‘कांग्रेस : प्रायश्चित बोध भी आवश्यक है’

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congressभाजपा के पी.एम. पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी को कांग्रेस के रणनीतिकार और केन्द्रीय मंत्री पी. चिदंबरम् ने  पहली बार कांग्रेस के लिए ‘चुनौती’ माना है। पी. चिदंबरम् ने कांग्रेस के उपाध्यक्ष  राहुल गांधी के राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा से बचने की प्रवृत्ति को भी पार्टी के लिए चिंताजनक कहा है। उन्होंने कहा है कि राजनीतिक दल के तौर पर हम यह मानते हैं कि मोदी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती हैं। वह मुख्य विपक्षी पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। हमें उन पर ध्यान केन्द्रित करना ही होगा।

यह अच्छी बात है कि कांग्रेस ने मोदी को एक चुनौती माना है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक भी है कि देश में सशक्त और सक्षम विपक्ष होना ही चाहिए। कल को प्रधानमंत्री कौन बनता है-यह एक अलग विषय है, परंतु देश में सक्षम विपक्ष के होने की बहुत ही अधिक आवश्यकता होती है। इससे सत्तारूढ़ पार्टी ‘सावधान’ होकर कार्य करती है और देश के समक्ष चुनौतियों के प्रति राष्ट्रीय नेतृत्व गंभीर होता है। क्योंकि उसे पता होता है कि यदि ‘प्रमाद’ बरता गया तो परिणाम गंभीर होंगे। कांग्रेस ने विपक्ष को सक्षम के स्थान पर सदा ‘अक्षम’ बनाये रखने का जंजाल बुने रखा और सत्ता की थाली का स्वाद चखती रही। विपक्ष अक्षम और अकर्मण्य बना  रहा, यह उसकी अक्षमता और अकर्मण्यता (निकम्मेपन) का ही परिणाम है कि देश में तीसरे मोर्चे (भानुमति का कुनबा) के कंधों पर सवार होकर वह सत्ता का सुखोपभोग सस्ते ढंग से करने को लालायित रहने  लगा है। वास्तव में तीसरा मोर्चा, विपक्ष को सत्ता के शमशानों तक पहुंचाने वाला ताबूत है। अतीत बताता है कि इसी ताबूत पर उठाकर इन तीसरे मोर्चे वालों ने कई सरकारों का अंतिम संस्कार किया है। ऐसी परिस्थितियों को कांग्रेस ने अपने हित में भुनाया है और वह देश की जनता में यह विश्वास स्थापित करने में सफल रही है कि विपक्ष देश को स्थायी सरकार नही दे सकता। तब मोदी का राष्ट्रीय राजनीति में सुदृढ़ता के साथ स्थापित होना देश के लोकतंत्र के लिए सुखदायक अनुभूति है। कुछ लोग उन पर फासिस्ट होने के आरोप लगाते हैं, उनका यह कहना केवल ‘विरोध के लिए विरोध’ की श्रेणी में आता है। क्योंकि उनकी कार्यशैली ने गुजरात में स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने विरोधियों को मिटाते नही हैं और ना ही उनकी आलोचनाओं से विचलित होते हैं, अपितु उनकी आलोचनाओं का अपने कार्य और वाणी से करारा जवाब देते हैं। यदि आप लचीले हैं तो आपको मूर्ख बनाने वालों की दृष्टि में आपका कोई मूल्य नही रहेगा और आपकी लचीली नीतियों का अनुचित लाभ उठाकर वही लोग आपको अपयश का भागी बना देंगे जो आपसे लाभ उठाते रहे हैं। इसलिए नेता को ‘अपेक्षित’ कठोरता का प्रदर्शन करना ही चाहिए। मोदी वैसे नही हैं जैसे कि स्व. इंदिरा गांधी के काल में उन पर अपने विरोधियों को ‘ठिकाने लगाने’ के आरोप लगते रहे थे।

