राजनीति

कौन किसे करता बदनाम – निर्मल रानी

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का ढोल पीटने वाला हिंदुत्ववादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक बार फिर अपने ऊपर लगे आपराधिक आरोपों से तिलमिला उठा है। और इसी तिलमिलाहट के परिणामस्वरूप संघ को स्थित तौर पर ‘राष्ट्रव्यापी’ धरने व प्रदर्शन के आयोजन गत 10 नवम्बर को मात्र 2 घंटे के लिए करना पड़ा। भले ही संघ इसे राष्ट्रव्यापी धरना प्रदर्शन क्यों न बता रहा हो परंतु संघ को स्वयं भी यह बात बखूबी मालूम है कि इस समय संघ का संगठन देश के आधे से भी कम क्षेत्रों तक ही सीमित है और वह भी केवल शहरी क्षेत्रों तक। समय बीतने के साथ साथ संघ अपनी ही गलत चालों, फैसलों व नीतियों के परिणामस्वरूप आहिस्ता आहिस्ता और अधिक सिकुड़ता ही जा रहा है। राजनैतिक विेषलेश्कों का मानना है कि संघ का यह धरना व प्रर्दशन इस लिए भी आयोजित किया गया ताजि़ वह अपने संगठन की ताक़ त का अंदाज़ा लगा सके कि आिखर वह कितने पानी में खड़ा है। संघ की राजनैतिक इकई भारतीय जनता पार्टी ने भी लगभग सभी स्थानों पर आयोजित धरनों में संघ का साथ दिया

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा इस धरने का करण यह बताया जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी द्वारा संघ की सांस्कृतिक राष्ट्रवादी छवि को बदनाम किया जा रहा है। साथ ही साथ संघ यह भी कह रहा है कि कांग्रेस हिंदू धर्म को ही बदनाम करने की कोशिश व साज़िश रच रही है। यहां ग़ौरतलब यह है कि यह वही आर एस एस है जो अभी तक महात्मा गांधी की हत्या के आरोप से स्वयं को उबार नहीं पाई है। संघ से असहमति रखने वाले तमाम देशभक्त वही हैं जो उदारवादी विचारधारा रखते हैं या गांधी दर्शन तथा गांधीवाद के समर्थक हैं। इनमें जाति व धर्म की कोई सीमाएं नहीं हैं। हमारा देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया जिस गांधी के विचारों, उनकी नीतियों व उनकी सत्य-अहिंसा के दर्शन से प्रभावित थी तथा उन्हें अपना आदर्श मानती है वह यह बखूबी जानती है कि गांधी की विचारधारा का विरोध उन्हीं के देश में यहां तक कि उन्हीं के अपने राज्य में तथा उन्हीं के अपने हिंदू धर्म के लोगों ही द्वारा ज़्ल भी किया गया था और आज भी किया जा रहा है।

अब यहां प्रश्न यह है कि संघ के भाग्य में बदनामी तथा हत्या के आरोप लगने की घटना की शुरूआत तो गांधी की हत्या के समय से ही शुरू हो गई थी। क्या कांग्रेस पार्टी ने नत्थू राम गोडसे को गांधी की हत्या करने के लिए प्रोत्साहित किया था? उस समय से लेकर अब तक देश में सैकडों बडे़ सांप्रदायिक दंगे हुए। उनमें जहां तमाम अन्य धर्मों व संगठनों के लोग पक ड़े गए वहीं दंगाईयों में तमाम ऐसे लोग भी पकडे गए जिनक संबंध आर एस एस से था। यदि हम गत वषों की ही बात करें तो भी गुजरात दंगों से लेकर अब तक दर्जनों संघ कर्यकर्ता किसी न किसी हत्याकांड, बम ब्लास्ट, दंगों तथा हिंसक गतिविधियों आदि में संलिप्त पाये जा रहे हैं। परंतु संघ के राष्ट्रीय स्तर के कुछ पदाधिकरयिों के नाम पुलिस की जांच पड़ताल के बाद उजागर होने पर अब जब बात संगठन के छोटे कर्यकर्ताओं के कारण होने वाली बदनामी तक ही सीमित नहीं रही बल्कि उसके राष्ट्रीय पदाधिकरियों पर भी ए टी एस की उंगली उठी है ऐसे में संघ को अपनी छवि बचाने का यही एक रास्ता नज़र आया कि वह सामाजिक संगठन होने का अपना दावा किनारे रखकर पूर्णतया राजनैतिक जामा पहनते हुए अन्य राजनैतिक दलों की ही तरह धरने व प्रदर्शन जैसे आयोजन का आह्वान भारतीय जनता पार्टी को साथ लेकर अपनी बेगुनाही का सुबूत देने के लिए ज़्रे।

