
भारतीय राजनीति में अल्पसंखयकों को दरकिनार कर बहुसंयवाद की राजनीति करने के आरोपों का सामना करने वाली भारतीय जनता पार्टी की नई सरकार ने पिछले दिनों देश के अल्पसंखयक समाज के सामाजिक व आर्थिक सशक्तिकरण के नाम पर कई बड़ी योजनाओं की घोषणा की। इन योजनाओं के द्वारा केंद्र सरकार ने पहली बार अल्पसंखयकों के प्रति अपनी हमदर्दी जताने व उनके उत्थान की इच्छा ज़ाहिर की। हालांकि इस पूरी घोषणा में कहीं भी मुसलमान शब्द का उल्लेख नहीं किया गया बल्कि सभी योजनाएं ‘भारतीय अल्पसंखयक समाज के सामाजिक व आर्थिक सशक्तीकरण के लिए अगले पांच वर्षों में अमल में लाने की बात कही गई है। जहां तक अल्पसंखयक समाज का प्रश्र है तो राज्यवार इसके आंकड़े अलग-अलग हैं। देश का बहुसंखयक हिंदू समाज भी पंजाब,मिज़ोरम,मणिपुर,मेघालय,ज मू-कश्मीर, नागालैंड,अरूणाचल प्रदेश तथा लक्षद्वीप जैसे राज्यों में अल्पसं यक है। तो क्या इन राज्यों के ‘अल्पसं यकों को भी सामाजिक व आर्थिक सशक्तीकरण का अवसर दिया जाएगा? यदि नहीं तो क्यों? दरअसल इस योजना के घोषित होने से पहले देश में अल्पसं यकों की राज्यवार परिभाषा को भी स्पष्ट किया जाना चाहिए।
केंद्रीय अल्पसं यक मंत्रालय की ओर से देश के अल्पसंखयक समाज के सामाजिक व आर्थिक सशक्तीकरण के लिए जो मु य घोषणाएं की गई हैं उनमें अगले पांच वर्षों में पांच करोड़ छात्रों व छात्राओं को छात्रवृति दिए जाने की घोषणा शामिल है। बताया गया है कि ई-एजुकेशन,रोज़गार,सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण कार्यक्रम के अंतर्गत् आगामी पांच वर्षों में प्री मैट्रिक,पोस्ट मैट्रिक,मैट्रिक कम मीन्स जैसी योजनाओं द्वारा पांच करोड़ अल्पसं यक विद्यार्थियों को छात्रवृति दिए जाने का प्रस्ताव है। इनमें पचास प्रतिशत से अधिक भागीदारी लड़कियों की होगी। इसके अतिरिक्त अल्पसं यकों से संबंधित शैक्षणिक संस्थाओं के लिए पर्याप्त भाषागत सुविधाएं मुहैया कराने का भी प्रस्ताव है। इसके तहत प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम के माध्यम से आईटीआई,पॉलिटैक्रिक,गल्जऱ् हॅास्टल,स्कूल-कालेज जैसे आवासीय विद्यालय तथा कॉमन सर्विस सेंटर आदि का निर्माण शुरु किया जाएगा। इस घोषणा से पूर्व गत् दिनों मुसलमानों के सबसे प्रमुख त्यौहार ईद के अवसर पर केंद्र सरकार ने देश के पांच करोड़ मुसलमानों को स्कॉलरशिप देने की घोषणा कर भारतीय मुसलमानों को $खुश करने का भी प्रयास किया। $गौरतलब है कि उपरोक्त सभी घोषणाओं का संबंध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सत्ता में दोबारा आने के बाद दिए गए उनके उस पहले भाषण से सीधे तौर पर है जिसमें उन्होंने देश के अल्पसं यकों के साथ कथित रूप से अब तक होते आ रहे ‘छल में छेद करने की बात कही थी।
अब यदि हम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेतृत्व में चलने वाली मोदी सरकार के पिछले अर्थात् प्रथम कार्यकाल की बात करें तो उस समय इसी सरकार ने सत्ता में आते ही सबसे पहले भारतीय मुसलमानों को हज में दी जाने वाली सब्सिडी को समाप्त करने की घोषणा की थी। इतना ही नहीं बल्कि आज़ादी के बाद से लेकर अब तक यही दक्षिणपंथी संगठन जो अलग-अलग नामों से राजनीति में सक्रिय रहे, वे किसी भी सरकार द्वारा अल्पसं यकों $खासतौर पर मुसलमानों के आर्थिक अथवा सामाजिक सशक्तीकरण हेतु घोषित की जाने वाली किसी भी योजना का यह कहकर विरोध करते रहे हैं कि यह सब ‘तुष्टीकरण की राजनीति है। यही संगठन इसे ‘वोट बैंक की राजनीति का नाम भी देते रहे हैं। इसी दक्षिणपंथी विचारधारा के कई नेता सार्वजनिक रूप से यह भी कह चुके हैं कि देश के बहुसं य हिंदू समाज की मेहनत से जमा किया गया टैक्स का पैसा देश के मुसलमानों के लिए घोषित की जाने वाली कल्याणकारी योजनाओं पर क्यों खर्च किया जाता है? और इसी प्रकार की बातें कर देश के बहुसं य व अल्पसं य समाज के मध्य दरारें और गहरी करने की कई दशकों तक लगातार कोशिश की गई। क्या आज देश के लोगों को यह पूछने का अधिकार नहीं कि जिसे केंद्र सरकार भारतीय अल्पसं यकों का सामाजिक व आर्थिक सशक्तीकरण कह रही है, जिस प्रकार देश के पांच करोड़ मुसलमानों को ईद के दिन छात्रवृति दिए जाने की घोषणा कर भारतीय राजनीति के इतिहास में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर मुसलमानों को ‘ईदी’ दिए जाने की घोषणा की गई है इसे सशक्तीकरण के बजाए तुष्टीकरण का नाम क्यों न दिया जाए? इसे वोटबैंक की राजनीति आ$िखर क्यों न माना जाए?