मोदी एक विचाराधारा को लेकर उठ रहे हैं, जिस पर उन्हें जन समर्थन मिलता देखकर कांग्रेस की नींद उड़ गयी है। कांग्रेस के नेता अपने नेता राहुल गांधी से आशा रखने  लगे हैं कि वे हर सप्ताह विदेश भागने के स्थान पर विपक्षी दल भाजपा के पी.एम. पद के प्रत्याशी मोदी का सामना करें और राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने और पार्टी के विचार स्पष्टता के साथ प्रस्तुत करें। सारा देश भी यही चाहता है कि कांग्रेस अपनी छद्म धर्मनिरपेक्षता व तुष्टिकरण की नीतियों से देश को और देश के अल्पसंख्यकों को हुए लाभों को स्पष्ट करें और मोदी इन नीतियों से होने वाले अन्यायों और हानियों का लेखा जोखा देश की जनता के सामने प्रस्तुत करें। यह सत्य है कि कांग्रेस की इन नीतियों से देश के अल्पसंख्यकों का कोई हित नही हो पाया है। देश के समाज की सर्वांगीण उन्नति और उसका समूहनिष्ठ विकास तो सर्व संप्रदाय समभाव और विधि के समक्ष समानता की संवैधानिक गारंटी में ही निहित है। नरेन्द्र मोदी ने अपनी कार्यशैली से स्पष्ट किया है कि वह अल्पसंख्यकों के अनुचित तुष्टिकरण को तो उचित नही मानते पर वो विकास की दौड़ में पीछे रह जाएं, ऐसी किसी व्यवस्था के भी समर्थक नही हैं। वस्तुत: ऐसा ही चिंतन वीर सावरकर का भी था और किन्हीं अर्थों तक सरदार पटेल भी यही चाहते थे। इस देश का दुर्भाग्य ही ये है कि जो व्यक्ति शुद्घ न्यायिक और तार्किक बात कहता है उसे ही साम्प्रदायिक कहकर अपमानित किया जाता रहा है। नमो ने अब मन बना लिया है कि साम्प्रदायिकता यदि शुद्घ न्यायिक और तार्किक बात के कहने में ही अंतर्निहित है तो वह यह गलती बार बार करेंगे और जिसे इस विषय में कोई संदेह हो वह उससे खुली बहस से भी पीछे नही हटेंगे।

लोकतंत्र में चुनावी मौसम में जनता का दरबार ही संसद का रूप ले लेता है। इसीलिए लोकतंत्र में संसद से बड़ी शक्ति जनता जनार्दन में निहित मानी गयी है। अब जनता जनार्दन की संसद का ‘महत्वपूर्ण सत्र’ चल रहा है और सारा देश इसे अपनी नग्न आंखों से देख रहा है। अत: इस ‘सर्वोच्च सदन’ से किसी नेता का अनुपस्थित रहना या किसी नेता के तार्किक बाणों का उचित प्रतिकार न करना भी इस सर्वोच्च संसद का अपमान ही है। लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता ही ये है कि ये राज दरबारों के सत्ता के षडयंत्रों में व्यस्त रहने वाले नेताओं को जनता के दरबार में भी प्रस्तुत करता है और उनके कार्य व्यवहार की औचित्यता या अनौचित्यता का परीक्षण जनता से अवश्य कराता है। अत: यह अनिवार्य हो जाता है कि ऐसे समय पर कोई नेता मुंह छुपाने का प्रयास ना करे। जनता को भी  सावधान रहना चाहिए कि उसे दो लोगों की लड़ाई का आनंद लेते देखकर सत्ता सुंदरी के डोले को कहीं फिर शमशानों में जाकर उसका अंतिम संस्कार करने में सिद्घहस्त कुछ ‘परंपरागत सौदागर’ न उठा ले जायें।

कांग्रेस ने पिछले 66 वर्षों में सबसे अधिक कुरूपित धर्म को किया है। इस पार्टी के चिंतन पर विदेशी लेखकों और विचारकों का रंग चढ़ा रहा है। ये ऐसे लेखक और विचारक रहे हैं जो धर्म को कभी जाने ही नही। क्योंकि उनके देश और परिवेश में भी धर्म को कभी जाना पहचाना नही गया था। जबकि मनुस्मृति के स्मृतिकार मनुमहाराज ने बहुत पहले ही लिख दिया था-

धृति: क्षमा दमोअस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह:।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकम धर्म लक्षणम् ।।

