~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
ये धूर्तता है या कुंठा है। जो लोग ये कहते हुए नहीं अघा रहे हैं कि अजी! हम तो सेना के साथ हर वक्त खड़े हैं। लेकिन वो मोदी विरोध की आड़ में सेनाओं के शौर्य और पराक्रम पर सवाल खड़े कर रहे हैं। जबकि मंदबुद्धि से लेकर पागल व्यक्ति को भी अगर तीनों सेनाओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस सुना दी जाए तो वह ऐसी मूर्खता नहीं करेगा। जैसा तथाकथित सूरमा कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि ये कैसी देशभक्ति है जो सिर्फ़ हर वक्त सियासत को केंद्र में रख रही है। घात लगाए मौके की तलाश में है कि कब भारत सरकार और सेना को नीचा दिखाया जाए। सीज़फायर के ऐलान के बाद 10 और 11 मई 2025 को सेना ने प्वांइट टू प्वांइट हर मुद्दे की जानकारी दी। भारत की सैन्य कार्रवाई के विषय में बताया। ललकार कर पाकिस्तान को चेतावनी दी।
ज्यादा नहीं 11 मई 2025 को सेना की प्रेस कॉन्फ्रेंस के इन तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं को गौर से पढ़िए —
1. कश्मीर पर हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट है. अब केवल एक ही मुद्दा बचा है।पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) को वापस करना।इसके अलावा और कोई बात नहीं है।
2. अगर वे (पाकिस्तान) आतंकियों को सौंपने की बात करते हैं, तो हम बात कर सकते हैं। हमारा किसी और विषय पर बात नहीं करना चाहते हैं।
3. हम नहीं चाहते कि कोई मध्यस्थता करे। हमें किसी की मध्यस्थता की जरूरत नहीं है।
~ क्या अब इसके बाद और कोई ज़वाब चाहिए? अगर आप सेना पर भरोसा कर रहे हैं तो सेना की ये बातें आपके दिल-दिमाग में क्यों नहीं जा रही हैं? याकि आप सेना पर विश्वास नहीं कर रहे हैं अथवा आप केवल अपना एजेंडा चला रहे हैं। क्या आप और हम हमारे सेना प्रमुखों, रक्षा विशेषज्ञों से ज़्यादा समझदार हैं? क्या हम उनसे अधिक महानता रखते हैं जो अपने प्राण हथेली पर रखकर राष्ट्र की रक्षा कर रहे हैं। क्या आप उन पर प्रश्न चिन्ह उठा रहे हैं जिन्होंने पाकिस्तान के हर हमले को विफल किया।अपने प्राणों की आहुति दे दी लेकिन राष्ट्र रक्षा से पीछे नहीं हटे।
तीसरी बात – सरकार या सेना का एक भी ऐसा ऑफिशियल बयान लाइए जब सेना ने कहा हो कि हम युद्ध कर रहे हैं। स्पष्ट रूप से आतंकवाद के खात्मे के लिए भारत ने कार्रवाई की। आतंकियों के ठिकाने तबाह किए। पाकिस्तान ने पलटकर उन्माद दिखाया। आतंकी हमला किया।उसका पलटवार करते हुए भारत ने पाकिस्तान की औकात याद दिला दी। पाकिस्तान के कई एयरबेस से लेकर पाकिस्तान के ऑफेंसिव और डिफेंसिव सिस्टम को बर्बाद कर दिया। हालांकि इस बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं है लेकिन ख़बर ये भी है कि पाकिस्तान के न्यूक्लियर सिस्टम को भी ख़ासा नुकसान पहुंचाया है। इतना ही नहीं आगे के लिए चेतावनी भी दी कि कोई भी आतंकी हमला युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा। अर्थात् भारत आतंक के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध है। हमारी सेनाएं प्रतिक्षण दुश्मन के हर नापाक मंसूबों को ध्वस्त करने के लिए तैयार हैं। क्या इतनी स्पष्टता काफ़ी नहीं है कि – पाकिस्तान से कोई बात होगी तो पीओके वापस लेने और आतंकियों को सौंपने की होगी। अतएव अपनी तीमारदारी सेना पर सवाल दागने की जगह कहीं सर्जनात्मक कार्यों में लगाइए।
