हंसती खिलती एक सुकुमारी,
माता-पिता की संतान वो प्यारी,
एक रात न जाने कौन कंही से आकर,
उसको मार गया।
मां बाप को उसकी मौत पर,
रोने का अवसर भी न मिला।
बिन जांचे परखे ही पुलिस ने
बेटी का चरित्र हनन किया।
जो भी सबूत मिले उनसे,…
पिता को ही आरोपी घोषित किया,
उनका भी चरित्र हनन किया।
मां ने लाख समझाया,
किसी ने उसकी नहीं सुनी,
और अब न्यायालय ने,
माता-पिता को ही दोषी करार दिया।
ये कैसे कोई माने भला कि
माता- पिता हत्यारे है?
बेटी की लाश के साथ,
वो अपनी भी लाश उठाये हैं!
यदि क्रोध में हत्या हो भी जाती,
तो क्या वो यों ही जी लेते
आत्म समर्पण कर देते,
या आत्म हत्या कर लेते,
अब भी वो कहां ज़िन्दा हैं,
कई बार मरते होंगे हर दिन,
ख़ुद ज़िन्दा है ये सोच के भी,
शर्मिन्दा होंगे।
कविता के लिए धन्यवाद
परन्तु वीनू जी ……तेजी से अमीर होते समाज में कंक्रीट के जंगलों में फसा हुआ व्यक्ति और बचपन अपनी मासूमियत को बहुत पीछे छोड़ चूका है ………
आरुषि कि घटना पर बच्चों में तेजी से बढ़ते हुए अश्लीलता और चरित्र अवनति का प्रश्न भी चिंता जनक है
मुझे इस बात का आश्चर्य है कि जो मूल मुद्दा है कि १६ साल कि बच्ची का ५५ साल के वयस्क नौकर से सम्बन्ध एवं दूसरा कि माता पिता का आनर किलिंग का गुनहगार होना ……..ये दोनों मुद्दे ही इस दुखदायी घटना के मूल में हैं और हम और हमारा समाज दोनों इस दो मूल मुद्दों से भटक कर भावनात्मक रूप से कही और फस गया ?????