अशोक कुमार झा
7 मई 2025 को हिंदुस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से एक स्पष्ट संदेश दे दिया — अब आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि उसकी जड़ तक पहुंच कर उसका समूल नाश किया जाएगा। इससे पहले 3 मई को अमरनाथ यात्रा मार्ग पर पहल्गाम में हुए नरसंहार ने देश की आत्मा को झकझोर दिया। महिलाओं और नवविवाहितों के खून से सनी घाटी ने पूरे देश को एक कर दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसी क्षण देश को यह संकेत दिया कि अब भारत संयम के मार्ग से हटकर निर्णायक कार्रवाई करेगा। उसी रणनीति का विस्तार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी हुआ—जहां 7 देशों में भेजे गए 7 सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल (All-Party Delegations) ने भारत की कूटनीति का वह चेहरा दिखाया जो वर्षों बाद इस प्रकार एकजुट दिखाई पड़ा।
अमेरिका, बहरीन, फ्रांस, रूस, जापान, जर्मनी और ब्राजील में भेजे गए इन डेलीगेशनों का मकसद था—भारत की स्थिति स्पष्ट करना, पाकिस्तान का असली चेहरा उजागर करना और वैश्विक समर्थन जुटाना।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. शशि थरूर और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी—दो ऐसे नेता जिन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों पर अक्सर कटाक्ष किए हैं—अब वही नेता विदेशों में खड़े होकर भारत सरकार के ऑपरेशन सिंदूर की खुले मंच पर सराहना कर रहे थे।
थरूर की अमेरिका में हुंकार:
शशि थरूर ने न्यूयॉर्क में कहा— “मैं सरकार के लिए नहीं, विपक्ष के लिए काम करता हूं लेकिन पहलगाम के बाद जिस तरह सरकार ने त्वरित और निर्णायक कार्रवाई की, वह भारत की संप्रभुता की रक्षा का स्पष्ट प्रमाण है। आतंकवाद अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि अमेरिका जैसे देश को यह समझना होगा कि भारत भी 9/11 जैसा ही दर्द झेल रहा है और उसे वैसी ही निर्णायक एकजुटता की ज़रूरत है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधियों और अमेरिकी सांसदों से स्पष्ट शब्दों में कहा कि: “आतंकवाद मानवता का दुश्मन है—और पाकिस्तान उसका पालनहार।”
ओवैसी की बहरीन में खरी-खरी:
बहरीन में प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बने ओवैसी ने पाकिस्तानी चरमपंथ और आतंकी प्रशिक्षण शिविरों का पर्दाफाश करते हुए कहा—
“हमारे मतभेद राजनीति तक हैं, देशहित में हम सब एक हैं। पाकिस्तान को FATF की ग्रे सूची में लाने में बहरीन हमारा साथ दे।”
उन्होंने बहरीन के शासकों से अपील करते हुए कहा कि: “हमारी नवविवाहिता महिलाओं को आतंकवाद ने विधवा बना दिया है। पाकिस्तान आतंक को ट्रेनिंग और पैसा दे रहा है। यह मानवता के खिलाफ युद्ध है।”
ऐसे क्षण विरले आते हैं जब कोई राष्ट्र अपनी राजनीतिक सीमाओं को पार कर एक स्वर में बोलता है। इतिहास गवाह है कि 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी जब विदेश मंत्री बन UNGA पहुंचे तो उनसे पूछा गया कि क्या वह इंदिरा गांधी की विदेश नीति की आलोचना करेंगे। जवाब में अटल जी ने कहा: “इंदिरा गांधी से मेरा विरोध देश में है, विदेश में नहीं।”
