किधर जा रही है हिंदी कविता ?

डॉ घनश्याम बादल

21 मार्च को विश्व कविता दिवस मनाया गया विश्व भर की लगभग सभी भाषाओं में गद्य के बाद पद्य यानी कविता का ही वर्ष हो रहा है जहां तक देवनागरी हिंदी की बात है इसमें तो गद्य से अधिक कविताएं अधिक लोकप्रिय रही है क्योंकि कविता के माध्यम से कई सामाजिक परिप्रेक्ष्य में कम शब्दों में अधिक और गहरी बात कहने में सक्षम होता है लेकिन आजहिंदी कविता आज एक महत्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रही है। पारंपरिक छंदबद्ध कविताओं की बजाय आज की कविता मुक्त छंद, प्रयोगधर्मी और व्यक्तिगत अनुभवों ज्यादा जुड़ गई है।

और इसमें समष्टि के बजाय व्यष्टि के प्रधानता काफी बढ़ गई है यानी सामाजिक राष्ट्रीय एवं वैश्विक मुद्दों के बजे यह व्यक्तिगत अधिक होती जा रही है।

 समकालीन हिंदी कविता  पर दृष्टि डालें तो इसमें उत्थान एवं पतन दोनों के ही लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं।

आज की हिंदी कविता में अच्छी बात यह है आई है कि विषयवस्तु में विविधता बढ़ी है। समसामयिक मुद्दे जैसे पर्यावरण संकट, नारीवाद, दलित विमर्श, सामाजिक असमानता, और राजनीतिक चेतना कविता का प्रमुख हिस्सा बन चुके हैं। आज कविता में नए माध्यमों का उपयोग हो रहा है ।  – सोशल मीडिया, ब्लॉग, और ऑनलाइन पत्रिकाओं ने कविता के प्रचार-प्रसार को व्यापक बनाया है वहीं युवा कवियों का योगदान भी बढ़ रहा है। नई पीढ़ी के कवि अधिक स्वच्छंदता और खुले विचारों के साथ और सशक्त अभिव्यक्ति के साथ अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं।

एक अच्छी बात यह भी है कि अब सूक्ष्म एवं क्लिष्ट शब्दावली के बजाय

आंचलिकता और लोकभाषाओं का समावेशहिंदी कविता में अब क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों का प्रयोग भी बढ़ा रहा है।

अब सवाल उठता है कि वर्तमान हिंदी कविता किस दिशा में जा रही है

वर्तमान हिंदी कविता में

प्रयोगधर्मिता निरंतर बढ़ रही हैपारंपरिक काव्य संरचनाओं को तोड़ते हुए नई शैलियों और भाषा प्रयोगों को अपनाया जा रहा है। सामाजिक और राजनीतिक चेतना, सामाजिक न्याय, स्त्रीवाद, जातिवाद, और मानवाधिकार जैसे मुद्दे हिंदी कविता में प्रमुख विषयों के रूप से उभर रहे हैं।

अन्य क्षेत्रों की तरह अब कविता भी केवल कॉपी कलम किताब तक सीमित नहीं है अपितु आज का युग डिजिटल कविता का युग बनकर आया है– इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म पर कविताएँ प्रकाशित और प्रस्तुत की जा रही हैं, जिससे नई शैली की डिजिटल कविता का विकास हो रहा है। और पारंपरिक कवियों के बजाय नए कई नई दृष्टि के साथ सामने आ रहे हैं।

इतना ही नहीं सीमित मात्रा में ही सही– आधुनिक कविताएँ ऐतिहासिक संदर्भों और लोककथाओं को भी नए परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत कर रही हैं।

इस दृष्टि से देखने पर तो हिंदी कविता का भविष्य उज्ज्वल प्रतीत होता है, क्योंकि यह समय के साथ बदल रही है और नए  नए आयाम अपना रही है। भविष्य की हिंदी कविता में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कविता – एआई और मशीन लर्निंग के जरिए कविता नए प्रयोग हो सकते हैं।

तथा इंटरएक्टिव और मल्टीमीडिया कविता – ऑडियो-विजुअल माध्यमों के साथ कविताएँ अधिक जीवंत हो सकती हैं। वैश्विक मंच पर भी हिंदी कविता – अनुवाद और डिजिटल मीडिया के माध्यम से हिंदी कविता  और अधिक प्रसार का सकती है। स्थानीय बोलियों और लोकभाषाओं के समावेश से हिंदी कविता में देशज भाषाओं का प्रभाव और बढ़ सकता है।

