एक मई को हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस या मजदूर दिवस या मई दिवस के रूप में मनाया जाता है। वास्तव में, यह दिवस मजदूरों और श्रमिक वर्गों का उत्सव है, जिसे अंतरराष्ट्रीय श्रम आंदोलन द्वारा बढ़ावा दिया जाता है और यह हर साल 1 मई, या मई के पहले सोमवार को होता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 1 मई महाराष्ट्र दिवस और गुजरात दिवस के साथ भी मेल खाता है, जो 1960 में दो भारतीय राज्यों के गठन का प्रतीक है।बहरहाल , यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि किसी भी देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति में मजदूरों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण और अहम् होती है और यह दिवस मजदूरों को उनके अधिकारों, रोजगार, उनकी कड़ी मेहनत और समाज और देश को उनके योगदान विशेष को सम्मान देने के क्रम में हर साल मनाया जाता है।कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला अपनी एक कविता में मजदूरों की दशा पर कुछ यूं लिखा है-वह तोड़ती पत्थर, देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर, वह तोड़ती पत्थर, कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार, श्याम तन, भर बंधा यौवन नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन गुरु हथौड़ा हाथ, करती बार-बार प्रहार, सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।’ बहरहाल, हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि किसी भी समाज और राष्ट्र का विकास तभी संभव हो सकता है, जब वहां के श्रमिक/मजदूर सुरक्षित और सम्मानित हों। यहां यह गौरतलब है कि इस दिवस की नींव सर्वप्रथम वर्ष 1886 में रखी गई थी, जब इस दिन को मनाने की मांग अमेरिका के शिकागो शहर में उठी, जब वहां के मजदूर अपने सम्मान और अधिकारों के लिए सड़क पर उतर आए थे। हालांकि, पहली बार मजदूर दिवस वर्ष 1889 में मनाने का फैसला लिया गया था। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1886 से पहले अमेरिका में मजदूरों ने अपने हकों के लिए हड़ताल की। दरअसल ,मजदूरों की कार्य अवधि(काम के घंटों)को लेकर यह आंदोलन हुआ था, क्यों कि उस दौर में मजदूर 15-15 घंटे काम किया करते थे। आंदोलन के दौरान पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चलाईं , जिसमें कई श्रमिकों की जान चली गई और कई घायल हो गए। घटना के तीन साल बाद 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें हर मजदूर की प्रतिदिन कार्य-अवधि 8 घंटे तय कर दी गई। वहीं एक मई को मजदूर दिवस के तौर पर मनाने का फैसला लिया गया। बाद में अमेरिकी मजदूरों की तरह ही दूसरे देशों में भी श्रमिकों के लिए 8 घंटे काम करने का नियम लागू कर दिया गया। यहां पाठकों को बताता चलूं कि पिछले साल मजदूर दिवस 2024 की थीम ‘जलवायु परिवर्तन के बीच कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करना’ रखी गई थी, जिसमें मजदूरों को सामाजिक न्याय और सभ्य कार्य, उनकी सुरक्षा एवं स्वास्थ्य, डिजिटलीकरण और कार्य का भविष्य तथा कार्यस्थल पर लैंगिक समानता को शामिल किया गया था। कहना ग़लत नहीं होगा कि अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस हमें मज़दूरों और ट्रेड यूनियनों के संघर्षों और उपलब्धियों की याद दिलाता है। सच तो यह है कि यह सामाजिक आंदोलनों और मज़दूरों की बेहतर अधिकारों, सभ्य मज़दूरी और उचित व्यवहार की माँगों को दर्शाता है।उल्लेखनीय है कि भारत में पहला मजदूर दिवस समारोह वर्ष 1923 में चेन्नई (तब मद्रास) में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान द्वारा आयोजित किया गया था। पाठकों को बताता चलूं कि इस दिन की शुरुआत चेन्नई में कम्युनिस्ट नेता सिंगारवेलु चेट्टियार ने की थी। उन्होंने मजदूरों के हक और अधिकारों की मांग को लेकर मद्रास हाई कोर्ट के सामने पहली बार मजदूर दिवस की सभा आयोजित की थी। इसी सभा में पहली बार भारत में ‘मई दिवस’ मनाया गया। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि मजदूरों को काम करने के अधिकार(पसंद का काम करने का अधिकार), भेदभाव के विरुद्ध अधिकार(समान कार्य,समान वेतन), न्यायोचित और मानवीय कार्य स्थितियाँ(कार्यस्थल पर स्वास्थ्य और सुरक्षा, उचित कार्य समय, और अवकाश का अधिकार), सामाजिक सुरक्षा(बेरोजगारी, बीमारी, और अन्य स्थितियों में), मजदूरी की सुरक्षा(समय पर और पूरी मजदूरी का भुगतान, और न्यूनतम मजदूरी का अधिकार), संगठित होने और ट्रेड यूनियन बनाने का अधिकार आदि प्रदान किए गए हैं। इतना ही नहीं, मजदूरों को कार्यस्थल पर गोपनीयता का अधिकार, शिकायतों का निवारण, और प्रबंधन में भागीदारी का अधिकार भी है। आज मशीनीकरण, औधोगिकीकरण, तकनीक का युग है। आज भी मजदूरों को कम वेतन दिया जाता है,उनका शोषण किया जाता है और कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, जो कि सरासर ग़लत और मजदूरों के साथ घोर अन्याय है। मजदूरों के समर्पण, परिश्रम और योगदान का ही नतीजा होता है कि देश और समाज तरक्की के पथ पर अग्रसर होता है। मजदूर अपने कठिन परिश्रम से आम जनमानस के जीवन को आसान और सरल बनाते हैं, इसलिए देश और समाज निर्माण में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। वे किसी भी राष्ट्र के विकास के असली स्तंभ और धुरी होते हैं।अंत में अदम गोंडवी जी के शब्दों में बस यही कहूंगा कि -‘वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है,उसी के दम से रौनक आपके बंगले मे आई है।।’