यहां पर धर्म के दश लक्षणों पर विचार करते हुए महर्षि मनु कहते हैं कि जहां क्षमा, धैर्य, सत्य, अहिंसा, इन्द्रियनिग्रह, विद्या, अक्रोध जैसे मानवीय गुण होते हैं, वहां धर्म होता है। वहां मानवता होती है। धर्म की यह परिभाषा नही है, अपितु  केवल धर्म के लक्षणों पर प्रस्तुत किया गया एक गूढ़ विचार है। इस विचार से या धर्म के इन लक्षणों से निरपेक्ष रहना किसी भी सभ्य समाज के लिए असंभव है, इसलिए धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा ही अनौचित्यता से परिपूर्ण है। हां, सम्प्रदायनिरपेक्षता समाज के लिए आवश्यक है। परंतु कांग्रेस ने सम्प्रदायनिरपेक्षता को न अपनाकर धर्मनिरपेक्षता को अपनाया। इसलिए आज के कांग्रेसी नेता राहुल गांधी के लिए यह आवश्यक है कि यह अपने विचार इस विषय में अवश्य प्रस्तुत करें। समय पुकार रहा है-एक चुनौती बनकर, और जब समय स्वयं चुनौती बन जाता है तो उसे उपेक्षित नही किया जा सकता है, क्योंकि समय को काल भी कहते हैं, और ‘काल’ किसी को छोड़ता नही है। अब इस देश में पिछले 66 वर्षों में जिन राजनीतिक मूल्यों या मान्यताओं को कांग्रेस ने स्थापित किया है, वे सभी काल चक्र में पिसने लगी हैं, जिनसे कांग्रेस को अपना बचाव करना ही चाहिए।

पी. चिदंबरम् को चाहिए कि वो कांग्रेस की ओर से पाप प्रक्षालन का पुण्य कार्य भी करें। वो देश के सामने कांग्रेस के पापबोध और प्रायिश्चत बोध के रूप में कांग्रेस को उतारें तो कांग्रेस के बिगड़ते स्वास्थ्य में लाभ हो सकता है। पी. चिदंबरम् तनिक देखें, कि देश में उनकी सरकारों के रहते रहते क्या क्या हो गया-

हिंदी को मरोड़ा गया,अरबी को उसमें जोड़ा गया। हिंदुस्तानी की खिचड़ी, पकाकर हंस से उतारकर वीणा पाणि शारदा को मुरगे की पीठ पर खींचकर बिठाये जाने का कुचक्र चल रहा है। बादशाह दशरथ ‘शहजादा राम’ कहकर वशिष्ठ को मौलवी बताने की तैयारी हो रही है। देवी जानकी को ‘वीर’ बेगम कहा जा रहा है। महाकवि स्वामी रामचंद्र वीर महाराज की ये पंक्तियां बड़ी मार्मिक हैं। जिनमें अंत में कवि कहता है कि….(यदि सब ऐसा हो गया तो) जब तुलसी से संत यहां कैसे फिर आएंगे?

‘तुलसी’ की पूजा का हमारे यहां विशेष विधान है और तुलसी हमारे सम्मान के भी पात्र हैं। क्योंकि तुलसी में हमारी संस्कृति का पूरा ताना बाना छिपा है। आज ‘तुलसी’ पर हो रहा आक्रमण मानो संस्कृति पर किया जा रहा आक्रमण है। इसलिए लड़ाई एक राजनीतिक दल के राजनीतिक चिंतन या राजनीतिक विचारों से नही है, अपितु देश की संस्कृति पर किये जा रहे हैं आक्रमण का प्रतिरोध करने की है। उस पर राहुल के क्या विचार हैं? क्या उनके द्वारा लाया जा रहा साम्प्रदायिक हिंसा निषेध विधेयक देश की समस्याओं का कोई उपचार है या उन्हें और बढ़ाएगा? इस पर दो दो हाथ यदि मोदी और राहुल में हो जाएं तो बुराई क्या है? मोदी की इस बात में बल है कि कांग्रेस ने ही देश का भूगोल बदला है और उसी ने इतिहास बदला है। नेहरू गांधी परिवार का यशोगान कर देश के लाखों स्वतंत्रता सेनानियों को उपेक्षा की भट्टी में झोंक दिया है। अंतत: ऐसा क्यों? कांग्रेस से देश उत्तर चाहता है, कांग्रेस या तो उत्तर दे, या फिर पाप और प्रायश्चित बोध करे। यह प्रश्न मोदी का नही अपितु देश का है, देखते हैं कांग्रेस क्या कहती है?

