
—विनय कुमार विनायक
आरक्षण शब्द घृणित हो चुका शब्द हरिजन सा,
मगर छुपके छुपाके सबको चाहिए
आरक्षण पिछड़े, आदिवासी, हरिजन के जैसा!
अब आरक्षण मिला संपूर्ण भारत जन को,
हरिजन-अंत्यज, पिछड़ेजन,
अर्थहीन से समग्र ब्राह्मण जाति तक को!
जब से आरक्षण ब्राह्मण को मिला,
तब से उपाधि ‘हरिजन’ ‘राम’ जैसे आरक्षित शब्द
घृणित नहीं और पूर्वाग्रह मुक्त सा भी लगने लगा!
अब समय है आरक्षण पर खुलकर बोलने का,
छोटे-बड़े प्रकांड बुद्धि वाले जनमन को टटोलने का!
भारत में ब्राह्मण शब्द प्रतीक है पवित्रता का,
और हरिजन विपरीतार्थक शब्द ब्राह्मण जाति का!
ब्राह्मण की पवित्रता ईश्वर से अधिक है,
तब ही ना एक सामान्य ‘जन’ शब्द के साथ
हरि जुटते ही शब्द ‘हरिजन’ बनकर दूषित हो जाता!
‘जन’ के साथ ‘जाति’ जुटे तो ‘जनजाति’ अंत्यज हो जाता!
लाख प्रयत्न कर ले निचली जाति
भारत में उच्च जाति की हो नही सकती!
भारत में शब्दों की
गरिमा और लघुता जातिगत होती!
आज भी निचली जातियों से जुड़कर
शब्द अपनी शक्ति खो देता,
राम सा पवित्र शब्द हरिजन जाति की
उपाधि होने से राम शूद्र दास हो जाता!
हरिजन में पवित्रता तब लौटेगी जब वे,
वेद शास्त्र पढ़के झा,मिश्र, द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी,
पाठक, उपाध्याय, शास्त्री उपाधि ग्रहण कर लेंगे!
बिन पढ़े वेद जब दूबे गए
चौबे बनने छब्बे बनकर लौट आते,
तो फिर पढ़े-लिखे जन तिवारी, पांडे, पंडित,
शास्त्री,आचार्य उपाधि क्यों नहीं अपनाते?
अस्तु हे राम! हे हरिजन!
भजो राम को, हरि को,तजो उपाधि ‘राम’ ‘हरिजन’ की,
धारण करो उपाधि ब्रह्मापुत्र ब्राह्मण की,
यही एक मार्ग बचा,तब मिलेगी जातिवाद से मुक्ति!
आज ब्राह्मण पुरोहित का कर्तव्य बनता
कि सभी पिछड़े दलित आदिवासी जन को
उपनयन संस्कार कराके आर्य समाजी बना दे,,
याकि भारतजन गुरु गोविंद सिंह का खालसा पंथ अपना ले,