वीरेन्द्र सिंह परिहार
वक्फ बोर्ड की असलियत को सामने लाते हुये सच्चर कमेटी ने वर्ष 2006 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वक्फ की सम्पत्ति 5 लाख है जिस पर 12 हजार कराड़े की सालाना आमदनी होनी चाहिए लेकिन वक्फ बोर्ड की सालाना कमाई मात्र 163 करोड़ रूपये है। उस हिसाब से वर्तमान में जब वक्फ बोर्ड की सम्पत्तियाँ 8 लाख से ऊपर हैं तो वक्फ सम्पत्तियों से बीस हजार करोड़ की सालाना कमाई होनी चाहिए तो मात्र 200 करोड़ वार्षिक की कमाई हो रही है। इसमें पता चलता है कि वक्फ बोर्ड में किस तरह का कुप्रबन्धन और भ्रष्टाचार व्याप्त है।
अब जरा वक्फ बोर्ड के विशेषाधिकार देखे जाने की जरूरत है। वक्फ बोर्ड यूजर के तहत किसी भी प्रापर्टी को वक्फ प्रापर्टी घोंषित किया जा सकता था। कोई इसके विरूद्ध न्यायालय नहीं जा सकता था। वक्फ बोर्ड के ट्रिव्यूनल का फैसला अंतिम था। अब वक्फ बोर्ड में संशोधन के तहत मोदी सरकार ने इससे सम्बन्धित धारा 40 को हटा दिया है। वस्तुतः इस तरह से भूमि माफिया की मनमानी और लूट को रोकने का प्रावधान किया गया है। हकीकत यह कि किसी जमान पर पाँच बार नमाज पढ़ ली गई तो वक्फ वाई यूजर हो जाती थी। जिसका कोई रिकार्ड नहीं, वह भी वक्फ की सम्पत्ति हो जाती थी। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में वक्फ की 1 लाख 21 हजार की सम्पत्ति में 1 लाख 12 हजार के कागजात नहीं। अब कागज हैं या नहीं, कह दिया कि हमारी है तो हमारी हो गई।
वक्फ बोर्ड कोई इस्लाम का अनिवार्य अंग भी नहीं है। कई मुस्लिम देशों में वक्फ बोर्ड नहीं है। कहा जा रहा है कि वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति का सर्वे सरकारी अधिकारी करेंगे। अब जब मंदिरों की सम्पत्ति का सर्वे सरकारी अधिकारी करते हैं तो वक्फ का क्यों नहीं ? क्या कानून के शासन में किसी संस्था को ऐसी छूट दी जा सकती है, जिसमें सरकार की कोई भूमिका ही न हो। बताया जाता है कि वक्फ बोर्ड की वर्तमान में 31 लाख एकड़ जमीन है जो वर्ष 2013 तक मात्र 9 लाख एकड़ थी।
वस्तुस्थिति यह है कि वक्फ बोर्ड की जो कार्यपद्धति है और जो यह चंद लोगो की मुट्ठी में कैद है, उसके चलते इसके कई घोटाले सामने आ चुके हैं। कर्नाटक की हाई ग्राउंड पुलिस ने कर्नाटक राज्य वक्फ बोर्ड के पूर्व सी.ई.ओ के विरूद्ध 4 करोड़ रूपये से अधिक की हेरा-फेरी पर केस दर्ज किया। इस सम्बन्ध में 26 लाख से मध्यप्रदेश वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रहे रियाज खान को पुलिस ने 1 जुलाई 2024 को गिरफ्तार किया। मध्यप्रदेश में 6.5 करोड़ की वक्फ सम्पत्तियों को 2009 में गुफराने आजम के अध्यक्षीय कार्यकाल में घोटाला किया गया जिस पर पुलिस द्वारा 420 समेत अन्य धाराओं में मामला दर्ज किया गया। उज्जैन में व्यस्त और व्यावसायिक क्षेत्र भी करोड़ो की वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति को वक्फ के कर्ता धर्ताओं ने कौड़ियों के मोल ठिकाने लगा दिया।