यही संघ उस समय भी बहुत आहत दिखाई दिया था जब राहुल गांधी ने सिमी जैसे आतंकी संगठन तथा संघ को एक ही पैमाने में तौलने की कोशिश की थी। गृहमंत्री पी चिदंबरम ने जब भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया था तब भी संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों को बहुत ही नागवार गुज़रा था। ऐसे प्रत्येक आरोप या वक्तव्यों के बाद आिखर संघ ही क्यों तिलमिला उठता है? क्या राहुल गांधी या पी चिदंबरम राष्ट्रवादी नहीं हैं? क्या उनकी देशभक्ति या राष्ट्रभक्ति संदेहपूर्ण है? संसद में भी संघ को एक दो नही बल्कि की बार देशद्रोही अथवा राष्ट्रद्रोही संगठन कहकर की नेताओं द्वारा संबोधित किया जा चुक है। स्वर्गीय माधव राव सिंधिया भी संघ को संसद में राष्ट्रद्रोही संगठन कहकर पुकर चुके हैं। यह संगठन ऐसे ही आरोपों के करण की बार प्रतिबंधित भी हो चुक है। इन सब के बावजूद संघ अपने को पाक साफ,शांतिप्रिय, अहिंसक तथा गैर सांप्रदायिक सिद्ध करने का असफल प्रसास करता चला आ रहा है। संघ का दोहरा चरित्र भी पूरे देश के लोगों से छुपा नहीं है। उहारण के तौर पर संघ स्वयं को कभी सामाजिक संगठन बताता है तो कभी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का ध्वजावाहक। यह संगठन स्वयं को राजनीति से दूर रहने वाला एक गैर राजनैतिक संगठन बताने की कोशिश करता है। परंतु हकीज़्त तो इसके विपरीत ही है। पूरा देश यह जानता है कि संघ भारतीय जनता पार्टी का मुख्य संरक्षक संगठन है। भाजपा अध्यक्ष कौन बने और कौन नहीं,भाजपा शासित राज्यों का मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए यह सब संघ ही तय करता है। अभी एक ताज़ातरीन राजनैतिक घटनाक्रम के अंतर्गत ज़्र्नाटक सरकर पर आए संज़्ट के सिलसिले में ज़्र्नाटक के मुख्यमंत्री येदुरप्पा को दिशानिर्देश लेने हेतु नागपुर स्थित संघ मुख्यालय जाने की खबर आई। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के शासन कल में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते संघ का क़ाफिला अनेक बार 7,रेसकोर्स रोड पर स्थित प्रधानमंत्री निवास पर सलाह मशविरा करने जाते देखा गया। यहां तक कि वर्तमान भाजपा अध्यक्ष नितिन गडज़्री स्वयं संघ द्वारा भाजपा पर थोपे गए अध्यक्ष बताए जा रहे हैं। ऐसे में यह साफ हो जाता है कि संघ स्वयं को चाहे जितना गैर राजनैतिक बताता रहे परंतु राजनीति में जितनी सिक्रयता इस संगठन की है उतनी किसी अन्य तथास्थित सामाजिक एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवादी संगठन की हरगिज़ नहीं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि संघ तमाम प्रकर के समाज सेवी कर्यों में संलग्न है। जैसे शिक्षा का प्रचार-प्रसार। परंतु यदि वह शिक्षा सांप्रदायिकता का पाठ पढ़ाती हो तथा एक भारतीय नागरिक को दूसरे भारतीय नागरिक से नफरत करना सिखाती हो तो क्या उसे शिक्षा का सकरात्मक प्रचार प्रसार ज़्हा जा सकता है? और भी की धर्मों में विशेषकर इस्लाम व ईसाई धर्मों में इसी प्रकर के तमाम मिशन चलाए जाते हैं। संघ भी उनकी आलोचना ही करता है। अतः संघ के ज़िम्मेदार नेताओं को ही स्वयं यह महसूस करना चाहिए कि जब वे सांप्रदायिकता के आधार पर किसी भी संप्रदाय द्वारा चलाए जाने वाले किसी मिशन यहां तक कि तथाकथित समाज सेवा का भी विरोध या आलोचना करते हैं फिर ऐसे में दूसरों से उन्हें स्वयं को राष्ट्रवादी कहलाने का क्या अधिकर बनता है? सच्चाई तो यह है कि क्या हिंदू धर्म तो क्या इस्लाम, कोई भी धर्म किसी दूसरे अन्य धर्म के अनुयाईयों अथवा किसी राजनैतिक संगठन के बदनाम करने के प्रयासों से उतना अधिक बदनाम नहीं हो रहा है जितना कि उसके अपने अनुयाईयों के सांप्रदायिकतापूर्ण कारनामे उसे स्वयं बदनाम कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर जब कोई मुस्लिम युवक आतंकी गतिविधियों में शामिल होता है या आत्मघाती दस्ते का सदस्य बनकर स्वयं को विस्फोट से उड़ा लेता है तो ऐसी कर्रवाई करने के लिए किसी अन्य धर्म का व्यक्ति उसे प्रोत्साहित नहीं करता। न ही उसके अपने धर्म की शिक्षा उसे ऐसे मार्ग पर ले जाती है। परंतु ऐसा करने पर निश्चित रूप से इस्लाम धर्म बदनाम भी होता है और संदेह के घेरे में भी आ जाता है। इस प्रकर इस्लाम के आलोचक यह सोचने तथा प्रचारित व प्रसारित करने पर मजबूर हो जाते हैं कि इस्लामिक शिक्षाएं ही ऐसी हैं जो मुस्लिम युवकों को आतंकवाद का मार्ग दिखाती हैं। मदरसा शिक्षा प्रणाली भी ऐसी ही कट्टर शिक्षा दिए जाने के कारण बदनाम हो चुकी है। इस प्रकर की बदनामियां किसी दूसरे समुदाय का व्यक्ति चाहते हुए भी किसी दूसरे धर्म पर नहीं मढ़ सकता।