भारतीय जनता पार्टी
के नरेंद्र मोदी व अमित शाह से लेकर लगभग सभी बड़े नेताओं का मीडिया के समक्ष एक ही स्वर सुनाई देता था कि वे धर्म और राजनीति के आंकड़ों में उलझने के बजाए सीधे तौर पर 130 करोड़ भारतीयों के कल्याण की बात करते हैं। गुजरात के मु यमंत्री रहते हुए भी नरेंद्र मोदी हमेशा 9 करोड़ गुजरातियों के हितों की दुहाई दिया करते थे। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने से भी यही कहकर उन्होंने इंकार किया था कि वे 9 करोड़ गुजरातियों के बारे में योजनाएं बनाते हैं न कि किसी धर्म विशेष को मद्देनज़र रखते हुए। परंतु आज मोदी सरकार देश के अल्पसं यकों के कल्याण हेतु तरह-तरह की घोषणाएं करती नज़र आ रही है। इनमें कई घोषणाएं ऐसी भी हैं जिन्हें पुन: घोषित किया जाना भी कह सकते हैं। जैसे कि सरकार के अनुसार देश के मदरसों में मु यधारा की शिक्षा को प्रोत्साहित करने हेतु इसमें हिंदी,अंग्रेज़ी,गणित व विज्ञान की शिक्षा भी दी जाएगी। परंतु मदरसों में यह सभी शिक्षाएं वर्षों पूर्व से दी जा रही हैं। परंतु यदि इनका और अधिक आधुनिकीकरण किया जाता है तो यह स्वागत के योग्य होगा।
राजनैतिक विश£ेषकों का यह मानना है कि मोदी सरकार द्वारा यह सभी फैसले इसलिए लिए जा रहे हैं ताकि देश के लगभग 18 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित किया जा सके। साफतौर पर तुष्टीकरण व वोटबैंक की राजनीति का वही खेल जो कथित रूप से देश की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों द्वारा खेला जाता था उसी रास्ते पर भाजपा ने भी चलना शुरु कर दिया है। परंतु भाजपा तथा अन्य तथाकथित मुस्लिम तुष्टिकरण व वोटबैंक की राजनीति करने वाले दलों की सोच में इतना अंतर ज़रूर था कि उन संगठनों में ऐसे स्वर नहीं सुनाई देते थे या ऐसे नेताओं की मौजूदगी वहां नहीं थी जो भीड़ द्वारा मारे जाने वाले किसी अल्पसं यक समुदाय के हत्यारे के पक्ष में खड़ी दिखाई दें। भाजपा व तुष्टीकरण के तथाकथित पैरोकारों के बीच अंतर यह था कि वे बात-बात में उन्हें पाकिस्तान भेजने व घर वापसी करने जैसी बातें नहीं किया करते थे। भारतीय मुसलमानों के धर्मनिरपेक्ष होने का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर आज तक किसी भी मुसलमान को अपना नेता स्वीकार नहीं किया। कभी मुसलमान कांग्रेस के पक्ष में खड़े दिखाई दिए हैं तो कभी मुलायम सिंह यादव,काशीराम,लालू यादव,नितीश कुमार तथा ममता बैनर्जी जैसे नेताओं के पीछे खड़े नज़र आए।
कितना अच्छा हो यदि भारतीय जनता पार्टी अल्पसं यकों या मुसलमानों जैसे शब्दों का प्रयोग करने के बजाए देश के गरीबों,वंचितों तथा पिछड़ों के लिए इस प्रकार की घोषणाएं करे तथा स्वयं भी तुष्टीकरण व वोटबैंक की उस राजनीति से बाज़ आए जिसका विरोध करते हुए वह सत्ता में आई है। और यदि अल्पसं यकों को गले लगाना ही है तो अल्पसं यक विरोधी ज़हरीली भाषा बोलने वाले अपने नेताओं के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने तथा असामाजिक तत्वों द्वारा देश में विभिन्न स्थानों पर होने वाले अत्याचार पर लगाम लगाने का संकल्प ले। भय तथा आतंक से मुक्ति की गारंटी अल्पसं यकों को भाजपा के ज़्यादा करीब ला सकती है।
तनवीर जाफरी