नक्सली चीफ के मरने पर तुर्की के वामपंथियों का रोना, किस बात का संकेत है?

रामस्वरूप रावतसरे

नक्सल चीफ बसवराजू की मौत के बाद एक चौंकाने वाली घटना सामने आई। तुर्की के एक वामपंथी उग्रवादी संगठन ने भारत सरकार की निंदा करते हुए एक वीडियो बयान जारी किया जिसमें एक नकाबपोश ने बसव राजू को ‘क्रांतिकारी योद्धा’ बताते हुए श्रद्धांजलि दी।

भारत सरकार के ऑपरेशन को ‘राज्य प्रायोजित हिंसा’ करार दिया गया। वीडियो ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय नक्सलियों और तुर्की के वामपंथी उग्रवादियों के बीच वैचारिक और नैरेटिव कनेक्शन मौजूद हैं। इसके अतिरिक्त तुर्की के राजनयिक कदम भी भारत के लिए चिंता का विषय बने हुए है। तुर्की के राजदूत ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार से मुलाकात कर भारत के खिलाफ एकजुटता जताई थी। यही नहीं, उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को पाकिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन बताया और कथित निर्दोष नागरिकों की मौत पर शोक व्यक्त किया था। तुर्की के विदेश मंत्री हकान फिदान ने भी पाकिस्तानी उप प्रधानमंत्री से बात कर कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के आधार पर हल निकालने की बात कही।

तुर्की के अलावा फिलीपींस के कुछ वामपंथी समूहों द्वारा भी बसवराजू को श्रद्धांजलि दी गई है। सोशल मीडिया पर फिलीपींस के कम्युनिस्ट गुरिल्ला संगठनों और कुछ मानवाधिकार समूहों ने भी भारत की कार्रवाई की आलोचना की है। जानकारी के अनुसार, दक्षिण अमेरिका, यूरोप और दक्षिण-पूर्व एशिया में सक्रिय कई लेफ्ट विंग उग्रवादी संगठनों ने भी बसव राजू के समर्थन में बयान दिए हैं। इससे यह पुष्टि होती है कि भारतीय माओवादी संगठनों के अंतरराष्ट्रीय विचारधारात्मक और नैरेटिव कनेक्शन मौजूद हैं।

नम्बाला केशव राव उर्फ बसवराजू उर्फ गगन्ना, आंध्र प्रदेश का रहने वाला था। उसने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी लेकिन युवावस्था में वामपंथी विचारधारा से प्रभावित होकर सीपीआई (माओवादी) से जुड़ गया। 2018 में उसने संगठन के तत्कालीन महासचिव गणपति की जगह ली और नक्सल संगठन का महासचिव बन गया जो संगठन में सबसे बड़ा पद होता है। वह संगठन की सेंट्रल कमेटी और पॉलिट ब्यूरो का प्रमुख सदस्य था। बसवराजू को ताड़मेटला, झीरम घाटी, बुरकापाल और जेल ब्रेक जैसे कई बड़े नक्सली हमलों का मास्टरमाइंड माना जाता है। बसवराजू पर छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से 1.5 करोड़ और केंद्र सरकार की ओर से 10 करोड़ रुपये का इनाम घोषित था। जानकारों के अनुसार वह माओवादी नेटवर्क का रणनीतिकार था और न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विचारधारा, हथियारों की आपूर्ति और फंडिंग जैसे मसलों पर भी सक्रिय भूमिका निभा रहा था।

   21 मई 2025, बुधवार को छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ के जंगलों में डीआरजी (डिस्ट्रीक रिजर्व गार्डस) और सुरक्षाबलों ने एंटी नक्सल ऑपरेशन में बड़ी सफलता हासिल की। मुठभेड़ में करीब 30 नक्सली ढेर किए गए जिनमें कई शीर्ष नेता भी शामिल थे। इस ऑपरेशन में बसवराजू की भी मौत हो गई जिसकी पुष्टि बाद में हुई। यह ऑपरेशन नक्सली आंदोलन के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ माना जा रहा है। इसे उसी तरह का ऑपरेशन बताया जा रहा है जैसे अमेरिका द्वारा ओसामा बिन लादेन या श्रीलंका द्वारा प्रभाकरन के खिलाफ चलाया गया था।

भारत के कई राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, झारखंड, ओडिशा आदि में नक्सली हमलों की साजिश और संचालन में उसकी भूमिका रही है। 2010 से लेकर अब तक हुए कई बड़े नक्सली हमलों की योजना और नेतृत्व बसवराजू ने किया था। वह लंबे समय से भूमिगत था और कहा जाता है कि वह जंगलों में घूम-घूमकर रणनीति बनाता था जिससे उसे पकड़ना बेहद मुश्किल था। बसवराजू की मौत भारत की सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक ऐतिहासिक सफलता है। इससे न केवल नक्सल नेटवर्क का शीर्ष नेतृत्व ध्वस्त हुआ है बल्कि इससे संगठन के वैचारिक मनोबल को भी भारी नुकसान पहुँचा है।

लेकिन जिस प्रकार तुर्की, फिलीपींस और अन्य देशों में बसवराजू की मौत पर प्रतिक्रियाएँ आई हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि नक्सल आंदोलन अब केवल भारत की आंतरिक चुनौती नहीं है। यह एक अंतरराष्ट्रीय वैचारिक नेटवर्क का हिस्सा बन चुका है जिसमें वामपंथी उग्रवादियों, मानवाधिकार संगठनों और राजनीतिक विरोधियों का समर्थन और सहयोग मौजूद है।

 जानकारों  की माने तो आने वाले समय में भारत को इस अंतरराष्ट्रीय नैरेटिव को चुनौती देने के लिए राजनयिक मोर्चे पर सख्त नीति, सोशल मीडिया पर निगरानी, और विचारधारात्मक काउंटर नैरेटिव विकसित करने की आवश्यकता होगी जिससे भारत में नक्सल आंदोलन की जड़ों को फिर से हरा होने से पूर्णतया रोका जा सके। जिस प्रकार भारत सरकार काम कर रही है , उससे लगता भी यही है कि जमीनी सफलता के बाद नक्सल आंदोलन की वैचारिक और राजनीतिक जमीन को भी वह बंजर करेगी।

रामस्वरूप रावतसरे

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