श्रम के महत्व को स्वीकार करने की आवश्यकता है

0
2
बाल श्रम कानून

विश्व श्रम दिवस 1 मई 2025 पर विशेष

-संदीप सृजन

मानव सभ्यता के विकास में श्रम का योगदान अनमोल रहा है। प्राचीन काल से ही मानव ने अपनी मेहनत और बुद्धि के बल पर प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित किया। चाहे वह पाषाण युग में औजारों का निर्माण हो, कृषि क्रांति के दौरान खेती की शुरुआत हो, या औद्योगिक क्रांति के समय मशीनों का विकास , श्रम ने हर युग में सभ्यता को नई दिशा दी। 

भारतीय संस्कृति में श्रम को उच्च स्थान प्राप्त है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कर्मयोग की महत्ता बताते हैं, जहां कर्म (श्रम) को जीवन का आधार माना गया है। “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” का यह संदेश स्पष्ट करता है कि श्रम करना हमारा कर्तव्य है, और इसका महत्व फल की अपेक्षा से कहीं अधिक है। इसी तरह, भारतीय परंपराओं में कारीगरों, शिल्पियों, और मेहनतकश लोगों को हमेशा सम्मान दिया गया है।

श्रम मानव जीवन का आधार है। यह न केवल व्यक्तिगत विकास और आत्मनिर्भरता का स्रोत है, बल्कि समाज के समग्र प्रगति और समृद्धि का भी मूलमंत्र है। श्रम के बिना न तो सभ्यता का विकास संभव है और न ही मानव समाज की उन्नति। फिर भी, आधुनिक समाज में श्रम के महत्व को पूरी तरह से स्वीकार करने में कमी देखी जाती है। कुछ लोग श्रम को केवल शारीरिक मेहनत तक सीमित मानते हैं, जबकि इसका दायरा इससे कहीं अधिक व्यापक है।

श्रम का अर्थ केवल शारीरिक परिश्रम तक सीमित नहीं है। यह मानसिक, बौद्धिक, रचनात्मक और भावनात्मक प्रयासों को भी समेटता है। एक किसान जो खेतों में दिन-रात मेहनत करता है, एक वैज्ञानिक जो प्रयोगशाला में नए आविष्कारों के लिए कार्यरत है, एक शिक्षक जो विद्यार्थियों को ज्ञान प्रदान करता है, या एक माता-पिता जो अपने बच्चों के पालन-पोषण में समय और ऊर्जा लगाते हैं,ये सभी श्रम के विभिन्न रूप हैं। प्रत्येक कार्य, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, समाज के लिए मूल्यवान है।

श्रम का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह मानव को आत्मसम्मान और उद्देश्य प्रदान करता है। जब कोई व्यक्ति अपने प्रयासों से कुछ हासिल करता है, तो उसका आत्मविश्वास बढ़ता है और वह समाज में सकारात्मक योगदान दे पाता है। इसके विपरीत, श्रम के प्रति उदासीनता या अवहेलना न केवल व्यक्तिगत स्तर पर हानिकारक है, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी अवनति का कारण बन सकती है।

आधुनिक समाज में तकनीकी प्रगति और स्वचालन ने श्रम के स्वरूप को बदल दिया है। एक ओर जहां मशीनें और कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने मानव श्रम को आसान बनाया है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों में यह भ्रांति उत्पन्न हुई है कि श्रम की आवश्यकता कम हो गई है। यह धारणा खतरनाक है, क्योंकि श्रम के बिना कोई भी समाज टिकाऊ ढंग से प्रगति नहीं कर सकता। 

साथ ही, आधुनिक समाज में श्रम को सामाजिक स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। कुछ कार्यों को उच्च और कुछ को निम्न माना जाता है। उदाहरण के लिए, एक कॉर्पोरेट कार्यालय में काम करने वाले व्यक्ति को समाज में अधिक सम्मान मिलता है, जबकि एक सफाई कर्मचारी या निर्माण मजदूर के श्रम को कम महत्व दिया जाता है। यह भेदभाव न केवल सामाजिक असमानता को बढ़ाता है, बल्कि श्रम के प्रति लोगों की मानसिकता को भी प्रभावित करता है।

