आए दिन चैनल हो या अखबार
दुनियाभर के समाचारों को
चौबीसों घंटे पत्रकार सुनाता/पढ़ाता है
मैं भी एक पत्रकार हूँ देता हूँ खबरें
खबरें देते हुये पत्रकार युवा से
कब बूढ़ा हो जाए,भूल जाते है सभी
पत्रकार नही भूलता फिर भी खबरे देना।
चार दशकों में मैंने देखा है
कई नामी गिरामी पत्रकार को मरते
लेकिन पत्रकार की मौत
कभी खबर नही बनती,
एक सिंगल कालम में छपी सूचना भर होती है ।
रोज कोई न कोई मरता है
दुनिया तो फिर भी चलती है…
मैं देखना चाहता हूँ अंत तक पूरा जहां
जब मुझ खबरनीस की खबर चलेगी /या छपेगी
कि फलां पत्रकार मर गया
ओर मेरी मौत की भी खबर
एक दिन लोगों के पास आयेगी
तब मेरे शव पर रुदन करते
मेरी मौत का शौक मनाते
और कौसते हुये यही लोग
मुझे घर से शमशान ले जाएंगे
तब रास्ते में कुछ लोग
अर्थी के साथ चलनेवालों से पुंछेंगे
कौन मरा, तपाक से जबाब होगा पत्रकार रे ।
मेरी अर्थी को कान्धा देने वाले
कुछ दया तो कुछ करुणा दिखाएंगे
मेरे शव को अंतिम स्नान कराने से
चिता पर अग्नि को समर्पित करने तक
मेरी एक एक कमिया बखान करेंगे …
कहेंगे- जरा देखो ? क्या यह जल गया
हाँ, सुनते ही कपाल क्रिया कराएंगे
ओर ओपचारिक चंदन की लकड़ी फैक चले आएंगे।
मैं एक पत्रकार तो
मर चुका होऊँगा
तब मन मैं एक अधुरा सच
और एक अधूरी चाहत के साथ
मर जाने वाले मुझ नामुराद के लिए
किसी चैनल या अखबार में
मेरी मौत कोई खबर न बनेगी
न ही मेरे मरने पर लिखे जाएँगे लेख
जिन अखबारों ओर चैनलों के लिए
पूरे समय मुख्य आकर्षक हुआ करते थे
मेरे समाचार/मेरी सनसनीखेज रिपोर्ट
उनमें फिर कोई दूसरा आ टपकेगा
ओर मेरे मरने पर श्रद्धांजलि सभा करके
इक्के दुक्के पत्रकार शोक व्यक्त करेंगे
ओर अपने-अपने अखवार के एक कौने में
यह छापकर एहसान जताना नही चूकेंगे कि
फला व्यक्ति फला के पिता का निधन
शवयात्रा उनके निज निवास से निकलेगी
आज प्रेस क्लब ने उन्हे याद किया
मरने वाला मैं ऐसा पत्रकार रहूँगा
जो सारे जहां की खबरे पढ़ाता रहा
पर मरने पर जिसकी कोई खबर नही बनती ।
मैं श्मशान की राख बन
प्रवाहित कर दिया जाऊंगा
उसके बाद भी “”पीव””
यह दुनिया चलती रहेगी
ओर अखबार/ चैनलों कि रौनक फीकी नही होगी।
आत्माराम यादव पीव