चुनावी वादों की घूस

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संदर्भ-चुनावी घोषणा पत्र में पत्रकारों को लालच का टुकड़ा

प्रमोद भार्गव 

download (3)पांच राज्यों में होने जा रहे चिधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को वादों की घूस देकर भटकने की कोशिश में लगे हैं। जिससे मतदाता राज्यों की बुनियादी समस्याओं, मंहगाई, भ्रष्‍टाचार, रोजगार, कानून समस्या, महिला सुरक्षा और कुपोषण जैसे मुद्दों से भटक जाएं। सरकारी कर्मचारियों की नौकरी की उम्र और उनके वेतन-भत्ते बढ़ाए जाने का वादे तो किए हैं,लेकिन दायित्व निर्वहन नहीं करने पर दांडिक कार्रवाई की बात कहीं दिखाई नहीं देती। मध्य प्रदेश भाजपा ने तो पत्रकारों को ललचाने की दृष्टि से लैपटॉप तक का टुकड़ा फेंका है। क्या यह वादा निष्‍पक्ष पत्रकारिता को प्रभावित नहीं करेगा ? घोषणा-पत्र में वादे सिर्फ गरीब,कमजोर और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए होने चाहिए,जिससे समानता की दौड़ में वह आगे आ सकें। खैर,जागरूक मतदाता को इन वादों के सम्मोहन में नहीं आना चाहिए,क्योंकि एक सर्वेक्षण मुताबिक अन्य राज्यों में हुए चुनाव के वक्त जो वादे दलों ने किए थे, उनमें से 90 फीसदी धोखा साबित हुए हैं।

कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रमुख दलों ने मुफ्रत तोहफे बांटने की झड़ी अपने-अपने दृष्टि-पत्रों में लगाई है। मध्य प्रदेश,राजस्थान व छत्तीसगढ़ में बीपीएल परिवारों को एक रूपए किलो प्रति परिवार, प्रतिमाह 35 किलो गेहूं देने की बात कही गई है,लेकिन हैरानी है,इसी भाव और इसी मात्रा में पहले से ही इन सभी राज्यों में गेंहूं बांटा जा रहा है। फिर क्या इस घोषणा का दोहराया जाना मतदाता के साथ छल नहीं है ? मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने 10 लाख आवास बनाने की बात कही तो भाजपा ने इन्हें बढ़ाकर 15 लाख कर दिया। लेकिन भाजपा ने पिछले पांच साल में कितने अवास बनाए,इसका कोई हिसाब नहीं दिया। दोनों ही दलों ने किसानों को मुफ्त बिजली, मेरिट में आने वाले छात्रों को स्कूटी, 75 फीसदी अंक पाने वाले छात्रों को लैपटॉप, महिलाओं को तीन अतिरिक्त गैस सिलेंडर और मां बेटी संपर्क योजना के तहत, मां-बेटी दोनों को ही मुफ्त मोबाइल देने की बात कांग्रेस ने कही है। इसकी काट में भाजपा ने कॉलेज में प्रवेश लेने वाले सभी छात्रों को स्मार्ट फोन देने का वादा किया है। 5 लाख युवाओं को रोजगार भी दिया जाएगा। तय है, इन आसमानी सुल्तानी वादों पर अमल संभव नहीं है।

भाजपा के सबसे दिलचस्प वादों में पत्रकारों को लुभाना है। भाजपा सत्ता पर फिर से काबिज होती है तो राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकारों को लैपटॉप दिए जाएंगे। सामूहिक बीमा योजना और बस किराए में छूट का भी प्रलोभन दिया गया हैं। जाहिर है,सरकार किसी भी दल की बने,किए वादे पूरे करने में हजारों करोड़ रूपए खर्च होंगे। यह राशि जुटाना टेढ़ी खीर होगी। मसलन वादे पूरे नहीं होंगे।

यदि बीते ढाई साल के दौरान पांच प्रमुख राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में किए वादों की समीक्षा करें तो पता चलता है,90 प्रतिशत वादे मतदाता के साथ धोखा साबित हुए हैं। इन चुनावों में हरेक दल ने मुफ्रत लैपटॉप से लेकर सस्ते राशन तक का वादा किया था। कहीं पूरे राज्यों को वाईफाई करने का वादा था,तो कहीं वादों में समान वेतन-भत्ते देने का वादा किया गया। लेकिन सत्ता मिलते ही ज्यादादर राजनीतिक दल वादे पूरे करने से मुकर गए। उन्हें पूरा करने में धन की कमी,कहीं अदालत के अड़ंगे,तो कहीं वन अधिनियम का रोना रो दिया गया। कहीं केंद्र के नियम बाधा बन गए। कर्मचारियों के वादे आयोग बिठाकर टाल दिए गए। घोशणा-पत्रों में तमाम ऐसी घोषणाएं भी शामिल कर ली जाती हैं, जो पहले से ही अमल में लाई जा रही होती हैं।