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के सुन्नी वक्फ बोर्ड का 15 वर्षों से 7.5 करोड़ की आय का कोई हिसाब-किसान नहीं है। कानपुर क्षेत्र में 20 करोड़ की वक्फ जमीन को फर्जी तौर से बेचने का आरोप है। दिल्ली वक्फ बोर्ड के इमाम सिद्दीकी पर ई.डी. का आरोप है कि आप विधायक अमानतुल्लाह खान के कहने पर गलत कमाई से 36 करोड़ की खरीदी की गई और कुल मिलाकर 100 करोड़ की सम्पत्ति का दुरूपयोग किया गया. नई दिल्ली वक्फ बोर्ड में 286 करोड़ का घोटाला अमानतुल्लाह के संरक्षण में किया गया। इसी के चलते अमानतुल्लाह को ई.डी. द्वारा गिरफ्तार भी किया गया। कर्नाटक के वक्फ बोर्ड की कुल 54000 एकड़ भूमि में से 29000 एकड़ भूमि राज्य के मुस्लिम नेताओं द्वारा लूट ली गई। कोलकाता में वक्फ बोर्ड द्वारा 1000 करोड़ रूपये से अधिक के किये गये घोटाले की जाँच सी.बी.आई. कर रही है।
वहीं वक्फ सम्पत्तियों का किस तरह से दुरूपयोग हो रहा है, इसके लिये मध्यप्रदेश का उदाहरण पर्याप्त होगा। मध्यप्रदेश वक्फ बोर्ड की 15008 सम्पत्तियाँ है। इनमें 90 प्रतिशत सम्पत्तियों पर अवैध कब्जा हो गया है। इससे वक्फ बोर्ड को उन सम्पत्तियों से कोई कमाई नहीं हो रही है। भोपाल में प्लेटफार्म नम्बर 1 की तरफ से सराय के रूप में बड़ी प्रापर्टी है जिस पर कुछ निजी लोगो का कब्जा है और बोर्ड को कोई आमदनी नहीं हो रही है। भोपाल टाकीज के पास बड़ा बाग कब्रिस्तान की जमीन पर बनी दुकानों से बोर्ड को एक रूपये भी किराया नहीं मिल रहा है जबकि इन दुकानों का किराया लाखों रूपये है। माडल ग्राउण्ड स्टेशन रोड पर वक्फ बोर्ड की 15 दुकानें हैं पर इनकी भी यही स्थिति है। करीब-करीब यही स्थिति पूरे प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में है।
ऐसी स्थिति में जब मोदी सरकार ने वक्फ बोर्ड में व्याप्त मनमानी, लूट अराजकता एवं जंगल राज को समाप्त करने के लिये और विधि में शासन के समक्ष उत्तरदायी बनाने के लिये और वक्फ सम्पत्ति का लाभ जरूरतमंद मुसलमानों को पहुंचाने के लिये वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक संसद में पारित कराया जो अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात अधिनियम बन चुका है, तब विरोधी दल, मुस्लिम नेता और मुल्ला-मौलवी कह रहे हैं कि यह मुसलमानों के विरूद्ध जंग है। मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है. उनके धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप किया जा रहा है। इस कानून के माध्यम से मुस्लिमों के कब्रिस्तान, मस्जिदो और दरगाह छीन ली जायेगी। यहाँ तक कि मरने-मारने की बाते होने लगी। पूरे देश के कई शहरों में मुसलमानों का एक बड़ा तबका सड़को पर उत्तर पड़ा- जैसे कोई जेहाद का अवसर आ गया हो। ओबैसी समेत कई मुस्लिम संगठन और राजनैतिक दल ऐसे सुप्रीम कोर्ट दौड़े चले गये हैं, जैसे सुप्रीम कोर्ट को इंतजार हो कि ये आयें और हम वक्फ बिल संशोधन को निरस्त कर दें।
लेकिन तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है, भोपाल समेत कई जगहों मुसलमानों मुसलमान इस कानून के पक्ष में भी उतरे और कहा गया कि इस कानून के माध्यम से मोदी सरकार ने इतनी जल्दी मुसलमानों को दूसरी ईदी दी है। वक्फ बिल के समर्थन में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर में सैकड़ों मुस्लिमों ने समाजवादी पार्टी छोड़ दी। इस कानून का प्रभाव मुस्लिम महिलाओं में ज्यादा दिख रहा है।
वस्तुतः वक्फ बिल के संदर्भ में जो प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है, वह वोट बैंक की कुत्सित राजनीति का नतीजा है. इसीलिये उन्हे समान नागरिक संहिता से परहेज है, समतावादी, आधुनिक और जनतांत्रिक कानूनों से विरोध है लेकिन वह हंगामा चाहे कितना मचा ले, देश जिस दिशा में चल पड़ा है, वह रूकने वाला है नहीं।
वीरेन्द्र सिंह परिहार