
यदि डरे पानी से तो फिर,
कैसे नदी पार जाओगे|
खड़े रहे नदिया के तट पर,
सब कुछ यहीं हार जाओगे|
पार यदि करना है सरिता,
पानी में पग रखना होगा|
किसी तरह के संशय भय से,
मुक्त हर तरह रहना होगा|
डरने वाले पार नदी के,
कभी आज तक जा न पाये|
वहीं निडर दृढ़ इच्छा वाले,
अंबर से तारे ले आये|
दृढ़ इच्छा श्रद्धा तनमयता,
अक्सर मंजिल तक पहुंचाती|
मंजिल तक जाना पड़ता है,
मंजिल चलकर कभी न आती|
दृढ़ इच्छा, विश्वास अटल, से,
वीर शिवाजी कभी न हारे,
दुश्मन को चुन चुन कर मारा,
दिखा दिये दिन में ही तारे|
वीर धीर राणा प्रताप से,
त्यागी इसी देश में आये|
पराधीन न हुये कभी भी,
मुगलों से हरदम टकराये|
रानी लक्ष्मी बाई लड़ी तो,
उम्र तेईस में स्वर्ग सिधारी|
तन मन धन सब कुछ दे डाला,
अंतरमन से कभी न हारी|
वीर बहादुर बनकर रहना,
वीरों की दुनियाँ दीवानी|
इतिहासों में लिख जाती है,
बलिदानों की अमर कहानी|
हौसला बढ़ाने वाली कविता बहुत अच्छी लगी, शब्दों का जाल नहीं भाषा की सादगी का सौन्दर्य है।
प्रतिक्रिया के लिये धन्यवाद प्रभुदयाल