, पर अखबार में छपने के बाद, सोसलमीड़िया प्लेटफार्म पर पोस्ट के उपरांत जो मुझे देखते है, लाईक करते है, क्या उन प्रशंसकों की मौजूदगी से मिलने वाली खुशी को मैं बधिया कर दॅू , नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता ? क्योंकि मैं जनता हॅू कि जो मैं आभासित करता हॅू प्रशंसकों के मामले में आप भी वही सब करते है। आपके भी बहुतायत प्रशंसक है तो निश्चित रूप से आप भी ऐसा करने का साहस नहीं दिखा पाएंगे,क्योंकि प्रशंसकों के होने पर मन को मिलने वाली प्रशंसा शब्दों में बखान नहीं की जा सकती।

प्रशंसक बहुत ही कीमती होते है। कीमती इतने कि अगर आपके पास लाखों करोड़ों प्रशंसक हो तो आप दुनिया में छा जाये। भारतीय फिल्मी दुनिया के सुपरमेन अमिताभ बच्चन की बात हो, दिलीपकुमार, अमजदखान, शत्रुघनसिन्हा, मिथुनचक्रवती, धर्मेन्द्र जैसे अभिनेता की बात हो या नर्गिस, नूतन, मीनाकुमारी, वैजन्तीमाला, हेमामालिनी, रेखा की बात हो, ये सभी जमीन के लोग थे, जीवन में संघर्ष ही संघर्ष था।अभिनय में अपनी जगह बनाने के लिये कड़ी तपस्या और मेहनत के बाद अपनी प्रतिभा को निखारकर  इन्होंने अपने प्रश्ांसकों का संसार खड़ा किया लाखों करोड़ों प्रशंसकों ने इनके अभिनय की प्रशंसा की, ये बुलन्दियों के शिखर पर ऐसे चमके कि आज भी पूरी दुनिया में इनके प्रशंसकों में कमी नहीं रही है, इन प्रशंसकों के कारण ये गगनचुंभी शौहरत और अकूत सम्पत्ति पा सके। कुन्दन लाल सहगल, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश, जैसे गायक, शैलेन्द्र, गोपालप्रसाद नीरज, रविन्द्र जैन, आनन्द बक्षी, मजरूह सुल्तानपुरी, साहिर लुधियानवी जैसे गीतकार, और अनेक संगीतकारों की सामूहिक मेहनत से बनी धुनों के भजन, गीत, गजल देश के हर बच्चे-बच्चे की जुबान पर पहुंचा सके, इनके प्रशंसकों का पैमाना मापा नही जा सका, इनके गीत भजन आदि की धुने कानो से प्रवेश कर मन को छूती हुई दिलों में बस गई, जिन्होंने मनोरंजन ही नहीं अपितु प्रशंसकों को आनंद और उत्साह से भरकर अमरता प्रदान की।

आत्माराम यादव पीव

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