विश्व व्यापी हिन्दू संस्कृति

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                              – वैद्य राजेश कपूर

  आज भारत की सीमित सीमाओं में रहते हुए, और मैकाले की गई शिक्षा के प्रभाव के कारण हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि कभी सारे विश्व में भारतीय संस्कृति का साम्राज्य रहा है। संसार के सारे असभ्य समाज को सभ्य बनाने वाले भारत के लोग हैं। आसानी से इन बातों पर विश्वास  नहीं आ सकता  पर विश्व भर के विद्वानों ने  इसके बारे में लिखा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि भारत के किसी भी विद्यालय अथवा विश्वविद्यालय में इन अद्भुत तथ्यों की जानकारी नहीं दी जाती। इस पर कोई पाठ्यक्रम अथवा साहित्य भी तैयार नहीं किया गया। कोई और देश होता तो उसके एक-एक बच्चे को इसकी जानकारी होती।

विदेशी आक्रमणकारी अपने साम्राज्य को मजबूत करने के लिए इतिहास को अपने ढंग से लिखते हैं। पर स्वतंत्र होने के बाद विश्व के सभी देशों ने अपना इतिहास अपने दृष्टिकोण से लिखा। केवल मात्र भारत एक ऐसा अपवाद है जिसने अपना इतिहास अभी तक स्वयं नहीं लिखा। विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा, आक्रमणकारियों के हित में लिखा गया, आक्रमणकारियों का इतिहास हम अपना इतिहास मान कर पढ़ते-पढ़ते आ रहे हैं। इस इतिहास में  हमारे  गौरवशाली अतीत के हर पहलू को छुपा दिया गया है अथवा  उसके बारे में झूठ बोला गया है। अनेक दशकों से हमें यह झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है।  वास्तव में यह हमारा इतिहास है ही नहीं।

इस्लामी आक्रन्ताओं का 600 साल का, युरोपीय इसाईयों का 200 – 250 साल का; कुल 850 साल का झूठा-सच्चा, पक्षपात पूर्ण इतिहास इन पुस्तकों में है। मुस्लिम आक्रांता ओं के साथ सन 700 से लेकर सन 1100 तक,  सन 1100 से सन 1700 तक मुम्लिम आक्रमणकारियों के साथ जो एक हजार साल का लम्बा संघर्ष  हमने  मुस्लिम आक्रमणकारियों के साथ किया, उसका वर्णन  इस इतिहास में नहीं है। सन् 1700 से सन 1947 तक जो संघर्ष युरोपीय इसाईयों के साथ हुआ, उसका वर्णन इसमें नहीं है। जितना है, वह झूठ से भरा है।

जो राष्ट्र लाखों साल प्राचीन हो, उसके इतिहास को केवल 850 साल के आक्रमणकारियों के काल में समेट देना कैसे सही हो सकता है। सन 1100 पूर्व भारत का और विश्व का जो इतिहास रहा है उसको क्यों नहीं बताया जाता? वास्तव में उस इतिहास को सामने लाने के बाद यह बात उभर कर सामने आ जाती है की कभी पूरे विश्व पर भारतीय संस्कृति का राज्य रहा है। यह भी पता चलता है कि ‘सामी सभ्यता’ के कट्टरपंथी व असहिष्णु सांप्रदायों ने विश्वभर की अत्यंत विकसित, समुन्नत सभ्यताओं को बड़ी निर्दयता पूर्वक नष्ट भ्रष्ट कर दिया। ईसापूर्व विश्व के लगभग सभी देशों में भारत की वैदिक, सनातन, हिन्दू संस्कृति का साम्रज्य था। ये सारी सच्चाई सामने न आए,  इसके लिए बड़ी चालाकी से ऐतिहासिक तथ्यों को दबाया-छुपाया गया है।

* विश्व में कभी भारतीय संस्कृति का साम्राज्य रहा है और वह संस्कृति अत्यंत उन्नत और विकसित थी, इस बात को बहुत छुपा कर रखना चाहते हैं।

* जिन संप्रदायों और विचारधारा के लोगों ने विश्व की सभ्यता को नष्ट भ्रष्ट किया, उनके अत्याचारों, हिंसा व दुष्कर्मों को छुपाकर रखना चाहते हैं।