लेकिन यह कविता का केवल एक उजला पक्ष है प्रश्न उत्थान पतन के दौर में हिंदी कविता ने में बहुत सी विद्रूपताएं भी समाहित हो गई हैं जिन्होंने हिंदी कविता के सम्मुख संकट खड़ा कर दिया है।

आज की हिंदी कविता के सामने कई महत्वपूर्ण संकट हैं, जो इसके अस्तित्व और प्रभाव को प्रभावित कर रहे हैं।

आज के डिजिटल युग में लोगों की रुचि साहित्यिक पुस्तकों और कविताओं की बजाय सोशल मीडिया, वेब सीरीज़ और फिल्मों में अधिक हो गई है। कविता पढ़ने और समझने की परंपरा कमजोर होती जा रही है। ।और प्रकाशन जगत में भी गुणवत्ता की बजाय मुनाफे को प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे साहित्यिक और गंभीर कविताओं के बजाय हल्की-फुल्की, लोकप्रिय शैली की कविताओं को अधिक महत्व दिया जा रहा है। इससे गहरी और प्रभावशाली कविता के विकास में बाधा आ रही है।

नई पीढ़ी में हिंदी भाषा के प्रति आकर्षण कम हो रहा है। अंग्रेज़ी और हिंग्लिश के बढ़ते प्रभाव के कारण शुद्ध हिंदी कविता लिखने और पढ़ने वालों की संख्या घट रही है। इसके अलावा, नई कविता की जटिलता और अमूर्तन के कारण भी सामान्य पाठक इससे दूर होता जा रहा है।

सोशल मीडिया के दौर में त्वरित अभिव्यक्ति का चलन बढ़ा है, जिससे गहरी संवेदनाओं और कलात्मक शिल्प वाली कविता के बजाय तात्कालिक, सतही और साधारण अभिव्यक्तियाँ अधिक सामने आ रही हैं। इंस्टाग्राम और ट्विटर पर छोटी-छोटी कविताएँ तो लोकप्रिय हो रही हैं, लेकिन गहरी, विचारोत्तेजक और सामाजिक रूप से प्रासंगिक कविताएँ पाठकों तक कम पहुँच पा रही हैं।

आज की हिंदी कविता में वैश्वीकरण, उपभोक्तावाद, पर्यावरण संकट, सामाजिक असमानता, जातिवाद और स्त्री-विमर्श जैसे कई महत्वपूर्ण विषय उभरकर आए हैं। इन पर प्रभावशाली कविता लिखना एक चुनौती बन गया है, क्योंकि यह विषय गहन अध्ययन और संवेदनशीलता की माँग करते हैं। जहां आभासी मंचों के माध्यम से कविता का विस्तार हुआ है वही दर्शकों के सम्मुख सीधे कविता पढ़ने की कला के पोषक कवि सम्मेलन आज अलग ही दिशा में जाते दिखाई दे रहे हैं।  काव्य मंचों का व्यवसायीकरण होने से गंभीर कवियों की बजाय मनोरंजन प्रधान कवियों को अधिक स्थान मिल रहा है। हास्य-व्यंग्य प्रधान कविताएँ ज्यादा सुनी जाती हैं, जिससे गहरी और अर्थपूर्ण कविताएँ हाशिए पर चली गई हैं। इस क्षेत्र में गले बाजी एवं गुटबाजी तथा मंचों पर द्विअर्थी एवं अश्लील कविताएं तथा चुटकुले हिंदी कविता की गरिमा को बहुत ठेस पहुंचाई है।

हालाँकि हिंदी कविता के सम्मुख कई संकट हैं, फिर भी यह पूरी तरह समाप्त नहीं होने वाली है । नए माध्यमों और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से कविता नए पाठकों तक पहुँच रही है। ज़रूरत इस बात की है कि कविता को वर्तमान संदर्भों में अधिक प्रासंगिक, प्रभावी और संप्रेषणीय बनाया जाए, ताकि यह अपनी महत्ता बनाए रखे और समाज को नई व सार्थक दिशा देने में सहायक हो सके।

डॉ घनश्याम बादल

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