इसी प्रकर राष्ट्रीय स्वयं संघ को भी झूठमूठ का शोर-शराबा करने,हाय तौबा करने, कांग्रेस व राहुल गांधी को संघ विरोधी या हिंदुत्व विरोधी प्रमाणित करने या वामपंथियों के विरुद्ध हाथ धोकर पड़े रहने में अपना समय गंवाने के बजाए यह चिंतन करना चाहिए कि आिखर हमारे संगठन से जुड़े लोगों के नाम एक के बाद एक की गंभीर अपराधों के सिलसिले में क्योंकर आ रहे हैं तथा ऐसी क्या वजहें हैं कि हमारे संगठन व विचारधारा के लोग हिंसा का मार्ग अपना रहे हैं। संघ को ‘शस्त्रपूजन’ के बजाए ‘पुष्प पूजन’ की परंपरा की शुरुआत करनी चाहिए। जैसे कि संघ बेल्ट तथा जूते का त्याग करने की योजना बना रहा है उसी प्रकर शस्त्र प्रदर्शन तथा त्रिशूल दीक्षा आदि का भी त्याग करना चाहिए। स्वयं को अहिंसक तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवादी साबित करने के लिए सत्य-अहिंसा के तथा प्रेम व सद्भाव के मार्ग को अपनाना होगा। और पूरी ईमानदारी से यह महसूस करना होगा कि आिखर हमारी ही अपनी गतिविधियों के चलते ही ज़्हीं हिंदू धर्म तो बदनाम नहीं हो रहा? भगवा आतंकवाद जैसे शब्द के सार्वजनिक होने के पीछे ज़्हीं हमारी ही गतिविधियां ज़िम्मेदार तो नहीं? और अंत में

सवाल यह नहीं शीशा बचा कि टूट गया। यह देखना है कि पत्थर कहां से आया।।

निर्मल रानी