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

9 COMMENTS

  1. उदय प्रकाश सागर जी,
    हमारे देश की शिक्षा नीति युवा वर्ग को बेरोजगार बनाने की है और यदि उसे रोजगार मिलता भी है तो नौकरी के कार्यकाल मे उसका स्वाभिमान समाप्त कर दिया जाता है ।यह शिक्षा नीति अंग्रेजों के समय से ही चली आ रही है इसलिए शिक्षा मे आमूलचूल परिवर्तन करने की आवयशकता है ।
    आप निराश मत होइए निशा के पश्चात भोर आवश्यक होती है कीर्ति फैलाकर मरना अमरत्व है और जीवन को भोज समझ समझ कर मरना मृत्यु है ।काल सबको निगल जाता है परंतु कीर्ति को नहीं।ईश्वर ने आपको संसार मे किसी महान कार्य के सम्पादन के लिए भेजा है ।इसलिए अपने लिए किसी महान कार्य को ढूंढो और जुट जाओ लक्ष्य की साधना मे ।
    मेरा चलभाष है
    9911169917

  2. लेकिन कांग्रेस इस बात को मानने के लिए कतई तैयार नहीं.श्री शिंदे चिदंबरम के विपरीत कह चुके हैं कि मोदी कांग्रेस के लिए खतरा नहीं.है.इसलिए यदि कांग्रेस अँधेरे में रहना चाहती है तो कौन रोक सकता है.अभी तो यह कड़वाहट और भी बढ़नी ही है.आपने बहुत अच्छा आकलन किया,शुक्रिया.

  3. राकेश जी विचार उत्तम है ।आपकी स्थापनाएँ विचार के लिए,जगह छोड़ती है । जितना पाप कांग्रेस का है उससे बड़ा पाप भाजपा का है ।सत्ता और विपक्ष दोनों दलों ने अपनी भूमिका का सफल निर्वाह नहीं किया है । विपक्ष सत्ता कि लगाम होती है । लगाम ढीली हो तो लक्षेदार भाषणों से जनता को काम चलाना पड़ता है और कलम भ्रमित हो शब्दांकन करने लगती है । लोकतंत्र का यही दुर्भाग्य है ।अंततः लोकतंत्र कि बैतरणी में जनता को ही डूबना है ।
    “प्रायश्चित बोध भी आवश्यक है’”
    डॉ. उमेश चन्द्र शुक्ल

    • आदरणीय शुक्ला जी,
      राजनीतिक विचारधाराओ के नाम पर “कलम का रुकना ” देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण रहा।हर लेखनिकार की राजनीतिक विचारधारा अलग हो सकती है लेकिन राष्ट्रहित कलम के लिए कभी अस्पष्ट नहीं हो सकता पर यहाँ लेखको ने भी अपनी कलम के साथ न्याय नही किया।कलम का यदि सही प्रयोग किया जाता तो कोई संभावना नहीं थी कि यहाँ काँग्रेस और भाजपा सहित सभी राजनीतिक दल जनपेक्षाओ पर खरे न उतार पाते।आज स्थिति ये है कि हम इन दलो को ढो रहे है और ये दल देश को ढो रहे है।सब एक दूसरे के लिए बोझ हैं,इसलिए दायित्व बोध नहीं रहा। आपकी उत्साह जनक प्रीतिक्रिय के लिए हृदय से आभारी हूँ।

  4. क्या हो रहा है और क्या होने वाला है, ये सभी जानते हैं फिर भी लोगों को मूर्ख बनाने कि कोशिशें भरपूर चल रही हैं. देखते हैं ऊँट (जनता) किस करवट बैठता है. आखिर भविष्य भी तो उसी का है. इन सब के बीच उल्लखित पंक्तियाँ

    “महाकवि स्वामी रामचंद्र वीर महाराज की ये पंक्तियां बड़ी मार्मिक हैं। जिनमें अंत में कवि कहता है कि….(यदि सब ऐसा हो गया तो) जब तुलसी से संत यहां कैसे फिर आएंगे?”
    (कृपया इस कविता को उपलब्ध कराएं)

    उपरोक्त पंक्तियाँ बहुत बड़े षड़यंत्र कि तरफ इशारा करती हुई नजर आ रही है, भारतीय नहीं सम्भले तो पराभव निश्चित है.

