वक़्फ़ और वक़्फ़ बोर्ड दो अलग अलग चीजे हैं

पंकज गांधी जायसवाल

वक़्फ़ और वक़्फ़ बोर्ड दो अलग अलग चीजे हैं लेकिन विमर्श के दौरान इसे एक में घालमेल हो जाने से जनता और आम मुसलमान गुमराह हो जा रहें हैं. चूंकि बहुत से लोग डिटेल और तकनीकी स्तर पर नहीं जा पाते तो वो अक्सर इन सतही विमर्शों के जाल में फंस जाते हैं. यह मसला धार्मिक के साथ साथ आर्थिक विमर्श का भी विषय है. आइये आज हम इन दोनों को समझते हैं.

वक़्फ़ एक इस्लामिक व्यवस्था है जो कि एक दान की गई संपत्ति या धर्मार्थ ट्रस्ट होता है जबकि वक़्फ़ बोर्ड एक सरकारी व्यवस्था है. वक़्फ़ में सरकार या व्यवस्था द्वारा कोई बदलाव नहीं किया जा सकता क्यूंकि इसकी उत्पत्ति, व्यवस्थापन और निष्पादन इस्लामिक नियमों के द्वारा होता है. वहीं वक़्फ़ बोर्ड चूंकि सरकार के द्वारा बनाया हुआ है, अतः यह सरकार की प्रणालियों के अधीन होता है.

वक़्फ़ एक इस्लामिक धर्मार्थ संस्था है जिसमें एक व्यक्ति अपनी संपत्ति या जमीन को धार्मिक या सामाजिक भलाई के लिए स्थायी रूप से दान कर देता है। यह संपत्ति फिर किसी खास उद्देश्य के लिए हमेशा के लिए नियत हो जाती है और उसे बेचा या व्यक्तिगत उपयोग के लिए नहीं लिया जा सकता। मसलन किसी ने एक मस्जिद, कब्रिस्तान, स्कूल या अस्पताल के लिए ज़मीन वक़्फ़ कर दी। वहीँ वक़्फ़ बोर्ड एक सरकारी व्यवस्था है जो वक़्फ़ की गई संपत्तियों का प्रबंधन करता है। इसका गठन वक़्फ़ अधिनियम के तहत हुआ है और हर राज्य का अपना एक वक़्फ़ बोर्ड है।

इसके मुख्य कार्य में वक़्फ़ जिन इस्लामिक उद्देश्यों के लिए दानदाताओं द्वारा किया गया है, उसका पालन मुतवल्लियों द्वारा किया जा रहा है या नहीं, इसे सुनिश्चित करना होता है जिसमें शामिल है वक़्फ़ संपत्तियों का रिकॉर्ड रखना, उनकी सुरक्षा और देखभाल सुनिश्चित करना एवं किसी भी प्रकार की अनियमितता या वक़्फ़ के उद्देश्यों एवं सम्पत्तियों पर हो रहे अतिक्रमण को रोकना।

वर्तमान में वक़्फ़ सुधार बिल के कुछ प्रावधानों की चर्चा यहां करना चाहता हूं कि कैसे वह वक़्फ़ को लेकर इस्लामिक मूल सिद्धांतों को और मजबूत और इसकी रक्षा करने वाला है. जैसे मुतवल्ली को लीजिये. मुतवल्ली वक्फ संपत्ति का प्रबंधक या संरक्षक होता है। यह व्यक्ति वक्फ संपत्ति की देखभाल और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होता है. इसकी नियुक्ति मौखिक नहीं होनी चाहिये अन्यथा यह गफलत, विवाद और साजिश का आधार हो सकता है तथा वक़्फ़ की सम्पत्तियों और इसके उद्देश्यों पर खतरा आ सकता है. पुराने वक़्फ़ कानून में इसके मौखिक नियुक्ति का प्रावधान था. वर्तमान सुधार बिल में मौखिक नियुक्ति के प्रावधान को हटाया गया है. मेरी नजर में यह कालसुसंगत व न्यायसंगत है और गफलत, विवाद और साजिश की आशंकाओं को ख़त्म करने वाला है.

दूसरा, पुराने वक़्फ़ कानून में कोई भी भी व्यक्ति वक़्फ़ के लिए अपनी संपत्ति का दान करता है. “कोई भी व्यक्ति” शब्द व्यापक तौर पर सभी गैर मुस्लिमों और सरकार को भी शामिल कर लेता है, जबकि वक़्फ़ इस्लामिक व्यवस्था है और मुसलमानों पर लागू होने के लिए बनाई गई है. अतः मेरे मत में चूँकि वक़्फ़ मुस्लिम कानून के तहत दान दी गई सम्पत्तियों के प्रबंधन के लिए है, अतः इसके तहत वक़्फ़ में मुस्लिम द्वारा दान में दी गई सम्पत्तियों का ही नियम रखना काल सुसंगत और न्यायसंगत होगा. यह इसके दुरूपयोग को रोक कर मुस्लिम धर्म की मूल भावना की रक्षा करेगा।