फिलहाल देश में गुजरात मॉडल को अनुकरणीय माना जा रहा है। वहां के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र में यदि भाजपा की सरकार बनती है तो देश के भावी प्रधानमंत्री भी घोषित कर दिए गए हैं। इसी गुजरात में किए गए वादों के अमलीकरण की पड़ताल करें। एक सर्वे के मुताबिक राज्य भाजपा ने वादा किया था,कि पूरे राज्य को वाईफाई की सौगत देंगे। फिलहाल यह वादा हवा-हवाई है। राज्य की 16 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचित किए जाने का वादा भी वादों में शामिल है। इसके लिए 3195 करोड़ रूपए का बजट प्रावधान तो किया गया है, लेकिन काम कहीं शुरू नहीं हुआ। गरीबों के लिए 50 लाख घर भी बनाए जाने हैं। इनमें से 28 लाख नगरों में और 22 लाख गांवों में बनाए जाएंगे। सरकार ने मुख्यमंत्री समृद्धि योजना में 4400 करोड़ रूपए की व्यवस्था तो की है, लेकिन जमीन पर अमल कछुआ चाल से चल रहा है। हकीकत में अभी तक 10 लाख घर बन चाहिए थे, लेकिन एक लाख भी नहीं बने।

वादों की घूस का आलम उत्तर प्रदेश में और भी बद्तर है। समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार ने वादा किया था,10 वीं और 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों को लैपटॉप व टैबलैट बतौर उपहार दिए जाएंगे। बमुष्किल 50 फीसदी लक्ष्य ही सरकार हासिल कर पाई थी कि इससे पहले 2013 में नया बैच पास आउट होकर लैपटॉप पाने का हकदार हो गया। अब सरकार सांसत में है और यह चुनावी वादा जमीन से ओझल होता जा रहा है। 10 वीं पास कर लेने वाले मुस्लिम छात्रों को 30 हजार रूपए की आर्थिक मदद की जानी थी, लेकिन मदद का काम कछुआ गति से चल रहा है। सपा धोशणा-पत्र में वादा था कि 35 वर्ष से अधिक उम्र के हरेक बेरोजगार को एक हजार रूपए बतौर भत्ता दिया जाएगा। लेकिन जब सत्ता पर कबिज होने के बाद सरकार ने धन की तंगी का सामना किया तो इसमें इतनी कागजी खानापूर्तियां जोड़ दी गईं कि बेरोजगार अर्जियां लगाने से पीछे हट रहे हैं।

तमिलनाडू की जयललीता ने वादा किया था कि वे मुख्यमंत्री बनती हैं तो 11 वीं और 12 वीं के सभी विधार्थियों को लैपटॉप देंगी। लेकिन योजना अभी तक खटाई में है। राज्य को 24 घंटे बिजली भी उन्हें देनी थी,लेकिन बमुश्किल 12 से 16 घंटे बिजली मिल रही है। हालांकि जयललिता ने 20 किलो चावल और शादी के वक्त कन्याओं को 25 हजार नकद व 4 गा्रम सोने के मंगल सूत्र देने के वादे पूरे भी किए हैं। हिमाचल प्रदेष में कांग्रेस ने वादा किया था,वे जीते तो सब्सिडी वाले साल में 9 की जगह 12 गैस सिलेण्डर देंगे। लेकिन सत्ता में काबिज होने के बाद कह रहे हैं,केंद्र इसकी इजाजत नहीं दे रहा। जबकि केंद्र और राज्य में कांगे्रस की सरकारें हैं। 12 वीं पास गरीब छात्रों को एक हजार रूपए बेरोजगार भत्ता देने का वादा भी किया था,लेकिन सरकार अब इसे असंभव मान रही है। यहां छात्रों को किए वादे के मुताबिक लैपटॉप भी नहीं दिए गए।

पंजाब में पूरे राज्यों को वाईफाई देने का वादा किया था। लेकिन अब सरकार ने चुप्पी साध ली है। सरकारी कर्मचारियों की तरह छोटे किसानों को पीएफ का लाभ देने का वादा किया था। लेकिन अब बजट का रोना,रोया जा रहा है। अकाली दल ने सरकारी विद्यालयों में 12 वीं के छात्रों को इंटरनेट डाटा कार्ड के साथ लैपटॉप देने का वादा किया था, किंतु इस दिशा में अब तक कोई पहल नहीं की गई,जाहिर है,ज्यादातर वादे थोथे साबित हुए हैं। इस लिहाज से मतदताओं को वादों की घूस के प्रभाव में नहीं आना चाहिए।

