त्योहार : भारतीय संस्कृति के नींव का पत्‍थर

शादाब जफर ‘‘शादाब’’

images (3)अपनी पैदाइश से अब तक की मेरी पूरी जिंदगी भारत में ही बीती हैं और मैं खुद को इस संस्कृति का हिस्सा मानता हूं। भारत की मोहब्बत मेरे दिल में उसी तरह रची-बसी है, जिस तरह अपनी मां के लिए है।

मैं समझता हूं कि भारतीय संस्कृति के दो पहलू हैं। एक पहलू है आध्यात्मिकता और दूसरा पहलू है हमारे त्‍योहार। आध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति का भीतरी पहलू है और त्यौहार हमारी साझा संस्कृति की अन्मोल धरोहर है ये त्यौहार ही हमे एक दूसरे की परम्पराओ से जोडे है इन त्यौहारो से ही देश में एकता भाईचारा कायम है श्स्वामी विवेकानंद आध्यात्मिकता के प्रतीक हैं और त्यौहार हमारी गंगा जमनी तहजीब के।

मैं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे नजीबाबाद (बिजनौर) में पैदा हुआ। नजीबाबाद पूरी दुनिया में एक ऐसा खूबसूरत कस्बा है जिस की गोदी में हिंदू और मुस्लिम दोनो ही संस्कृति पलती है में ये बात पूरे गर्व से कह सकता हूं कि ऐसा शहर पूरी दुनिया में कही नही। ये बात में यू कह रहा हूं कि नजीबाबाद के इतिहास में आज तक कोई भी साम्प्रदायिक दंगा या हिंदू मुस्लिम जैसी कभी कोई बात दर्ज ही नही है। मेरी पैदाईश के समय मेरा परिवार मध्यवर्गी था मेरे वाल्दि सरकारी नौकारी में तहसील नजीबाबाद में पेशकार पद पर कार्यरत थे घर मेरी वाल्दि के अजीज दोस्तो में जहां वहीद चच्चा, शौकत ताऊ और अली रजा जैसे दोस्त थे जो वही, जग्गू, जगन्नाथ चच्चा और शुरेश ताऊ का घर पर आना जाना लगा रहता था। उस माहौल में मेरे अंदर कभी यह बात आई ही नहीं कि हिंदू अलग हैं और मुसलमान अलग। मुझे याद है कि जब दीवाली आती थी तो हम अपने घर में रोशनी करने के लिए दिए जलाते थे। दशहरा आता तो कस्बे के दूसरे लड़कों के साथ मेला देखने जाते थे। और आज भी होली दिवाली पर में अपने सारे हिंदू दोस्तो के घर उन्हे बधाई देने और होली मिलने जाता हॅू और ईद पर मेरे घर मेरे हिंदू दोस्त शीर और सिवई खाने ईद मिलने जरूर आते है मुझे ऐसा लगता है कि दशहरा- दीवाली, ईद, होली, हिंदु -मुस्लिमों के नहीं, बल्कि भारत के कौमी त्योहार हैं। मेरे चाचा के यहा दीवाली, होली आज भी खूब धूमधाम से मनाई जाती है लगभग 27 सालो से नजीबाबाद में ईद पर मुशायरे का आयोजन हिंदू भाई और होली मिलन पर कवि सम्मेलन का आयेजन आज भी मुस्लिम भाई करते है।

मेरी प्राइमरी शिक्षा एक सरकारी स्कूल में हुई। वहां मैंने जो किताबें पढ़ीं, उनमें एक ऊर्दू रीडर भी थी। उसमें एक कविता थी, जिसका शीर्षक था ’’गाय’’ इस कविता की पहली लाइन थी- रब की हम- दो-सना कर भाई, जिसने ऐसी गाय बनाई। इस कविता की पहली लाइन मेरे लिए भारतीय संस्कृति का पहला परिचय थी। कविता की एक लाइन थी- कल जो घास चरी थी वन में, दूध बनी वह गाय के थन में। इसी से मैंने जाना कि गाय को भारत के लोगों ने इसलिए मुकद्दस माना, क्योंकि वह भारतीय संस्कृति की प्रतिनिधि है। गाय को दूसरे लोग घास देते हैं, लेकिन वह उन्हें दूध देती है। यानी गाय में ऐसी ताकत है कि वह नॉन मिल्क को मिल्क में बदल देती है। इसका मतलब यह है कि इन्सान को दुनिया में इस तरह रहना चाहिए कि दूसरे लोग भले उसके साथ बुरा सलूक करें, पर वह उनके साथ अच्छा सलूक करे। वह नकारात्मक अनुभव को सकारात्मक अनुभव में बदल दे।