श्रम को समाज में पूर्ण स्वीकृति मिलना बहुत आवश्यक है।  जब समाज सभी प्रकार के श्रम को समान रूप से महत्व देता है, तो सामाजिक भेदभाव कम होता है। प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह किसी भी पेशे में हो, अपने कार्य के लिए सम्मान प्राप्त करता है। यह सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है और समाज में सकारात्मकता का संचार करता है। श्रम ही आर्थिक विकास का आधार है। जब समाज श्रम के महत्व को स्वीकार करता है, तो लोग अधिक मेहनत और लगन से काम करते हैं। इससे उत्पादकता बढ़ती है और अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। विशेष रूप से विकासशील देशों में, जहां मानव संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, श्रम की स्वीकृति और प्रोत्साहन आर्थिक प्रगति को गति दे सकते हैं।

आज की युवा पीढ़ी में कई बार मेहनत के प्रति उदासीनता देखी जाती है। यदि समाज श्रम के महत्व को प्रचारित करता है और मेहनतकश लोगों को सम्मान देता है, तो युवा इससे प्रेरित होंगे। वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। श्रम केवल भौतिक लाभ तक सीमित नहीं है। यह व्यक्ति के नैतिक और आध्यात्मिक विकास में भी योगदान देता है। जब समाज श्रम को महत्व देता है, तो लोग अपने कार्य को कर्तव्य के रूप में देखते हैं, जिससे उनका जीवन अधिक सार्थक और उद्देश्यपूर्ण बनता है।

श्रम के महत्व को समाज में स्थापित करने और इसे पूर्ण स्वीकृति दिलाने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों को श्रम के महत्व के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए। उन्हें यह समझाना होगा कि प्रत्येक कार्य, चाहे वह शारीरिक हो या बौद्धिक, समाज के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही, शिक्षा प्रणाली में व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि युवा विभिन्न प्रकार के श्रम के लिए तैयार हों। समाज को उन रूढ़ियों को तोड़ना होगा जो कुछ कार्यों को निम्न मानती हैं। इसके लिए मीडिया, साहित्य, और सार्वजनिक मंचों का उपयोग करके सभी प्रकार के श्रम को सम्मान देने का संदेश प्रसारित किया जाना चाहिए। सरकार को श्रमिकों के लिए बेहतर नीतियां बनानी चाहिए, जैसे कि उचित वेतन, सुरक्षित कार्यस्थल, और सामाजिक सुरक्षा। इससे न केवल श्रमिकों का जीवन स्तर सुधरेगा, बल्कि समाज में श्रम के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण भी विकसित होगा।

आज विश्व तेजी से बदल रहा है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, स्वचालन, और तकनीकी प्रगति ने श्रम के स्वरूप को निश्चित रूप से प्रभावित किया है। लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि तकनीक श्रम का स्थान नहीं ले सकती; यह केवल श्रम को अधिक प्रभावी और कुशल बना सकती है। भविष्य में, समाज को श्रम के नए रूपों जैसे डेटा विश्लेषण, डिजिटल रचनात्मकता, और पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कार्यों को भी स्वीकार करना होगा। 

श्रम मानव जीवन और समाज का आधार है। यह न केवल आर्थिक और सामाजिक प्रगति का स्रोत है, बल्कि व्यक्तिगत विकास और आत्मसम्मान का भी आधार है। समाज को श्रम के महत्व को पूर्ण रूप से स्वीकार करना होगा, ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्य के लिए सम्मान प्राप्त कर सके और समाज में सकारात्मक बदलाव आ सके। शिक्षा, नीतिगत सुधार, और सामाजिक जागरूकता के माध्यम से हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं जहां श्रम को उसका उचित स्थान मिले। आइए, हम सभी मिलकर श्रम के प्रति सम्मान और गर्व की भावना को बढ़ावा दें, क्योंकि श्रम ही वह शक्ति है जो समाज को प्रगति के पथ पर ले जाती है। 

संदीप सृजन

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here