उत्तराखंड के अनजाने पर्यटन स्थल 

डा. घनश्याम बादल

यदि पहाड़ों का सौन्दर्य देखने की ललक हो तो उत्तराखंड चलें आएं. इससे बेहतर जगह आपको शायद ही अन्यत्र मिले । उत्तराखंड ऐसा अकेला राज्य है जहां चार धामों में से दो धाम बद्रीनाथ व केदारनाथ अवर्णनीय सुंदरता व पुण्य तथा धर्म के साथ मौजूद हैं। इनके अलावा भी यमुनोत्री, गंगोत्री,लंका,गऊमुख,तपोवन, नंदनवन,रक्तवन,हर्षिल,मंसूरी,हरिद्वार,

ऋषिकेश जैसे एक से बढ़कर एक धार्मिक व पर्यटन स्थलों से भरा पड़ा है । इसके अलावा भी  राजाजी नेशनल पार्क व  जिमकार्बेट नेशनल पार्क जैसे प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर वन क्षेत्र तो हैं ही नदियों के रूप में गंगा, यमुना, भागीरथी, जाह्नवी, नीलगंगा, बाणगंगा जैसी छोटी नदियां उत्तराखंड की सुंदरता को चार चांद लगाती हैं ।    

   घूमने फिरने, रहने व खाने पीने के लिहाज से उत्तराखंड़ में इतना कुछ है कि मन तरसता ही रह जाता है बार बार आकर भी ।  हरिद्वार एवं ऋषिकेश भले ही भीड़ भरे हों मगर पवित्र गंगा के दर्शन सारी थकान हर लेते हैं।  यहां लक्ष्मण झूला, रामझूला, गीता भवन, मुनि की रेती ,शिव मंदिर  देखने के साथ साथ आप बोटिंग, राफ्टिंग, केनाॅइंग, क्याकिंग जैसे वाटर गेम्स  का आनंद भी भरपूर मात्रा में ले सकते हैं । 

   ट्रेकिंग पसंद है तो गीता भवन के पास से महज 20 -22  किमी की दूरी पर ही बसे नीलकण्ठ धाम हो आइए  पर ध्यान रहे कि  यहां बारिश अक्सर होती रहती है और जुलाई व अगस्त यानी कि श्रावण के महिने में यहां कांवड़ की वजह से भारी भरकम भीड़़ भी रहती है लेकिन यहां भिखारियों व बहरूपियों तथा कोढ़ियों जैसा मेकअप किये बैठे मांगने वालों से तो हरिद्वार व ऋषिकेश से भी ज्यादा सावधान रहना होगा वरना तो आप अपनी जेब खाली ही समझें । 

      यदि गंगोत्री धाम की यात्रा पर निकलेंगे तो समझिये कि  कि आप धरती पर ही स्वर्ग का आनंद ले रहे हैं । हरिद्वार पार करके व ऋषिकेश से थोड़ा पहले ही आप नरेंन्द्रनगर होते हुए न्यू टिहरी टाउन से गुजरेंगें तो वहां आपको एक साथ ही खंडन और मंडन का नज़ारा देखने को मिल जाएगा । टिहरी डैम के बनने के क्रम में पुराना टिहरी इस डैम में डूब गया है और उसके स्थान पर  ही न्यू टिहरी टाउन अस्तित्व में आया है । आज भी बांध का जल अगर ठहरा हुआ और साफ हो तो पुराने टिहरी के अवशेष उसमें नज़र आ जाते हैं ।   इस ऐतिहासिक कस्बे में आज भी इतिहास और वर्तमान की झलक देखी जा सकती है । टिहरी से उत्तरकाशी की तरफ जाकर एक स्थान  पर आप फिर से ‘‘इधर जाऊं या उधर जाऊं’’ की पशोपेश में पड़ सकते है क्योंकि यह वह जगह है जहां से एक रास्ता यमुनोत्री तो दूसरा गंगोत्री की तरफ़ जाता है. अब यह आप पर है कि आप कहां पहले जाएं और कहां बाद में परंतु देखने योग्य दोनों ही स्थान हैं । 