स्वामी विवेकानंद की जिंदगी का एक वाक़या इस चीज की अच्छी मिसाल पेश करता है। एक बार उनके एक दोस्त ने उन्हें अपने घर बुलाया। जिस कमरे में वे लोग बैठे, उसमें एक मेज पर तमाम मजहबों की पाक किताबें रखी थीं। किताबें एक के ऊपर एक रखी थीं, और सबसे नीचे गीता रखी थी- हिंदू मजहब की मुकद्दस किताब। स्वामी जी उसे गौर से देख रहे थे। गीता पर उनकी नजर देख कर मेजबान ने नम्रता से पूछा, क्या गीता को सबसे नीचे देख कर उन्हें बुरा लगा है? स्वामी जी मुस्कुराए और बोले, नो, आय सी दैट द फाउंडेशन इज रियली गुड (बिलकुल नहीं, मैं तो देख रहा हूं कि नींव बहुत अच्छी है)। इस तरह स्वामी जी ने एक नकारात्मक नजरिए को सकारात्मक प्रसंग में बदल दिया।

भारतीय संस्कृति का एक बहुत बड़ा संदेश शांति भी है जिसे गांधी जी ने अपनाया। आज सारी दुनिया को शांति की भी जरूरत है और महात्मा गांधी ने व्यावहारिक तौर पर दिखाया कि शांति में कितनी ताकत है। भारत की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यहां की संस्कृति परस्पर सहमति पर कायम है। यानी अपने को सच्चा मानते हुए दूसरों की सचाई की भी इज्जत करना। यही वजह है कि भारत में हर मजहब के लोगों को तरक्की करने का मौका मिला। मेरा अपना मानना है कि आज की दुनिया में 47 मुसलिम देश हैं, लेकिन भारत मुसलमानों के लिए सबसे अच्छा देश है। किसी भी कौम की तरक्की के लिए दो चीजों की जरूरत होती है- शांति और आजादी। ये दोनों चीजें एक साथ आज किसी भी मुसलिम मुल्क में मौजूद नहीं हैं, जबकि भारत में हैं। मुसलमानों के लिए तरक्की का जो मौका यहां मौजूद है वह किसी और देश में नहीं।

हमारे त्‍योहार हमारी साझा संस्कृति की अन्मोल धरोहर है ये त्यौहार ही हमे एक दूसरे की परम्पराओ से जोडे है इन त्यौहारो से ही देश में एकता भाईचारा कायम है हिंदू मुस्लिम से बडी पहले हम भारतवासी है और ये त्योहार और ये परम्पराए कहती है कि भारत की संस्कृति को बचाने के लिये हमे अपने देश के इन त्यौहारो को मिलजुल कर मनाने से हमारी संस्कृति सदियो तक जीवित रह सकती हैं हमारे ये त्यौहार ही हमारी संस्कृति की नींव को मजबूती प्रदान करते है।

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  1. आज हमारी नई पीढ़ी में न तो त्योहारों के प्रति कोई आदर है न उनको अपनाने कि चाह. सामाजिक सदभाव को बढ़ाने व लोगों को निकट लाने में इनका बहुत योगदान रहा है.पर व्यक्तिगत स्वार्थों ने इनकी आधार शीला ही ख़तम कर दी. रही कसर राजनितिक नेताओं ने पूरी कर दी. धर्म जाति संप्रदाय के नाम पर लोगों में ऐसा अलगाव पैदा करने की कोशिश की है कि अब एक दूजे पर विश्वास करने को कोई तैयार नहीं.हमारे कठमुल्ले धार्मिक नेताओं के योगदान को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिन्होंने अपनी दुकाने चलाने के लिए धर्म के भी टुकड़े टुकड़े कर दिए ,व अपने अपने धड़े के नेता बन लोगों में घृणा व भेदभाव पैदा कर दिया जरूरत आज एक बार फिर इन त्योहारों को लोगों के दिलों में बसने की है. दिवाली दशहरा होली ईद क्रिसमस डे व राष्ट्रिय त्योहारों का महत्व बता लोगों को नजदीक लाने का प्रयास हम सभी को करना चाहिए.यह सभी की जिम्मेदारी है.

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