
छुआछूत का खेल अब,फैला देश विदेश
कोरोना मिल जाय कब, बदल बदल कर भेष।
सन्नाटा पसरा हुआ,कोरोना शैतान,
खाये चमगादढ़ कोउ,जाय कोउ की जान।
सन्नाटा गहरा हुआ , भीतर झंझावात।
कोरोना का दायरा,उपजाये अवसाद,
बेचैनी बढ़़ती रहीं,मैं ढूँढू आल्हाद।
सन्नाटे की कैद में, शोर है गिरफ्तार,
कोरोना ने रोक दी, जीवन की रफ़्तार।
तब्लीगी आतंक का, वार बिना हथियार,
यहाँ ज़रा सा थूकिये,कोरोना विस्तार।
बीस बीस में हुआ था, कोरोना का काल,
मानुष घर में कैद था,डरा डरा बेहाल।
कोविड उन्निस से हुई,मानवता लाचार,
सब उपाय फीके पड़े, नहीं कोउ उपचार।
वुहान में पैदा हुआ, फैल गया चहुँ ओर,
अंत कहाँ कब होयगा,दिखे न कोई छोर।
घर घर मानुष क़ैद है, कोरोना की मार,
खिड़की खिड़की खोलना,धीरे धीरे द्वार।
घड़ियाँ चलती जा रहीं,रुका रुका सा वक़्त,
ख़ुश दिखता कोई नहीं,हर व्यक्ति ही त्रस्त।
बीस की त्रासदी,जिसका दिखे न अंत,
कोरोना के मामले,हर दिन बढ़ें अनंत।
दिल्ली हो या मुबई,या कि अहमदाबाद,
पसरा कोरोना जहाँ, जन जीवन बर्बाद।
रिश्ते भी डिजिटल हुए, कोविड उन्निस जाल,
मिलना जुलना बंद है,बस कर लीजे काल।
बहुत तबाही मचा ली, जा अब जा तू चीन,
चीन से आया है तू,जा हो वहीं विलीन।
जल्दी जायेगा नहीं, कोविड ये उन्नीस,
खाड़ी में बंगाल की,ऐम्फान उठाये सीस।
आने को एम्फान है, ख़तरनाक तूफान,
कोविड उन्निस का कहर दोनों लेंगे जान।