कैसा वह नया ज़माना होगा

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-जावेद उस्मानी-

poem

आओ देखें आने वाला अपना कल कितना सुहाना होगा।
कैसा अपना जीवन होगा कैसा वह नया ज़माना होगा !
हर तरफ अजब धुंध होगी, अपना चेहरा अनजाना होगा
सच और झठ को तोलने का , बस एक ही पैमाना होगा !
कहने को मेरी सूरत होगी मगर, अफसाना उनका होगा
गीत कोई भी गाये कहीं पे, मगर तराना उनका होगा !
चाँद सितारों की बातें होगी, और कटोरा खाली होगा
भूख की आग पेट में होगी, चूल्हा इक सवाली होगा !
आंसू से भीगी सुबह होगी, वजूद पे तारी अँधेरा होगा
मुस्कराहट, रोती होगी, दिल में सदमों का डेरा होगा !
सोना सस्ता, हीरे सस्ते, बस इक रोटी ही मंहगी होगी
अपने घर में सन्नाटा, दुनिया उनकी रंग बिरंगी होगी !
अखबारों में छपे एलानों से, मिटेगी सबकी भूक बेकारी
कैसा सहज समय होगा, सारी मुश्किल हल होगी हमारी !
बैचैनी सब खत्म होगी चारों ओर अमन ही अमन होगा
ग़ुरबत में कम से कम , मुयस्सर क्या न कफ़न होगा !

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