फिर जो लोग यह कहते हुए सेना पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर रहे हैं कि – अजी ! आपने तो आतंकियों के 22-23 ठिकानों को बर्बाद करने की रणनीति बनाई थी। लेकिन आपने तो केवल 9 ठिकाने बर्बाद किए। मुझे ऐसे लोगों की इस दोगलई और नीचता पर तरस आता है। वो इसलिए कि-सेना को आप सिखाएंगे कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? याकि आपसे अनुमति लेकर सेना को कार्रवाई करनी चाहिए और उसके बाद आपको रिपोर्टिंग करनी चाहिए? क्या यही चाहते हैं आप ? राष्ट्र निष्ठा समझते हैं आप? राष्ट्र निष्ठा वह है जो दृढ़-अटल-अडिग- अविचल अपने राष्ट्र के लिए बलिदान देने के लिए तत्पर हो। संकट की स्थिति में राष्ट्रनायकों के हर निर्णय के साथ बिना किसी किंतु-परंतु के खड़े हों। दृढ़ विश्वास ऐसा हो जैसे जीवन का श्वासों से होता है।
…. इसी बीच एक और नई जमात आई और 1971 का जिगरा पेश करने लगी। इंदिरा और प्रधानमंत्री मोदी की तुलना करने लगी। यह कितनी कूटनीतिक चातुर्यता भरी राजनीति है न? जो सिर्फ़ मौके की तलाश में बैठी थी कि कैसे उसे अपनी सियासी फिल्डिंग सजाने का मौका मिले। लेकिन ये क्यों भूल जाते हैं कि 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध घोषित तौर पर युद्ध था। ना कि सिर्फ़ आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई। फिर वो युद्ध बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए था।ये वही बांग्लादेश था जहां उस समय 20 प्रतिशत हिंदू आबादी थी। लेकिन आप जिस जीत का दावा कर रहे हैं।वो कैसी जीत थी? क्या आपने बांग्लादेश को भारत में मिलाया? शिमला समझौते में पाकिस्तान को 93000 सैनिक बिना शर्त के क्यों वापस किए? पाकिस्तान के द्वारा भारत के बंधक बनाए गए 54 सैनिकों को क्यों नहीं छुड़ाया? पीओके में भारतीय सेना द्वारा जीती गई 15 हज़ार दस वर्ग किमी क्यों वापस की थी? इसी क्षेत्र में शकरगढ़ स्थिति गुरुनानक देव की पुण्यभूमि करतारपुर क्यों गंवाई? इंदिरा गांधी 93000 सैनिकों के बदले पीओके वापस करने की शर्त भी रख सकती थीं न? ऐसा क्यों नहीं हुआ? फिर 2024 में बांग्लादेश में क्या हुआ? जिस 1971 के क्रेडिट लेने की होड़ में आप बौराए हुए हैं। उस क्रेडिट से भारत को क्या फायदा हुआ? उलटे वहां हिंदुओं का नरसंहार जारी है। अतएव 1971 के ये किस जिगरे की बात कही जा रही है? जो सिर्फ़ भारत के लिए नासूर दर्द बना हुआ है।
अब और भी पीछे चलिए…1948 में कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र में कौन लेकर गया? धारा 370 और 35 ए से किसने कश्मीर में आतंक को पनाह देने की व्यवस्था की? संयुक्त राष्ट्र संघ में समझौता कर किसने पाकिस्तान को थाल में परोसकर पीओके (78 हजार वर्ग किमी) सौंपा। हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने। अब 1962 को भी याद कीजिए चीन ने पंडित नेहरू के नेतृत्व में हुए युद्ध के बाद देश की 38 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर रखा है। ये सब कौन से जिगरे का कमाल था?
आप मोदी को पीओके को लेकर घेर रहे हैं न? वो भी इसीलिए क्योंकि भाजपा ने – मोदी ने हमेशा पीओके को वापस लाने का अपना एजेंडा रखा है। क्या कांग्रेस ने कभी कहा कि – हम POK वापस लेंगे? कांग्रेस या दूसरे दल क्यों इतनी हिम्मत नहीं दिखाते? मोदी को हराना है न? तो खुलकर अपने चुनाव में पीओके को वापस लाने का एजेंडा शुरू कीजिए। आपको 370 खत्म करने से किसने रोका था? लेकिन क्यों कभी हिम्मत नहीं दिखाई? अगर हिम्मत दिखाते तो बीजेपी और मोदी सत्ता में ही नहीं आ पाते।
एक बात और पीओके को अगर हमारे चाचा नेहरू ने पाकिस्तान को थाल में रखकर ना दिया होता तो POK वाली नौबत ही क्यों आती? अतएव जिगरा दिखाने से पहले गिरेबान में झांकना भी चाहिए न?