    चलिए सबसे पहले आप को भी गंगोत्री के ही रास्ते पर लिये चलते हैं । उत्तरकाशी से गंगोत्री के लिये सीधी बस सेवा उपलब्ध है पर यदि प्राकृतिक सौंदर्य का जी भर कर आनंद लेना है तो एक गाइड़ लीजिए और पहाड़ी पगडंडी पकड़ लें, ट्रेकिंग का भी मज़ा आएगा और प्रकृति की सुंदरता का भी रसपान करते चलेंगें । हां, इतना जान लीजियगा कि थकान भी खूब होगी सो अपनी क्षमता के अनुसार ही विकल्प चुनें । 

उत्तरकाशी से गंगोत्री के रास्ते पर आठ दस किमी की दूरी पर ही है लंका नाम का सुंदर सा और मनोरम छटा वाला रमणीय स्थान ! जी हां, आप चौंक गए होंगे भारत में लंका का नाम सुनकर परंतु यह रामायण कालीन रावण की लंका नहीं है पर है बहुत ही सुंदर, शायद उसकी सोने की लंका से भी ज्यादा मनोरम और शांति देने वाली ।

    लंका के पास ही  भैरोंघाटी  का प्राचीन व एतिहासिक मंदिर है । यह लंका से एक छोटे से पुल से जुड़ा हुआ है कहा जाता है कि इस पुल का निर्माण टिहरी के महाराजा ने कराया था क्योंकि इससे पहले यहां मौजूद एक झूला पुल से गुजरते हुए उनकी रानी का गर्भपात हो गया था 

     लंका से भैरोंघाटी पगडंडी से जाएंगें तो काफी दूर लगेगा पर पहाड़ों के बीच से शार्टकट भी है बशर्ते कि आप में खड़ी चढ़ाई चढ़ने की हिम्मत हो। यहां से गंगोत्री पास ही है रास्ते में आप पटांगना पावर हाउस,पांडव गुफा, रुद्र गंगा , व भागीरथी के संगम का भी दर्शन कर लेंगे ।

    द्रौपदी कुंड व उत्तरागर्भगृह भी आप को महाभारतकालीन पांडवों के  संघर्षों की याद दिला देगा । यहीं पर गौरी कुंड भी मौजूद है । गंगोत्री पहुंच कर आराम फरमाएं या सूरज कुंड में रौद्र रूप  में बहती गंगा के दर्शन से थकान दूर करें।  वैसे पास ही गढ़वाल मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस भी है । गंगोंत्री मंदिर में दर्शन कर पुण्य का संचय जरूर कीजिए।  कहा जाता है कि यहां गंगा के दर्शन करने से जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं । 

   यहीं पर एनआईएच का गंगा में सिल्ट के स्तर व गलेशियरों के खिसकने के अध्ययन का केंद्र भी स्थापित है । रात में मई जून में भरी ठंड आपकी कंपकंपी छुटा दे तो आश्चर्य न कीजिएगा इसलिए गर्म कपड़े साथ ले जाना न भूलें ।

   गंगोत्री घूम कर आप चीड़बासा व भोजबासा ज़रूर जाएं और वहां से भोजपत्र साथ लाना न भूलें । यहां स्लीपिंग बैग्स में सोने का भी एक अलग ही मज़ा है ।

   चीड़बासा से गऊमुख भी पास ही है यहां के पावन सौन्दर्य के तो कहने ही क्या! हालांकि अब प्रदूषण यहां तक भी पहुंच गया है पर मैदानो से तो कम ही है । गाय के मुख की आकृति वाली  चट्टानों से निकली छोटी सी गंगा को देखकर यकीन नहीं आता कि यही गंगा इतनी विशाल भी हो सकती है। रास्ते में नारंगी चेांच व पंजों वाले कौए भी दिखाई देंगें जो आप का मन ही हर लेंगें, और वासुकी, सुदर्शन व मंदा पीक की चोटियां की पावन सुंदरता की तो जितनी प्रशंसा की जाए कम है । गंगोत्री धाम को यूं ही धरती का स्वर्ग नहीं  कहा होगा किसी ने और तभी तो कहते हैं कि देव भी देवभूमि उत्तराखंड में जन्म लेने को तरसते हैं ।  

डॉ घनश्याम बादल

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here