वर्तमान सुधार बिल में वक़्फ़ करने वाले की पहचान प्रैक्टिसिंग मुस्लिम करना और उनका पिछले 5 सालों से प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होना हालांकि वक़्फ़ के दुरूपयोग को रोक सकता है लेकिन मेरा मत है कि भविष्य के काल अवधि में यहां प्रैक्टिसिंग मुसलमान शब्द एक भ्रम की स्थिति पैदा कर सकता है. सरकार सिर्फ मुस्लिम शब्द का प्रयोग करे तो भविष्य में परिभाषा और इसके लागू होने पर भ्रम नहीं होगा.

तीसरा, पुराने वक़्फ़ के कानून में वक़्फ़ करने वाला संपत्ति का मालिक होना चाहिये जैसी कोई शर्त नहीं थी. मेरे हिसाब से होनी चाहिए थी. जिस संपत्ति के आप मालिक नहीं है उसे आप किस हक़ से दान कर सकते हैं? वर्तमान सुधार बिल में यदि कोई संपत्ति वक़्फ़ करना चाहता है तो सबसे पहले उसके पास ऐसा करने के लिए उस संपत्ति का क़ानूनी मालिकाना हक़ होना चाहिए एक युक्तिसंगत सुधार है. मुझे लगता है कि वक़्फ़ संसोधन का यह सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा. यह वक़्फ़ और इस्लाम की मूल भावना की रक्षा कर मालिकाना हक़ वाले स्वैच्छिक दान की रक्षा करने वाला होगा तथा यह वक़्फ़ को गफलत, विवाद, कब्जे और साजिश जैसे विवादों से रक्षा करेगा.

चौथा, मेरे मत में वक़्फ़ बोर्ड खुद में एक ‘पब्लिक ट्रस्ट’ नहीं है। यह एक वैधानिक नियामक संस्था है, ठीक वैसे ही जैसे चैरिटी कमिश्नर ट्रस्टों की निगरानी करता है। जैसे आजम खान कुम्भ मेला के प्रभारी मंत्री थे, यह प्रशासनिक व्यवस्था थी. वैसे ही यह वक़्फ़ बोर्ड है. यह सरकार द्वारा बनाई गई प्रशासनिक व्यवस्था है. कभी कभी एक विशेष परिस्थिति आती है जब वक़्फ़ बोर्ड प्रशासनिक व्यवस्था के अलावा खुद वक़्फ़ संपत्तियों का मैनेजर भी बन सकता है लेकिन यह विशेष परिस्थितियों में अल्पकाल की अंतरिम व्यवस्था है जब किसी वक़्फ़ में ट्रस्टी ना हो या ट्रस्टी निष्क्रिय हो लेकिन यह अंतरिम व्यवस्था ठीक वैसी है जैसे किसी ट्रस्ट का रिसीवर नियुक्त होता है. कई बार अंतरिम व्यवस्था में जिलाधिकारी या कलेक्टर ही कुछ समय के लिए चीफ ट्रस्टी या रिसीवर या प्रशासक बन जाता है.

ऐसे ही वक़्फ़ बोर्ड ट्रस्ट ना होकर प्रशासनिक मशीनरी है जो यह देखेगा कि कानून और वक़्फ़ की मूल भावना का पालन हो रहा है कि नहीं। अतः इसमें गैर कार्यकारी सदस्यों के रूप में दो गैर मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति से कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए. यह ठीक वैसा ही है जैसे कुंभ मेला के प्रभारी मंत्री आज़म खान बन जाते हैं, जैसे चैरिटी कमिश्नर, कलेक्टर, रिसीवर या प्रशासक किसी भी धर्म का हो, उस पर आपत्ति नहीं की जा सकती. यह सुधार प्रत्यक्ष वक़्फ़ ट्रस्ट जैसे कि मस्जिद, मदरसे या अन्य इस्लामिक वक़्फ़ में किसी गैर मुस्लिम नियुक्ति की बात नहीं करता है। सरकार वक़्फ़ में सुधार नहीं कर सकती क्यूंकि यह इस्लाम की व्यवस्था है. बोर्ड में नियुक्ति कर सरकार ने अपनी व्यवस्था में सुधार किया है ना कि इस्लाम की वक़्फ़ व्यवस्था में कोई छेड़छाड़।

प्रस्तुत लेख स्वतंत्र विमर्श हेतु एक सामाजिक ज्ञान के एक जिज्ञासु छात्र के रूप में दे रहा हूं, मेरी भावना सार्वजनिक स्तर पर जनहित हेतु सामाजिक सहयोग करना है. इस लेख के पाठक इसे मानने एवं ना मानने, स्वीकार करने और ख़ारिज करने के लिए भी स्वतंत्र हैं.

पंकज गांधी जायसवाल

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