सुशील कुमार ‘ नवीन’

गांव के मुखिया के लड़के को किसी दूसरे बच्चे ने थप्पड़ मार दिया। दूसरा बच्चा भी खाते-पीते घर का था। सो मुखिया की उसे धमकाने की सीधी हिम्मत नहीं हो पाई। मुखिया ने कारण पता किया तो गलती उसी के लड़के की निकली। मुखिया चुप्पी साध गया। इसी बीच उसके किसी चाहने वाले ने सोशल मीडिया पर खबर डाल दी कि फलाना के छोरे ने मुखिया के छोरे को सरेआम थप्पड़ जड़ दिया। साथ में यह भी लिख दिया कि हो सकता है अगला नम्बर मुखिया का ही हो। पिटाई का कारण क्या रहा,, इस बारे में किसी ने कोई चर्चा नहीं की। चारों ओर से कमेंट पर कमेंट शुरू हो गए।
उधर मुखिया बेचारा क्या करे, क्या न करे की हालत में था। डायरेक्ट बदला लेने की हिम्मत उसकी नहीं थी और समर्थक लगातार आग में घी डाल उसे और भड़काने में जुटे थे। एक ने सुझाया कि पंचायत बुला लो। पंचायत में अपने ही आदमी है। फैसला भी हक़ में करवा लेंगे। सरपंच को यह बात जम गई।
गांव में सुबह बड़ी चौपाल में पंचायत की मुनादी करवा दी गई। साथ में चौकीदार के माध्यम से दूसरे पक्ष को भी पंचायत में हाजिर होने की सूचना भिजवा दी। गांव वाले भी इस मामले में लिए जाने वाले फैसले को जानने के इच्छुक थे। सुबह बड़ी चौपाल ग्रामीणों से भर गई। सरपंच की तरफ से गांव के एक बुजुर्ग ने मामले को रखा। इस पर पंचायतियों ने पहले थप्पड़ मारने वाले लड़के से मारपीट का कारण पूछा। कारण जान सब हैरान रह गए। लड़के ने बताया -यह बार-बार हमारी गली में अपनी महंगी बाइक लेकर चक्कर काट रहा था। गली की बहु-बेटियों के गुजरते समय बाइक से पटाखों की आवाज निकाल रहा था। इसको समझाया तो हमें ही भला-बुरा कहने लगा। अकड़ दिखाते हुए बोला- मेरा बाप गांव का सरपंच है। मैं तो यूँ ही बाइक से पटाखे बजाऊंगा। ये महंगी बाइक घर पर खड़ी करने को थोड़े ही न ली है। इसी दौरान परिवार की लड़कियां वहां से गुजर रही थी। हंसते हुए उसने लड़कियों के पीछे चलते हुए बाइक से फिर पटाखे छोड़े। अब सहन नहीं हुआ। तो इसको मजा चखाना पड़ा। इसमें भी गलती हो तो सजा दे देना।
सरपंच का लड़का अब आंख ऊपर नहीं उठा पा रहा था। गलती साफ दिख रही थी। पर पंचायती तो सरपंच के थे। वे सजा सरपंच के लड़के को कैसे दे सकते थे। उन्होंने घुमाफिराकर थप्पड़ मारने वाले को ही घटना में दोषी करार दे दिया। उनके अनुसार मारना गलत था। बात पंचायत में रखी जानी थी। हम इसे सजा देते। यह तो सीधे-सीधे पंचायत का ही अपमान है। पंचायतियों ने उसे कहा-या तो इस घटना के लिए माफी मांग ले, नहीं तो दंड भरने को तैयार रहे। लड़के ने माफी से साफ इंकार कर दिया। कहा-पंचायत उसकी गलती मानती हो तो उसे सजा दे। गलती करने वाले से मैं माफी नहीं मानूंगा।
लड़के के अड़ियल रवैये पर बात पंचायत की इज्जत पर आ गई। गलती सरपंच के लड़के की थी। पर पंचायत की अवहेलना की चादर से गलती उन लोगों ने ढक दी थी। पंचायत में अधिकांश लोग लड़के पर दंड लगाने के खिलाफ थे। विचार-विमर्श कर पंचायतियों ने सरपंच के लड़के से पूछा कि उसे कितने थप्पड़ मारे गए। उसने अपनी प्रतिष्ठा का ध्यान रखते हुए कहा- एक थप्पड़ लगा। शेष का तो मैंने मौका ही नहीं दिया। इस पर थप्पड़ मारने वाले लड़के को 50 रुपये दंड के रूप में जमा करवाना तय किया गया। साथ में कहा कि भविष्य में इस तरह थप्पड़ मारने की घटना न हो इसका विश्वास दिलाना होगा। लड़के ने सिर झुकाकर दंड स्वीकार किया और बोला- दंड भरने से पहले एक बार मैं आप सबके सामने सरपंच के लड़के से मिलना चाहता हूं। इस पर सरपंच के लड़के को बीच में बुलाया गया। थप्पड़ मारने वाले लड़के ने हालचाल पूछा और अपने दोनों हाथ फैलाए। सरपंच के लड़के ने सोचा कि यह गले मिलना चाह रहा है सो वह भी आगे की ओर बढ़ा। उधर थप्पड़ मारने वाले लड़के के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। जैसे ही सरपंच का लड़का पास आया, उसने ताबड़तोड़ चार करारे थप्पड़ उसके गाल पर और जड़ दिए। पंचायती और ग्रामीण उसे कुछ कहते इससे पहले लड़के ने जेब से 500 का एक नोट निकाल पंचायत प्रमुख की ओर कर दिया। कहा-लो जी 500 रुपये। यो आदमी भी गलत और इसका हिसाब भी गलत। मैंने उस समय इसके एक नहीं चार थप्पड़ मारे थे। 50 रुपये थप्पड़ के हिसाब से दो सौ रुपये तो उन थप्पड़ के, दो सौ आज के, और सौ रुपए एडवांस पहले ही ले लो। इसकी हरकतों पर थप्पड़ न लगे इसकी गारंटी मैं नहीं दे सकता। गलती करेगा तो थप्पड़ लगने पक्के हैं। यह कह लड़का वहां से चला गया। अब पंचायतियों के पास कहने को कुछ शेष नहीं था। लड़के ने उनके ही तीर को उन पर ही चला पंचायत का यह फैसला अमर कर दिया।
(नोट: कहानी मात्र मनोरंजन के लिए है। इसे अपने मजे के लिये प्रशांत भूषण पर लगे जुर्माने से न जोड़ें।)