हकीकत तो यह है कि मुफ्त उपहार बांटे जाने के वादे राज्यों की आर्थिक बदहाली का सबब बन रहे हैं। यह स्थिति चिंताजनक है। मतदाता को ललचाने के यह अतिवादी वादे, घूसखेरी के दायरे में आने के साथ,मतदाता को भरमाने का काम भी करते हैं। लिहाजा ये आदर्श आचार संहिता का खुला उल्लघंन हैं। थोथे वादों की यह अतिवादी परंपरा इसलिए भी घातक एंव बेबुनियाद है,क्योंकि अब चुनाव मैदान में उतरने वाले सभी राजनीतिक दल घोषणा-पत्रों में नए कानून बनाकर नीतिगत बदलाव लाने की बजाय मतदाता को व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने की कवायद में लग गए हैं। जबकि व्यक्ति की बजाए सामूहिक हितों की परवाह करने की जरूरत है। हालांकि अपवाद रूवरूप आम आदमी पार्टी जरूर भ्रश्ट्राचार मुक्त दिल्ली में शासन देने के मुद्रदे पर चुनावी समर में है। मध्य प्रदेष भाजपा ने तो पत्रकारों को लालच देकर निष्‍पक्ष पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ही प्रभावित करने की कोशिश कर डाली। आष्चर्य इस बात पर है कि पत्रकार संगठनों ने इस प्रलोभन का विरोध नहीं किया। वादों की घूस को नीतिगत फैसला लेकर नहीं रोका गया तो यह प्रवृति निष्‍पक्ष निर्वाचन के लिए भविष्‍य में घातक साबित होगी।

2 COMMENTS

  1. गुजरात के विषय में “अर्धसत्य” लिख कर आप गुजरात पर ही नहीं, भारत की जनता पर भी अन्याय ही कर रहें हैं। यह दिग्भ्रम ही मानता हूँ।
    इस लिए, गुजरात ने कितने वादों को पूरा किया इसका भी प्रचार आवश्यक है। हमेशा कुछ वादों पर काम तो चलता ही रहेगा। मैं निम्न कुछ समाचारों को आपके सामने उजागर करना चाहता हूँ।
    (१) डॉ. वत्सला मणी (जिनके पति ने गांधीनगर में लॉ यूनिवर्सिटी में काम किया) ने “मानुषी” में लिखा(२००४ से २००७ तक के )अपने अनुभव जनित लिखा, आलेख बताता है, कि गुजरात से बहुत प्रभावित थीं।
    (२)उसी प्रकार, “सुमित्रा गांधी कुलकर्णी”[कांग्रेस की राज्य सभा की पूर्व-प्रतिनिधि] जो गांधी जी की पोती हैं, उसका साक्षात्कार डी. एन. ए. ने लिया था, उसका भी आधार यही बताता है, कि गुजरात में बिजली, सडक, पानी और भ्रष्टाचार रहित शासन आज भी कोरा वचन नहीं, पर सच्चाई है।
    (३) मेरा वैयक्तिक साक्षात्कार, अहमदाबाद का आँखो देखा दृश्य मेरे लिए यही सच्चाई प्रतिपादित करता है, कि गुजरात में बहुत बहुत सुधार हुआ है।
    आप का, सभी को एक टोकरी में लपेटना निश्चित अनुचित मानता हूँ।

  2. दोनों मुख्या पार्टियां जानती हैं कि चुनावी वादों की खेती से वोट बटोरे जा सकतेहैं तो वे चुनाव जितने के बाद क्यों उनके प्रति गम्भीर रहें. वे यहभी जानती हैं कि जनता के पास उनके अलावा विकल्पभी क्या है.मुफ्त अनाज बाँटने,लैपटॉप , इ फ़ोन देने करमचारियों के भत्ते बढ़ने आदि पर तो बढ़ चढ़ कर वादे करेंगी, पर महंगाई , भ्रस्टाचार घोटालों, महिला सुरक्षा,अपराध रोकने आदि के लिए उनका क्या विजन है क्या योजना है इस पर मौन है. शिक्षा उद्योग स्वास्थ्य पर नहीं बोलेंगी रोजगार देने का वादा करने से पहले पार्टियां यह नहीं बता रही कि किस क्षेत्र में वे कितने रोजगार कैसे सृजित करेंगी.व पह्ले से ही खाली राजकोष से कैसे खर्च चुकाएंगी. मुफ्त अनाज, दवा और अन्य विषयों पर धन लुटाने वाली सरकारें कैसे आर्थिक संसाधन जुटाएंगी इस पर वे मौन हैं स्पष्ट है कि ये चुनावी रेवड़ियां बाँट रही हैं किसी के पास कोई अपना दृष्टि कोण नहीं जाहिर है कि वे केवल सब्जबाग दिखा सत्ता में आना चाहती हैं और आ भी जाएँगी क्योंकि जनता के पास कोई विकल्प नहीं. दो बुरों में से एक बुरा तो चुना ही जायेगा वह भी धर्म, जाति बाहुबल शराब और पैसे के बल पर. यह सब करने केबाद उन्हें तो अपने और अपनों के पेट ही भरने होंगे जनता यूँ ही चिल्लाती रहेगी.

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