अशोक कुमार झा
पहलगाम में हुए अमानवीय आतंकी हमले ने देश को हिला दिया। 26 निर्दोष लोगों की हत्या केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि आतंकवाद के उस चेहरों की याद है जो बार-बार हमारी धरती पर खून बहाते हैं। इस हमले के तुरंत बाद, भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने का निर्देश जारी किया—और इसी बीच एक ऐसा खुलासा हुआ जिसने सुरक्षा व्यवस्था की नींव तक को झकझोर दिया।
केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) ने अपने 41वीं बटालियन में तैनात जवान मुनीर अहमद को सेवा से बर्खास्त कर दिया। कारण—उन्होंने एक पाकिस्तानी नागरिक मेनल खान से विवाह किया और उसकी जानकारी छुपाई। विवाह वीडियो कॉल के माध्यम से हुआ और महिला ने वीज़ा अवधि समाप्त होने के बाद भी भारत में रहना जारी रखा। अहमद ने इसकी सूचना विभागीय अधिकारियों को नहीं दी। पहली नजर में यह मामला एक निजी निर्णय लगता है, लेकिन जब गहराई से देखा जाए तो यह सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के विरुद्ध गुप्त संबंध
यह कोई मामूली चूक नहीं थी। जब कोई जवान सुरक्षा बल का हिस्सा बनता है, तो उसकी जिम्मेदारी सिर्फ बंदूक उठाने तक सीमित नहीं रहती। वह देश के संविधान, सीमाओं और जन-जीवन की सुरक्षा की शपथ लेता है। इस शपथ में पारदर्शिता, ईमानदारी और राष्ट्रहित सर्वोपरि होते हैं।
ऐसे में पाकिस्तानी नागरिक से विवाह को छिपाना सिर्फ सेवा शर्तों का उल्लंघन नहीं, बल्कि सुरक्षा व्यवस्था में संभावित सेंध की भूमिका निभा सकता है। अहमद का यह कृत्य कई सवाल खड़े करता है—क्या वह पाकिस्तानी एजेंसियों के संपर्क में आ सकते थे? क्या उन्होंने जानबूझकर सूचनाएं छिपाईं या वे किसी “हनी ट्रैप” का शिकार हुए?
सीमा पार विवाह और खुफिया खतरे
भारत की खुफिया एजेंसियाँ लंबे समय से चेतावनी देती रही हैं कि पाकिस्तान अपने खुफिया नेटवर्क को मजबूत करने के लिए डिजिटल माध्यमों, सोशल मीडिया और रोमांटिक संपर्कों का प्रयोग कर रहा है। विशेष रूप से सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवान इन जालों के प्रमुख लक्ष्य होते हैं।
हनी ट्रैप केवल फिल्मों की कहानी नहीं रह गया बल्कि जमीनी हकीकत बन चुका है। इस्लामाबाद और रावलपिंडी की खुफिया मशीनरी “डिजिटल विवाह”, “सांस्कृतिक मेलजोल”, और “सोशल मीडिया मित्रता” के रास्ते सुरक्षा तंत्र में घुसपैठ के तरीके तलाश रही है।
कानून, अनुशासन और नीति की कसौटी पर बर्खास्तगी
CRPF ने यह कार्रवाई उस प्रावधान के तहत की है जिसमें यह माना जाता है कि जांच से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311(2)(b) के अंतर्गत, बिना जांच के भी सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त किया जा सकता है, यदि यह आवश्यक समझा जाए।
यह निर्णय एक मिसाल बनकर उभरा है। यह साफ कर दिया गया है कि किसी भी कीमत पर राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं होगा, चाहे वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर ही क्यों न हो।
सवाल जवान पर नहीं, पूरी व्यवस्था पर
इस पूरे मामले में केवल मुनीर अहमद को दोषी ठहराना समस्या का स्थायी समाधान नहीं होगा। हमें यह पूछना होगा—क्या हमारी सुरक्षा एजेंसियों के पास जवानों की डिजिटल गतिविधियों की निगरानी के पर्याप्त संसाधन हैं? क्या उन्हें विवाह, विदेशी संपर्क और सोशल मीडिया व्यवहार के संबंध में समय-समय पर प्रशिक्षित किया जाता है?
क्या प्रत्येक अर्द्धसैनिक बल के भीतर एक “साइबर इंटेलिजेंस निगरानी सेल” अनिवार्य नहीं होनी चाहिए?
यदि इस तरह के मामलों की समय रहते पहचान न हो तो परिणाम अत्यंत घातक हो सकते हैं।
राजनीति नहीं, राष्ट्रनीति ज़रूरी
महत्वपूर्ण यह है कि इस विषय पर कोई भी धार्मिक, जातीय या सांप्रदायिक चश्मा न लगाया जाए। यह मामला मुसलमान या हिन्दू का नहीं, बल्कि एक जवान के कर्तव्य और उसकी विफलता का है। यह चर्चा भारतीय और पाकिस्तानी नागरिकता, व राष्ट्रहित के लिहाज़ से होनी चाहिए, न कि मज़हबी पूर्वग्रहों से।
इसमें कहीं कोई शंका नहीं कि अधिकांश सुरक्षाकर्मी ईमानदारी और देशभक्ति की मिसाल हैं लेकिन यदि एक भी कड़ी कमजोर होती है, तो पूरी श्रृंखला खतरे में पड़ सकती है।
अब समय आ गया है व्यापक सुधार करने का
इस घटना से सबक लेते हुए अब आवश्यकता है कि:
1. सभी सुरक्षाबलों में विदेश संपर्कों की घोषणा अनिवार्य की जाए।
2. डिजिटल संवादों और विवाहों के लिए विभागीय स्वीकृति प्रक्रिया बने।
3. प्रत्येक बल में साइबर निगरानी सेल और मनोवैज्ञानिक परामर्श व्यवस्था हो।
4. प्रत्येक जवान को साल में एक बार “राष्ट्रीय सुरक्षा आचरण प्रशिक्षण” दिया जाए।
इस एक जवान की चूक से राष्ट्रीय सुरक्षा को जो खतरा हुआ, वह आगे और गहरा हो सकता है, यदि हमने समय रहते सचेत कदम न उठाए।
राष्ट्र सबसे पहले है, और उसकी सुरक्षा के लिए हर बलिदान स्वीकार्य होना चाहिए.
अशोक कुमार झा