
हाथ बाँध , आँख मूँद किसी भी समय में अच्छे समय की परिकल्पना करना बेवकूफ़ी भरी कल्पना ही कहीं जायेगी । किसी भी गलत का विरोध करने पर ही परिवर्तन की उम्मीद की जाती है। सर्वविदित हैं कि देश का युवा ही समाज में नवनिर्माण , नव चेतना का संचार , देश का प्रतिनिधित्व कर सामाजिक, वैचारिक क्रांति करता रहा हैं । हर युग में बाह्य क्रांति से अधिक आवश्यकता मानसिक क्रांति की होती है । वर्तमान युग में युवाओं का विभाजन साफ़ तौर पर नज़र आता है जो धर्म , जाति के हित में संरक्षित नज़र तो आता है किंतु मौलिक अधिकारों की उतनी ही जानकारी लेता हैं जितनी उसे अपनी सुरक्षा के लिए चाहिए होती किंतु क्या जो युवा अपने मौलिक अधिकारों की बात करता है उसे सबके मौलिक अधिकारों का ख्याल नहीँ आता यदि नहीँ आता तो वो अच्छे राष्ट्र निर्माण में सहायक नहीँ हैं एक तरफा सोचता है।वो कोई भी युवा जो अपनी ताकत का उपयोग दूसरे युवा को दबाने का उनके अधिकारों के हनन के लिए करता हैं देश हितैषी कैसे हो सकता हैं? क्यों कि युवाओं का दूसरा वर्ग जो किसी भी प्रकार से हीन माना जाता हैं और उसके सभी अधिकार ना मिलने के कारण पतन की ओर चला जाता है तो उसकी अवनति का कलंक उस पूर्व युवा वर्ग पर लग जाएगा । इसलिए भी युवाओं को देश हित में अपने अधिकारों के साथ साथ उनके अधिकारों के लिए उनके साथ खड़ा हो मूलभूत अधिकारों की रक्षा का उत्तरदायित्व लेना होगा । कोई भी विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान ऑक्सफ़ोर्ड , कैम्ब्रिज या देश के विश्वविद्यालयों में बुद्धिजीवी ही निकलते हो ऐसा नहीँ है निरीह गधे भी निकलते है । युवा की संगठित , ऊर्जा , उत्साह , समाज , देश का अहित साधने वालों को घुटनों पर ला देने की ताकत रखता है । किंतु इसके लिए युवाओं को सम्यक सोच , समान अधिकारों का हिमायती होना होगा। विषमताओं, असमानताओं को मिटाना होगा। देश के कुछ शक्तिशाली लोगों युवाओं की इस उर्जा , शक्ति को एक तरफा सच दिखा कर समाज में युवाओं की ऊर्जावान छवि को खंडित कर रही है । देश की उन्नतशीलता में बाधक है। यदि युवा समाज उत्थान का बीड़ा उठा ले तो स्वकेंद्रित स्वार्थी तत्व हिंसक षडयंत्रों रचने से बाज़ आ जाएँगे । विचार ये भी कर लेना चाहिए कि क्या कारण रहे कि सभी एक पीढ़ी के होते हुए दो हिस्से बन कर रह गये है । हम ही सही हैं ये कभी ना सोचे जब तक दूसरे की बात ना सुन समझ ले।किसी गलत का पक्ष आप इसलिए ना ले की हमारे पूर्वजों ने कहाँ था । किसी सच को सच इसलिए नहीँ माने कि आपके अपने लोग नहीँ कह रहे।सत्य जानते हुए भी रूढ़ छवि को तोड़ने का साहस यदि नहीँ करते मूक नायक बन झुंड में खड़े हो जाये । तो आप देश या नवनिर्माण में सहायक बन रहे हो ये सोचना बंद कर दो। जिन युवाओं को अपने जैसे युवा जो विपक्षी दिखते तो विचार विमर्श कर ले । यदि मनसा गलत हैं तो विपक्षी तो आप हैं ही । यदि नहीँ गलत तो आप सच के साथ डटे जिससे नई उर्जा युवाओं में संचारित हो आगामी पीढ़ियों को स्वस्थ समाज प्रदान किया जाये ।वर्तमान संदर्भ को मद्देनज़र रखते हुए युवाओं को अपनी भूमिका तय करनी होगीं कि वो परिपाटियों पर ही अमल करेंगे या न्याय का प्रतीक बनना चाहेंगे । प्रबुद्ध भारत तक की यात्रा का नया इतिहास बिना आन्दोलन , संघर्ष तो नहीँ लिखा जा सकता ।
डॉ .राजकुमारी