    सादर……

    • आदरणीय शिवेंद्र जी,सप्रेम नमसकर
      सर्वप्रथम तो मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ कि मैं आपको अपने एक दूसरे लेख पर दी गयी प्रतिक्रिया का उत्तर नही दे पाया। इस प्रतिक्रिया में जिस कविता को प्रकट करने की इच्छा व्यक्त की है, ये मैंने भी एक वक्ता के भाषण से ग्रहण की थी पूरी कविता तो मेरे पास उपलब्ध नहीं हैं परंतु यदि भविष्य मे उपलब्ध हुई तो मैं आपको अवश्य उपलब्ध कराऊंगा।वर्तमान परिश्थितिया सचमुच निराशाजनक हैं परंतु निराशा को निराशा मानना और भी निराशाजनक हैं।निराशा को चुनौती मान कर उत्साह बनाए रखना,समय की आवश्यकता है।सरदार पटेल का गुजरात फिर आशा जगा रहा है। जिस दिन देश के नेता घालमेल ,घपले,घोटाले करने बंद कर देंगे उस दिन देश की जनता जागरूक मानी जाएगी। इसलिए समाज मे राजनीतिक चेतना पैदा करने के लिए वैचारिक क्रांति की आवयशकता हैं।इसीलिए लेखनी के माध्यम से इतिहास के छुपे हुए तथ्यो को देश के सामने लाने का प्रयास कर रहा हूँ।देश के इतिहास के साथ इतना बड़ा घोटाला हो चुका हैं की आर्थिक घोटालो की छतिपूर्ति तो संभव हैं पर उसकी नहीं हो सकती।आपको मेरी संबन्धित लेखमाल अच्छे लग रहे है तो ये मेरा सौभाग्य है ।
      आपकी दोनों प्रतिक्रियों के लिए धन्यवाद ।
      सादर।

  5. सुन्दर आलेख|
    चेतावनी === इनसे चेतिए।
    (१) बिना विचारे मतदान करनेवाली भेडों की टोलियाँ।
    (२) जाति या सम्प्रदाय (मज़हब) की अंधश्रद्धासे मतदान करने वाले।
    (३) मतदान के समय घर बैठनेवाले आलसी मतदाता।
    (४) राष्ट्र के वास्तविक हित से अज्ञान प्रजा।
    (५) गांधी के छद्म नाम पर ही मोहित प्रजा।
    (६) नरेन्द्र मोदी के द्वेष से ही अंधे जन।
    (७) बिका हुआ महाचोर सस्ता मिडीया।
    (८) सी. बी. आय। (कांग्रेस ब्युरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन)
    (९) सारी पार्टियों के भ्रष्टाचार्योंकी सामुहिक टोली, जिनके अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष (पर पारदर्शी) विधानों से, सभी “सुधी पाठक” उन्हें चुटकी में, पहचान जाते हैं; ऐसे।
    ===>इतने सारे लोग देश के (नरेन्द्र मोदी के) विरोधी हो सकते हैं।और एक-
    ===>(१०) तीसरा दिशाविहीन मोर्चा–उसका एक ही परम उद्देश्य,– मोदी का द्वेष।
    प्रश्नः
    चवन्नी, अठन्नी के सस्ती चिल्लर, जो पहले कांग्रेस के समर्थन में अपनी सडी हुयी चर्पट-पंजरी बजा रही थीं, वह , कैसे, बन्द हो गई ?
    सही सही आलेख। लेखक को धन्यवाद।