इसी तरह जब मोरारजी देसाई ने इंदिरा गांधी को अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने भेजा, तो उन्होंने कहा था – “यहां इंदिरा गांधी नहीं, भारत की आवाज बोल रही है।”
2025 में वह ऐतिहासिक लम्हा एक बार फिर दोहराया गया, जब विपक्ष और सत्ता, हिंदू और मुसलमान, दक्षिण और उत्तर—सभी एक स्वर में बोले कि भारत अब आतंकवाद नहीं सहेगा।
इन डेलीगेशनों का मकसद केवल एकजुटता दिखाना नहीं था, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति को स्पष्ट करना भी था:
· FATF (Financial Action Task Force) में पाकिस्तान को फिर से ग्रे सूची में लाने की मांग
· UNSC में आतंक को समर्थन देने वाले राष्ट्रों के खिलाफ प्रतिबंधात्मक प्रस्तावों की मांग
· G20 और SCO जैसी वैश्विक संस्थाओं में आतंक-प्रेरक राष्ट्रों की अलग पहचान की वकालत
भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब यदि कोई राष्ट्र आतंक का समर्थन करता है—चाहे वह फंडिंग हो, लॉजिस्टिक्स हो या प्रचार तंत्र—तो उसे वैश्विक मंचों पर बेनकाब किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में स्पष्ट कहा: “ऑपरेशन सिंदूर पर पूरा देश गर्व करता है। हमें आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक बनना ही होगा। हमारी सरकार ने देश के नागरिकों की सुरक्षा के लिए हर कदम उठाया है।”
जनता ने भी इस एकजुटता को सराहा। सोशल मीडिया से लेकर आमजन तक, एक ही भावना उभरी—“अब और नहीं”। जनता को यह भरोसा मिला कि नेता चाहे किसी दल से हों, जब बात देश की हो, वे एक साथ खड़े होते हैं।
एकजुट भारत की नई कूटनीतिक भाषा
यह प्रतिनिधिमंडल न केवल आतंकवाद के खिलाफ भारत की रणनीति का हिस्सा था, बल्कि यह एक नए भारत की परिकल्पना है—जहां विचारधाराएं, धर्म और दलों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित की बात होती है।
भारत ने साबित कर दिया कि अब वह केवल पीड़ित राष्ट्र नहीं, बल्कि प्रभावी प्रतिकारक है। यह विदेश नीति की भाषा में एक नया अध्याय है—जहां शक्ति, नीति और एकता का संगम दिखाई देता है।
ऑपरेशन सिंदूर – सिर्फ सैन्य कार्रवाई नहीं, कूटनीतिक संदेश भी
7 मई 2025 को अंजाम दिए गए ऑपरेशन सिंदूर ने सिर्फ आतंकियों के खिलाफ सैन्य स्तर पर कार्रवाई नहीं की, बल्कि इससे बड़ा संदेश अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को दिया गया—भारत अब रक्षात्मक नहीं, आक्रामक नीति पर चलेगा।
सेना की इस कार्रवाई में LoC पार कर आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप तबाह किए गए, और यह कार्रवाई बिल्कुल उसी अंदाज़ में की गई, जैसा 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक के दौरान हुआ था। फर्क सिर्फ इतना था कि इस बार पूरा राजनीतिक वर्ग—विपक्ष से लेकर सहयोगी दलों तक—एक स्वर में भारत की नीति के साथ खड़ा दिखा।
यह भी पहली बार हुआ कि भारतीय सेना की रणनीतिक कार्रवाई के ठीक बाद सरकार ने डिप्लोमैटिक ब्रिगेड को एक साथ सक्रिय कर दिया। विदेश मंत्रालय ने जहां दुनियाभर के 45 से अधिक देशों को अलग-अलग ब्रीफ़िंग दी, वहीं 7 देशों में सांसदों का प्रत्यक्ष दौरा, एक नया वैश्विक मॉड्यूल बन गया।
असदुद्दीन ओवैसी का इस प्रतिनिधिमंडल में जाकर भारत का पक्ष रखना न सिर्फ राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था बल्कि इससे एक सांस्कृतिक और सामाजिक संदेश भी गया— “आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता, और भारत के मुसलमान पाकिस्तान के इस चरमपंथी चेहरे को नकारते हैं।”
ओवैसी ने बहरीन में कहा: “जो मजहब इंसानियत सिखाता है, वह आतंक नहीं सिखा सकता। पाकिस्तान न सिर्फ आतंकियों को समर्थन देता है, बल्कि इस्लाम की गलत व्याख्या करके दुनिया भर के मुसलमानों को गुमराह करता है।”
इस वक्तव्य का भारत के भीतर भी बड़ा प्रभाव पड़ा। देश के मुसलमानों ने ओवैसी के रुख को एक ‘Responsible Muslim Leadership’ के रूप में देखा, और पहली बार ऐसा हुआ कि कश्मीर और सीमांत राज्यों से मुसलमानों ने सोशल मीडिया पर आतंक के खिलाफ खुले समर्थन में पोस्ट लिखे।
विपक्ष का आत्मनिरीक्षण और नई भूमिका
2024 के आम चुनावों के बाद विपक्ष एक बार फिर से बिखरा हुआ और असंगठित माना जा रहा था लेकिन इस प्रतिनिधिमंडल की भूमिका में विपक्ष ने यह सिद्ध किया कि वह सत्ता के खिलाफ भले लड़ता हो लेकिन देश के खिलाफ नहीं खड़ा हो सकता।
कांग्रेस, टीएमसी, एआईएमआईएम, सीपीआई, एनसीपी, डीएमके, और आम आदमी पार्टी जैसे दलों के प्रतिनिधियों ने विदेश में जिस संयम और देशप्रेम से भारत की बात रखी, उसने विपक्ष को एक संवेदनशील और ज़िम्मेदार राष्ट्रवादी विपक्ष के रूप में स्थापित किया।
यह एक राजनीतिक पुनर्जन्म की भूमिका हो सकती है:
शशि थरूर, मनीष तिवारी, दिनेश त्रिवेदी, असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं ने यह सिद्ध किया कि जब उद्देश्य राष्ट्र का हो तो विपक्ष सत्तापक्ष का सहयोगी बन जाता है, प्रतिद्वंद्वी नहीं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया—भारत को मिला समर्थन
इन प्रतिनिधिमंडलों के दौरों का प्रभाव साफ दिखाई देने लगा है:
· बहरीन और UAE ने पाकिस्तान को “चरमपंथ को बंद करने” की सलाह दी
· अमेरिका के सीनेट में भारत के समर्थन में एक प्रस्ताव पेश किया गया
· फ्रांस ने कहा कि वह पाकिस्तान को सैन्य सहायता पर पुनर्विचार करेगा
· जापान और जर्मनी ने आतंक के खिलाफ भारत के रुख की सराहना की
· रूस ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर को “टारगेटेड डिफेंस स्ट्राइक” कहकर समर्थन दिया
इन सभी प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट हो गया कि भारत की कूटनीति ने ग्लोबल कॉमनसेंस को प्रभावित किया है। दुनिया अब आतंक के मामलों में पाकिस्तान के दावों पर नहीं, भारत की सच्चाई पर यकीन कर रही है।
इस अभियान में भारतीय मीडिया और डिजिटल डिप्लोमेसी की भी बड़ी भूमिका रही। विदेश मंत्रालय ने #OperationSindoor और #IndiaAgainstTerror जैसे हैशटैग्स के माध्यम से दुनियाभर में भारत की स्थिति स्पष्ट की।
ट्वीटर (अब X) पर ओवैसी और थरूर के वीडियो लाखों बार देखे गए
फ्रांस, जापान और अमेरिका में प्रदर्शन हुए जिनमें लोगों ने भारत के प्रति समर्थन जताया
30+ अंतरराष्ट्रीय अखबारों में ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले पर भारत की प्रतिक्रिया प्रमुख खबर बनी
क्या यह नई वैश्विक नीति की शुरुआत है?
सवाल उठता है—क्या यह डेलीगेशन मॉडल भविष्य में हिंदुस्तान की विदेश नीति का हिस्सा बनेगा? क्या यह केवल एक प्रतिक्रिया थी या नई नीति का संकेत?
विशेषज्ञों का मानना है कि—
“यह घटना भारत के लिए डिप्लोमेसी में ‘Soft Power + Strategic Messaging’ मॉडल की शुरुआत है। अब सिर्फ राजदूत नहीं, सांसद, कलाकार, खिलाड़ी भी देश की आवाज बनेंगे।”
यह विदेश नीति की जनभागीदारी मॉडल की नींव है जहां लोकतंत्र का हर स्तंभ राष्ट्रीय रुख को विश्व मंच पर रखेगा।
भाग 13: “मोदी की कूटनीति + विपक्ष की दृढ़ता” = भारत की नई शक्ति संरचना
यह वक्त स्पष्ट करता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीव्र और स्पष्ट विदेश नीति तथा विपक्ष के कुछ प्रमुख नेताओं की दूरदर्शिता और राष्ट्रप्रेम ने मिलकर एक ऐसा नया स्वरूप रचा है, जो संभवतः नेहरू-इंदिरा युग के बाद की सबसे प्रभावशाली राष्ट्रीय एकता की मिसाल है।
मोदी सरकार की कूटनीति:
सरकार ने पहले ही दिन से यह स्पष्ट किया कि आतंकवाद अब सिर्फ सुरक्षा समस्या नहीं है, यह विदेश नीति का केंद्र बिंदु है।
· UN, SCO, G20, FATF जैसे मंचों पर भारत ने पाकिस्तान को बेनकाब करने की रणनीति अपनाई
· पहली बार, मल्टी-पार्टी प्रतिनिधिमंडलों के माध्यम से न्यायसंगत देशव्यापी भावना को वैश्विक स्वरूप दिया गया
· सरकार ने यह भी प्रदर्शित किया कि भारत अब ‘Reactive Nation’ नहीं, ‘Strategic Nation’ है
विपक्ष की भूमिका:
थरूर, ओवैसी, मनीष तिवारी, आदि नेताओं ने यह समझा कि यदि आज वे सरकार के साथ खड़े नहीं हुए, तो वे लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व से चूक जाएंगे।
इस आत्मचिंतन के परिणामस्वरूप विपक्ष ने पहली बार अपने मतभेदों को ‘घर की बातें’ मानकर विदेश में एकता का चेहरा दिखाया।
अंतरराष्ट्रीय कानून और भारत की नई पैरवी
अब तक भारत का दृष्टिकोण आत्म-संयम पर आधारित रहा, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह स्पष्ट हुआ कि भारत अब सिर्फ आतंकी कार्रवाई का जवाब ही नहीं देगा, बल्कि उसके प्रायोजक राष्ट्रों को अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत कठघरे में खड़ा करेगा।
भारत ने जो मांगें उठाई:
1. FATF से पाकिस्तान को फिर से ग्रे लिस्ट में डालने की अपील
2. UNSC में आतंक को समर्थन देने वाले देशों पर प्रतिबंध लागू करने की मांग
3. ICJ में पाकिस्तान के खिलाफ सबूत सहित याचिका देने की तैयारी
4. Interpol से आतंकियों की गिरफ्तारी में सहयोग का प्रस्ताव
यह पहली बार है कि भारत ने सुरक्षा नीति + अंतरराष्ट्रीय कानून को जोड़कर एक ‘डिफेंस-जस्टिस मॉडल’ प्रस्तुत किया है।
भाग 15: युवाओं के लिए संदेश—राजनीति से ऊपर राष्ट्र
सभी कॉलेज परिसरों, डिजिटल मंचों और छात्र संघों में इस घटनाक्रम ने एक नई विचारधारा को जन्म दिया है।
युवा अब यह समझने लगे हैं कि नेता की पहचान उसकी पार्टी से नहीं, देश के प्रति उसकी प्रतिबद्धता से होती है।
देशभर में युवाओं की प्रतिक्रियाएं:
· दिल्ली विश्वविद्यालय: “ओवैसी ने पहली बार एक राष्ट्रनायक जैसा व्यवहार किया”
· JNU: “थरूर का संयमित और तार्किक दृष्टिकोण प्रेरणादायक”
· BHU और AMU: “भारत की विदेश नीति अब सिर्फ नौकरशाहों की बात नहीं, जनभावना की अभिव्यक्ति बन गई है”
यह स्पष्ट संकेत है कि अगली पीढ़ी की राजनीतिक चेतना विचारधारा के ऊपर राष्ट्रीय एकता को प्राथमिकता देने वाली होगी।
अब आगे क्या?—नीति सुझाव और भविष्य की संभावनाएं
1. सर्वदलीय विदेश नीति मंच (All-Party Foreign Policy Council):
एक स्थायी निकाय बने, जिसमें विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों को विदेश नीति विमर्श में भागीदार बनाया जाए।
2. राष्ट्रीय सुरक्षा संवाद (National Security Dialogue):
हर बड़ी सैन्य कार्रवाई के बाद संसद और प्रमुख दलों के बीच गोपनीय संवाद हो।
3. ‘एक देश, एक विदेश रुख’ (One Nation, One Voice Abroad):
हर अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर भारत की एक आवाज हो—भले संसद में मतभेद रहे हों।
4. डिजिटल कूटनीति नेटवर्क (Digital Diplomacy Grid):
युवा सांसदों, पत्रकारों और सोशल मीडिया प्रभावितों की टीम तैयार कर, भारत की विदेश नीति को आधुनिक माध्यमों से प्रचारित किया जाए।
अंतिम भाग (भाग 17): ऐतिहासिक दृष्टिकोण—जब इतिहास ने दोहराया खुद को
2025 का यह घटनाक्रम स्वतंत्र भारत के इतिहास में 1971 की बांग्लादेश मुक्ति संग्राम, 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण, और 2016-2019 के स्ट्राइक जैसी राष्ट्रीय चेतना की नई लहर जैसा माना जा सकता है।
1971 में इंदिरा गांधी ने विरोध के बावजूद देश को नई दिशा दी
1998 में वाजपेयी सरकार ने अमेरिका के विरोध के बावजूद राष्ट्रहित में फैसला किया
2025 में मोदी सरकार और विपक्ष दोनों ने एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ मोर्चा खोला
यह घटना भविष्य में पाठ्यपुस्तकों, कूटनीतिक प्रशिक्षण, और राष्ट्रीय संवाद के उदाहरण के रूप में दर्ज होगी।
जब राष्ट्र बना धर्म, और एकता बनी शक्ति
भारत की राजनीति में बहुत कुछ गलत हो सकता है—विकास पर विवाद, शिक्षा पर बहस, धर्म पर ध्रुवीकरण—लेकिन जब बात देश की सुरक्षा, सम्मान और अखंडता की हो, तब भारत एकजुट होता है।
2025 में भारत ने यही करके दिखाया। और यह सिर्फ एक सरकार की जीत नहीं है—यह हर नागरिक, हर सैनिक, हर मतदाता की जीत है।
‘भारत पहले’ – नई राष्ट्रीय चेतना का उदय
देश आज उस मुकाम पर खड़ा है, जहां विचारधाराएं भिन्न हो सकती हैं, लेकिन राष्ट्रवाद की भावना साझा है।
ओवैसी का बहरीन में पाकिस्तान के खिलाफ बोलना, थरूर का अमेरिका में सरकार की रणनीति का समर्थन करना, और अटल-इंदिरा की परंपरा का पुनर्जीवन—यह सब दर्शाता है कि:
“राजनीति का अंतिम उद्देश्य भारत होना चाहिए—न कि सत्ता।”
2025 के इस निर्णायक क्षण में भारत ने दुनिया को बता दिया है कि यह देश एक विचार है, एक संकल्प है, और एकजुटता की शक्ति है।
अशोक कुमार झा