* भारत का गौरवपूर्ण इतिहास सामने आए, हम गौरव व आत्मविश्वास का अनुभव करें, विश्व हमारी श्रेष्ठता, महानता को स्वीकार करे, हमारी संस्कृति  का साम्राज्य विश्व में पुनः स्थापित हो; विश्व की तामसिक ताकतें नहीं चाहती हैं कि ऐसा हो।

इसलिए इन तथ्यों को छुपा कर रखा गया है। पर वास्तविकता को जानना कोई बहुत मुश्किल नहीं है। विश्व भर के सैकड़ों विद्वानों ने ऐसी पुस्तकें लिखी हैं जिनसे सच को आसानी से जाना जा सकता है।

इस सच को जानने की आवश्यकता क्या है?

यह बात स्थापित हो चुकी है की सैनिक बल के द्वारा आप किसी भी छोटे – बड़े देश, समाज अथवा राष्ट्र को अनन्त काल तक गुलामी में जकड़ कर नहीं रख सकते। पर यदि उसकी मानसिकता को बदल दिया जाए, उनका गौरव, भाषा, संस्कृति, पहरावा, रीति-रिवाज बदल दिए जाएं; उनके इतिहास को बदल दिया जाए; तो वह समाज कभी भी स्वतंत्र होने की इच्छा नहीं करता। स्वतंत्रता और परतंत्रता का बोध ही समाप्त हो जाता है। इसीलिए किसी विद्वान ने कहा है,  “यदि तुम किसी राष्ट्र को नष्ट करना चाहते हो तो उसके इतिहास को नष्ट कर दो, वह राष्ट्र स्वयं समाप्त हो जाएगा।”

यही भारत के साथ किया गया है। हमारे इतिहास, हमारे अतीत को हमसे छीना गया और एक विकृत इतिहास को हमें थमा दिया गया है। वास्तव में जो इतिहास आज हम पढ़ते हैं वह हमारा इतिहास नहीं; हम पर आक्रमण करने वालों का, हम पर अत्याचार करने वालों का, हमारी संस्कृति को नष्ट करने वालों का इतिहास है, जिसे हम अपना इतिहास मान कर पढ़ते आ रहे हैं। इस बात को एक जर्मन इतिहासकार विलहैम वोन पोकहैमर ने समझा। उन्होंने भारत पर एक पुस्तक लिखी है, “इंडियाज रोड टू नेशनहुड।” उसकी भूमिका में वे लिखते हैं, “जब मैं भारत का इतिहास पढ़ता हूं तो मुझे नहीं लगता कि यह भारत का इतिहास है। यह तो भारत पर आक्रमण करने वालों का, भारत को लूटने वालों का इतिहास है। जिस दिन भारत के लोग अपने सही इतिहास को जान जाएंगे उस दिन यह दुनिया को बता देंगे कि यह कौन हैं।” पोक हैमर एक बात यह भी कह रहे हैं कि हमारे इतिहास में इतनी ताकत है कि हम उसे जानने के बाद विश्व को अपनी श्रेष्ठता का आभास करा देंगे।

तो अपना वास्तविक इतिहास जानना जरूरी है।

* कभी विश्व भर में भारतीय संस्कृति व्याप्त रही है, इसके अनेक प्रमाण हैं।

चीन :

शायद हम कल्पना भी ना कर पाएं कि कभी चीन भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत रहा है। अमेरिका में चीन के राजदूत रहे विद्वान हूशिह ने लिखा है,”भारत ने एक भी सैनिक अपनी सीमाओं से बाहर भेजे बिना 2000 वर्ष तक चीन पर अपना साम्राज्य जमाए रखा। सुनने में बहुत अजीब लगता है पर यही सच है। यह सत्य और तथ्य भारत की पुस्तकों में बहुत गौरव के साथ लिखा और पढ़ाया जाना चाहिए था। पर आश्चर्य है कि इसके ऊपर एक पंक्ति भी कहीं लिखी नहीं मिलती। इससे समझा जा सकता है कि वास्तव में भारत की सत्ता भारत का हित चाहने वालों के हाथ में नहीं रही है।

जापान के नाकामुरा नामक विद्वान ने “आइडल्स आफ ईस्ट” नामक पुस्तक लिखी है। उसके पृष्ठ क्रमांक 113 पर वे लिखते हैं,” चीन का धर्म और संस्कृति निसंदेह हिंदू स्रोत की है। एक समय था कि जब रॉयल प्रांत में 3000 हिंदू साधु और 10000 भारतीय परिवार बसे हुए थे जो वैदिक धर्म संस्कृति और कला को वहां चला रहे थे।”

इसी प्रकार प्रोफेसरशिप फ्लिप ने लिखा है,”भारत और चीन का सागर मार्ग से संपर्क बहुत प्राचीन है। ईसा पूर्व 680 में (आज से 2700 साल पहले) चीन में पहुंचे भारतीयों ने वहां बस्ती स्थापित की थी।” (जर्नल आफ रॉयल एशियाटिक सोसायटी 1965 868 525)

विश्व प्रसिद्ध विद्वान अकाउंट बिआर्न स्टीर्ना लिखा है, “ निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि चीन का धर्म भारत से उद्भव है। ( पृष्ठ 15)

मार्कोपोलो लिखता है कि चीनी लोग मृतकों का दाह संस्कार करते हैं। (पोलो खंड 2,पृ.191)

निश्चित रूप से यह भारतीय परंपरा है जो चीन पर हिंदू प्रभाव का प्रमाण है।

चीन के राज परिवारों की वेदो पर श्रद्धा होने के प्रमाण मिलते हैं। प्रोफेसर हांजिन सोंग ने लिखा है, “चीन के राजपुरुषों की वेदों पर बड़ी श्रद्धा है। लगभग साभी शासक वेदों का चीनी भाषा में अनुवाद कराते थे।”

 योग और आयुर्वेद के संस्कृत ग्रंथों का भी चीनी भाषा में अनुवाद हुआ है लगभग 5000 ऐसे ही प्राचीन संस्कृत ग्रन्थियों का अनुवाद चीनी भाषा में उपलब्ध है।

हिंदू देवी देवताओं की पूजा के प्रमाण के रूप में प्राचीन हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां मिली हैं। चीन के ग्वांगझू नगर के न्यू सिम आफ ओवरसीज में शिव, विष्णु, कृष्ण, हनुमान, लक्ष्मी, गरुड़ आदि की अनेकों मूर्तियां प्रदर्शित हैं जो इसी नगर की खुदाई में मिली थीं।

चीन के अन्य प्रांतों में भी इसी प्रकार की मूर्तियां मिली हैं। सन 1934 में जैन सॉन्ग 71 नरसिंह अवतार की मूर्तियां मिली थथीं। गजेंद्र मोक्ष की पुराण कथाओं पर आधारित चित्र भी अनेकों मिले हैं। वास्तु संग्रहालय के एक अधिकारी इन पंचांग के अनुसार वहां चीन का एक मंदिर भारत के मीनाक्षीपुरम मंदिर की शैली का बना हुआ है। गांव में दीवारों पर उत्कीर्ण कालियादमन करते श्री कृष्ण का चित्र खुदा हुआ है। एक पाषाण पर हनुमान जी उसके रहे वहां कभी राम मंदिर रहा होगा।

इस प्रकार के और भी अनगिनत पुरातात्विक प्रमाण मिलते हैं जिनसे वहां हिंदू संस्कृति का प्रभाव सिद्ध होता है।

* मिस्र की वैदिक संस्कृति

आश्चर्य होता है कि मिस्र की प्राचीन संस्कृति भी पूरी तरह से भारतीय मूल की है। प्रसिद्ध विद्वान क्रूटोंस का कहना है कि स्फ़िंक्स का उद्गम भारत से है। नरसिंह अवतार से इसकी समानता है। अब्राहम और प्रह्लाद के व्यक्तित्व में भी बड़ी समानता है। थॉमस मार इसमें लिखा है कि जब मानव जाति तितर-बितर हुई तब जो लोग जल गए हुए लोग इस घ्यावा इतिहास यानी नरसिंह अवतार की स्मृतियां साथ लेते गए

इजिप्ट में आधा नर और आधा सिंह की स्फ़िंक्स की अद्भुत प्रतिमा बनी है, जिसका मूल स्रोत नरसिंह अवतार ही है। मैं यह पूर्ण विश्वास के साथ कहता हूं कि इजिप्ट के शिलालेखों तथा इतिहास में प्रचीन अवतार मत्स्य, वराह, वामन आदि पाए गए हैं।  द्वारा लिखितपुस्तक पृ.क्र.26-30.

स्पिंक्स जैसी नरसिंह भगवान की मूर्ति जगन्नाथपुरी में देखकर कर्नल पियरसन आश्चर्यचकित हो गए थे।

इसके अतिरिक्त और भी अनेकों प्रमाण हैं जिनसे साबित होता है कि मिस्र की संस्कृति पूरी तरह से सनातन रही है। थिओगनी आफ़ हिन्दूज़ के पृष्ठ क्रमांक 36 पर ध्यान देना नामक विद्वान लिखते हैं,

“भारतीय पुराणों के कई नाम इजिप्ट की दंत कथाओं में पहचाने जा सकते हैं। इजिप्शियन लोगों के देवता अमन वास्तव में ओम का ही अपभ्रंश रूप है। लेफ्टिनेंट जनरल चार्ज वैलेंसी (पृष्ठ 569) कहते हैं,

“ इजिट एक तरह से भारतीयों की बस्ती का ही देश है, क्योंकि भारतीय ही सर्वप्रथम इजिप्ट में आकर बसे थे।”

निबूहर और इंडिया विन रिंगटोन जुसीफ़र, जूलियस, यूसीबस आदि अनेक विद्वानों ने साफ़ लिखा है कि इजिप्ट की सभ्यता का स्रोत भारत ही है। जान सजना की पुस्तक में स्पष्ट उल्लेख है भारत और चुटकी धर्मों की तुलना करने पर उन्हें बड़ी समानता प्रतीत होती है। त्रिमूर्ति की कल्पना, आत्मा का अस्तित्व, पूर्व जन्म, समाज के चार वर्ण आदि। भारत के गंगा तट पर बसे शिव मंदिरों जैसा शिवलिंग, नील नदी के तट पर बने उन मंदिर में भी है। मुसलमान बनने के बाद भी मिस्र की स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए मंदिर की परिक्रमा आज भी करती हैं। भारतीय लेखक आयंगर के ग्रंथ “लोंग मिसिंग लिंक्स” तथा “एजुकेशन एंड लीजेंड” के पृ. 368 में एक व्यक्ति का चित्र है जिसके माथे भूषण तथा पीठ पर किसी हिंदू ब्राह्मण जैसे तिलक के चित्र नजर आते हैं।

 अनेक विद्वानों ने लिखा है कि मिस्र के पिरामिड भारत के ब्राह्मणों ने बनाए थे मिश्रा सर मनाने की प्रथा भारतीय प्रथम काशी एक प्रमाण है विद्वानों के अनुसार अजपति का ही अपभ्रंश इजिप्ट है। वहां के शासक रामेश्वर प्रथम राम शास्त्र की आधी राजाओं का नाम भी श्री राम के नाम पर है गिफ्ट के अतिरिक्त अफ्रीकी देशों में भी हिंदू संस्कृति की प्राचीन चंद मिलते हैं आप ही सम्राट हर्ष राशि को स्वामी कृष्णानंद जी महाराज ने रामायण की प्रति भेंट की सम्राट ने कहा हम अफ्रीकी लोगों के लिए हम राम की जानकारी कोई नई बात नहीं है क्योंकि हम सारे कुशाईट हैं। स्वामी कृष्णानंद जी ने कुशाइट का अर्थ पूछा तो उन्होंने बताया कि वे भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज हैं।

1 COMMENT

  1. लेखक ब्राह्मणवादी rss के लगते हैं. इसलिए फेक रहे हैं.
    इन जैसे लेखक का नफरत फैलाने का मिशन ही है. इनके लेख में जूठ ही जूठ है.

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