~ अब इसे ट्रैप कहें या पाक-प्रेम? जो लोग पाकिस्तान के तथाकथित जुलूस, नारों और शाहबाज शरीफ के बयानों के आधार पर लहालोट हो रहे हैं। इसके बहाने सरकार और सेना को कटघरे में खड़े कर रहे हैं। उन्हें क्या यह नहीं दिखता है कि- आप पाकिस्तान के उसी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।जो वह चाहता है। अगर आप सेना के आधिकारिक बयान को नजरंदाज कर , पाकिस्तान के तथाकथित फोटो/ वीडियो के आधार पर विचलित हो रहे हैं। ऐसे में आपकी निष्ठा पर खुद-ब-खुद सवाल उठ रहे हैं। क्या आप पाकिस्तान प्रेमी हैं जो उसके प्रोपेगैंडा के आधार पर अपने विचार बना रहे हैं। सरकार और सेना को लांछित करने के अभियान में जुट गए हैं।
हालांकि अधिकांशतः ऐसा करने वाले वही लोग हैं जो कल तक पहलगाम की आतंकी घटना के बाद आतंकियों को कवर फायर दे रहे थे। इस बात पर वैचारिक तलवारें खींचे हुए थे कि- अजी! आतंकियों ने तो ‘धर्म’ पूछकर नहीं मारा है। बाकायदे इसका सर्टिफिकेट बांट रहे थे। फिर पाकिस्तान पर जब कार्रवाई का मंथन चल रहा था तो हर दिन सरकार को घेर रहे थे। ऑपरेशन सिंदूर के बाद ‘De-escalate War’ का राग अलाप रहे थे। क्या आपने नहीं देखा कि इन्हीं सूरमाओं के भारत-विरोधी/ सेना विरोधी बयानों को किस तरह से पाकिस्तान ने इंटरनेशनल मीडिया के सामने पेश किया। ये कौन लोग थे जो पाकिस्तान के प्रोपेगैंडा को आगे बढ़ा रहे हैं थे? क्या यही काम आज भी ये नहीं कर रहे हैं? पुलवामा, बालाकोट से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक में सवालिया निशान लगाने वाली ये प्रजाति कौन सी है?जो अपने राजनीतिक दुराग्रहों, कुंठाओं की तुष्टि के लिए राष्ट्रीय अस्मिता पर प्रहार कर रही है। क्या आपको ध्यान नहीं कि राफेल और S-400 सुदर्शन की डील के समय किनके पेट में मरोड़ें उठ रहीं थीं? वो कौन लोग थे जो भारत की सामरिक सामर्थ्य को नहीं बढ़ने देना चाहते थे? क्या यह विचारणीय नहीं है?
अंतिम बात आपके राजनीतिक विचार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी को आप दूसरे मुद्दों पर कटघरे पर खड़ा कर सकते हैं। लेकिन अगर आप राष्ट्रीय अस्मिता, एकता, अखंडता और सुरक्षा को लेकर मोदी विरोध में सेना पर सवाल खड़े कर रहे हैं। ऐसे में ये सर्वथा अनुचित और आपके मानसिक दीवालियेपन का प्रतीक है। हां! अचानक हुए सीज़फायर की सूचना आते ही मुझे भी क्षणिक निराशा हुई थी। मैं भी यही चाहता था कि पीओके से लेकर पाकिस्तान के कई टुकड़े कर दिए जाएं। लेकिन जब राष्ट्र ने कोई निर्णय लिया है तो मुझे ऐसे समय में अपने राष्ट्र की सरकार और सेना पर अगाध श्रद्धा और निष्ठा है। हर भारतीय और भारतवंशी की भांति मुझे अपनी सरकार और सेना के साहसिक कार्य और निर्णय पर आंख मूंदकर भरोसा है। यह विश्वास है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले जवान एक न एक दिन अखंड भारत का संकल्प साकार करेंगे। लेकिन सवाल आपसे भी है क्या आपके पास धैर्य और बलिदान का साहस है? सवाल ये भी कि क्या हर चीज़ ‘राजनीति’ के चश्मे से ही देखी जानी चाहिए? क्या आपकी नज़र में राजनीतिक दुराग्रह, सत्ता की लालसा ; राष्ट्र से बड़े हैं ?
~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल