
दिल्ली सुलग रही है
ओर देश चुप है
देश का आम आदमी चुप है
पता नहीं क्यों कुछ विशेष आततायी
भीड़ मे घिनोना चेहरा लिए
आसानी से फूँक देते है मकान-दुकान
जला देते है राष्ट्र की संपत्ति ।
उखाड़ फैकते है
पीढ़ी दर पीढ़ी रह रहे
लोगों के इंसानी रिश्ते
फूँक देते है उनके आशियाने
तबाह कर देते है
उनकी वर्षो के खून पसीने से
सजाये गए सपनों को ।
सड्को पर बहा देते है लहू
एक शांत शहर को अशांत कर देती है
छद्म राजनेताओ की कुत्सित चाले
ओर मैं चुप होता हूँ
जनता चुप होती है
देश चुपचाप जलता है ।
ये चुप्पी रोक देती है विकास
जनता का लाचार होना
देश का बेबशी जतलाना
कितना दर्द देता है उन्हे
जिनका जलकर सबकुछ स्वाहा हो जाता है ।
जनता क्यो नही तोड़ती है चुप्पी
नफरत की जंग लड़ने वाले
अमानवीय चहरों को
बेनकाब क्यो नही करती
जाति रंगभेद की दिवारे
क्यो खत्म नही करती
क्यो स्वार्थलोलुप दल
दल-दल से बाहर नहीं निकलते है
ये चुप्पी खत्म होनी चाहिए
नियम कानून बनाना-हटाना
देश के संविधान के दायरे मेँ हो
राजनीति का कुरूप चेहरा
तभी बेनकाब होगा
जब जनता जागेगी
पीव हम योग्य कब होंगे ?
जब भारत में इंसान कहला सके ।