आप क्यों हो रही है हताश

रवि श्रीवास्तव

पूरे देश में अपनी पहचान बना चुकी आप (आम आदमी पार्टी) अब हताशा के बादल में घिरती जा रही है। बड़े-बड़े वादों के साथ लोगों पर अपना विश्वास ज़माने में आप को जरा भी देरी नही लगी थी। पर आप के भाग्य में कुछ और ही लिखा था। कहते हैं कि दिवाली की रात घर के दरवाजे खुले रखने चाहिए लक्ष्मी जी आती है, और अगर दरवाजा बंद हो तो नाराज होकर वापस लौट जाती हैं। ऐसा ही कुछ हुआ आप के साथ। दिल्ली में विधानसभा चुनाव में जीत आप के लिए किसी दीवाली से कम नही थी। नई पार्टी का पहली बार चुनाव लड़कर ऐसा प्रदर्शन करना काफी काबिले तारीफ होता है। पर ये खुशी ज्यादा दिन नही रह सकी। शायद अपनी इस जीत की दीवाली में आप ने लक्ष्मी जी के लिए दरवाजे नही खोले थे। दिल्ली में जनलोकपाल बिल पास कराने में केजरीवाल का अड़ियल मिजाज का असर पूरी पार्टी पर पड़ा। हाथ में आई सत्ता को अनमोल न समझ ऐसे ही छोड़ दिया। जैसा कि हम अक्सर फिल्मों के दृश्य में देखते हैं। एक नायक लोगों का भला सोचते हुए निकलता है और जब उसपर कुछ उगंली उठती है तो वह उस पद को त्याग देता है।बाद में लोगों को हकीकत का पता चलता है तो उसे फिर से वही कार्यभार पर बैठा देते हैं। कामयाबी की खुशी में आप रील लाईफ और रियल लाईप के अंतर को भूल गई थी। दिल्ली की सत्ता त्यागने के बाद आप का प्रधानमंत्री मिशन बन गया था। पूरी पार्टी लोकसभा के चुनाव में जमकर मेहनत शुरू कर दी थी। दिल्ली की सत्ता छोड़ने के बाद दिल्लीवासी ही नही ब्लकि पूरे देश के लोगों के विश्वास को जैसे ठेस पहुंची। नतीजा आप के सामने था। आम चुनाव में करारी हार के बाद आप ने 2014 महाराष्ट्र और हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ दिल्ली में भी अपनी फिर से छाप बनाने की बात कर रही थी। हरियाणा प्रभारी ने कहा पार्टी जोर शोर से विधानसभा का चुनाव लड़ेगी इस चुनाव में मोदी का कोई असर नही होगा। योगेंद्र यादव को हरियाणा के लिए मुख्यमंत्री के प्रत्याशी के रूप में भी देखा जा रहा था। आप के हरियाणा प्रभारी के इस बयान को कुछ ही दिन नही बीते थे कि केजरीवाल के एक बयान ने उनके पूरे मंसूबे पर पानी फेर दिया। केजरीवाल ने कहा पार्टी अब महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा का चुनाव नही लड़ेगी। तब इल बात को सुनकर कही न कही एक बार फिर योगेंद्र यादव को जरूर झटका लगा होगा। दिल्ली की सत्ता छोड़ने के बाद अब फिर केजरीवाल कह रहे है कि पार्टी का पूरा फोकस दिल्ली के चुनाव पर होगा। अब चुनाव लड़ने के लिए पार्टी के पास फण्ड भी नही है। लोकसभा चुनाव में पार्टी का सारा फण्ड खर्च हो गया। कहते है व्यक्ति को उतना ही पैर फैलाना चाहिए जितना बड़ा चादर हो। एक बात गौर करने वाली जरूर कही थी, कि बार-बार हार से पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटेगा। इस बात पर पुरानी कहावत याद आती (गिरते हैं सहसवार ही मैदाने जंग में,वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनो के बल चले) सबको पाठ पढ़ाने वाले केजरीवाल आख़िर ये क्यो भूल गए कि हार के डर से पार्टी चुनावी मैदान में नही जाएगी। ऐसे में तो इस लोकसभा चुनाव में बहुत सारी पार्टियों की करारी हार हुई है ते क्या इस हार को लेकर वो अब चुनाव के मैदान में नही उतरेगें। लगता है जनता का भरोसा तोड़ने के बाद आप के संयोजक कुछ डर से गए हैं। लोकसभा चुनाव में हार का सदमा नही भूल पा रहे है। आप दिल्ली में अपना फोकस तो करना चाहती है पर क्या दिल्ली की ज़नता का विश्वास दोबारा से जीत पाएगी ये तो चुनाव के बाद आने वाले नतीजे से पता चलेगा। यही करना था तो पहले समुंदर में कूदने की क्या जरूरत थी। पहले एक राज्य का विकास करते फिर दूसरे का फिर धीरे-धीरे देश का जब राज्य की सारी व्यवस्था ठीक हो जाती तो देश का विकास होना तय ही था। पर यहा हाल कुछ ऐसा था आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी मिले न पूरी पावे। अब दिल्ली की जनता आप पर भरोसा करे या न करे पर हरियाणा में अपनी किस्मत को आजमाने की कोशिश तो करनी चाहिए थी। हमेशा देशहित के लिए बात करने वाली आप से ये बात शोभा तो नही देती। अगर आप को देशहित में कार्य करना है तो क्या दिल्ली क्या हरियाणा क्या महाराष्ट्र। एक चुनाव में मिली करारी हार से इतने हताश हो गए कि हार के डर से मैदान छोड़ना चाहते हैं

2 COMMENTS

  1. रवि श्रीवास्तव जी,आपके आलेख से यह तो जाहिर होता है कि आप आआप को एक विकल्प के रूप में देखना चाहते हैं,पर आप यह भूल रहे हैं कि अभी भारत की अधिकतर जनता नमो की पार्टी को कांग्रेस के विकल्प के रूप में देख रही है.जब तक यह मोह नहीं भंग होगा,तब तक आआप को सोच समझ कर आगे बढ़ना होगा.पंजाब में जीत से यही सबक मिलता है कि आम आदमी पार्टी वहीं सफल होगी ,जहां भाजपा अकेले या अपने सहयोगियों के साथ मिलकर शासन कर रही है., न हरियाणा इस श्रेणी में आता है और न महाराष्ट्र.

  2. आप की महत्वाकांक्षाएं उस को इस मुकाम पर ले जाने की जिम्मेदार हैं , बेशक वह अब चाहे दिल्ली का चुनाव लड़ ले या किसी अन्य राज्य विधान सभा का ,अब वह बात बनने वाली नहीं क्योंकि लोगों की नज़रों से ‘आप’ का पानी उतर चुका है. जनलोकपाल के मुद्दे पर केजरीवाल का अड़ियल रुख उनकी सरकार को क्या पूरी आप को ही ले डूबा जनलोकपाल बिल पास न होने का ठीकरा वे भ ज पा व कांग्रेस के माथे फोड़ कर आराम से राज करते व अपने एजेंडे को पूरा करते , लेकिन उन्होंने तो यह सब जान कर ही सरकार बनाई थी कि इस बहाने वे शहीद हो लोकसभा चुनाव में भी जनता से सहानुभूति ले कर बहुमत प्राप्त करेंगे व प्रधानमंत्री बनेंगे , लेकिन राजनीती के पुराने खिलाड़ियों के पंच में फंस वे ऐसे दुबे की अब याद आ रहा है कि ” ना खुद ही मिला ना विशाले सनम ”

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