    • श्रेधेय डॉक्टर साहब, प्रेरनास्पद प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ।आपके द्वारा दस के दस बिन्दु बहुत ही विचारणीय हैं और ग्रहणीय है दसो बिन्दु देश की उस राजनीतिक स्थिति को स्पष्ट करते है जिसमे हम पिसने के लिए अभिसप्त हो चुके हैं।लोकतन्त्र के नाम पर हमे ठगा आर छला जा रहा है।देश के लोकतन्त्र मे व्यापक सुधारो की आवयशकता हैं, यदि लोकतंत्रता का नाम आपके द्वारा इंगित दस बिन्दुओ के चारो और घूमती हुई किसी व्यवस्था का नाम हैं तो इससे घटिया राजनीतिक व्यवस्था ओर कोई नही हो सकती और यदि लोकतन्त्र इससे भिन्न कोई व्यवस्था है तो मानना पड़ेगा की वह हमसे इतनी दूर कर दी गयी है की उसे लाने के लिए आज हमे फिर एक स्वतन्त्रता संग्राम लड़ना पड़ेगा ।
      यहाँ तो हर प्रश्न चिन्ह के सामने उससे बड़ा और फिर उससे बड़ा प्रश चिन्ह लगा पड़ा हैं।स्वामी की आँखों पर पट्टी बांध कर चोर चोरी कर रहे हैं और आश्चर्य की बात हैं की स्वामी ये कहे जा रहे हैं कि मेरा सब समान सुरक्षित हैं।
      आपके मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद।

      • Dear sir my name is uday prakash sagar i am a account holder of BOI since 15 years My country is so corrupt politicians and bureaucrats, tHey by ruining me with family is forced to commit suicide So the people of my country and the Bank are also been insensitive On the banks of my country, no nation does not want free from pollution and progress ,There are no patriot Today I figured out why the talent of the country, is going out of the country,The loan is only for rich people For me, not enough be Indian can not get a loan of three hundred thousand rupees, so I can bring into the country a new technology Me to, the country’s Prime Minister / President / Chief Minister and bureaucrats and any bank, do not given so many rupees, so I could save my family from starvation The biggest shame is to say, now a man An Foreign citizen from London, has sent me twenty thousand rupees for save me and my family and he did promise he will talk with British govt. and they will use my technology will carry foreword if you are really Indians give me help i want serve to nation please read below
        Sir, without recharge the battery car formula which will have the power to charge battery only one time after that you do not need to charge it, it will continue to charge as much as it will drive many many kilometres, three hundred and four hundred kilometres to drive, no matter, right now my formula fits into any car/bus will reduce the cost of production,no need diesel/petrol/CNG/engine
        Sir, I have gave a formula to Delhi Government, stop for bus accident, and resolve the problem of traffic jam formula, had given with the guarantee. Who were lost to government officials, because of which my economic situation has become so bad If did no get me financially help in a week, so my family is left with no option to commit suicide; had written a latter to President of India , for wish death with family , you are treasure most of India, If you wish give me a small financial aid, than you can save a talented person of country And also you can save his family from starvation,i will be highly obliged you till life my bank detail branch kesho pur bank of india
        uday prakash sagar a/c no 604410100009787 IFSC code BKID0006044
        thank you
        Your indebted
        uday prakash sagar9811723988
        मेरे देश के नेता तथा नौकरशाह तो भ्रष्ट हैं मुझे इन्होने बर्बाद करके परिवार सहित आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया है तो क्या मेरे देश के लोग तथा बैंक वाले भी संवेदनहीन हैं क्या मेरे देश के बैंकों में कोई भी देश की तरक्की तथा पोलुशन मुक्त नहीं चाहता है ,
        क्या कोई देश भक्त भी नहीं हैं मुझे आज पता लगा है , क्यों देश की प्रतिभा, देश के बाहर चली जाती है क्या मेरे लिए, भारतीय होना काफी नहीं है मुझे, देश के प्रधान मंत्री/राष्ट्रपति/मुख्यमंत्री तथा नौकरशाहों तथा किसी बैंक ने, इतने रुपये नहीं दिए, जिससे मैं अपने परिवार को भूखों मरने से बचा सकूँ मुझे तथा मेरे परिवार को, बचाने के लिए लन्दन से एक बिदेशी आदमी ने मुझे बीस हजार रुपये भेजे हैं अगर आप देश भक्त हैं तो मेरी सहायता करो. इस टेक्नोलॉजी से देश का भला करके ग्रामीण क्षेत्र में बिना बिजली के प्रदुषण रहित यातायात साधन तथा रोजगार दे सकूँ देश का एक नागरिक ,देश की व्यवस्था से दुखी

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