महत्वपूर्ण लेख राजनीति

नमो का विरोध आखिर क्यों?

विकास कुमार गुप्ता

narendra-modiप्रजातंत्र में जब सबकुछ जनता को ही तय करना है तब आखिर देशभर के नेता, बुद्धिजीवी, विचारक, समाजसेवी एवं अनेकों प्रकार के लोग आखिर मोदी विरोधी बयान क्यों दे रहे हैं? और यह बयानबाजी जब सात समुन्दर पार अंतर्राष्ट्रीय मीडियाओं द्वारा आने लगे वह भी एक प्रजातांत्रिक देश के लिए तो स्थिति का आंकलन स्वतः किया जा सकता है। न्यूयार्क टाईम्स ने अपने 18 अक्टूबर 2013 के सम्पादकीय में मोदी की व्याख्या जिस तरीके से की वह अप्रत्यक्ष रूप से मोदी विरोध था।

17 सितम्बर 1950 को वर्तमान गुजरात में जन्मे नरेन्द्र मोदी राजनीति शास़्त्र में परास्नातक हैं। अक्टूबर 2001 में केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद से मोदी वर्तमान तक गुजरात के मुख्यमंत्री हैं। विचारणीय है कुछ सालों पहले नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय स्तर के नेता नहीं माने जाते थे एवं उनके बयानों को कोई खास तवज्ज़ों भी नहीं दी जाती थी। नरेन्द्र मोदी का दायरा लगभग गुजरात तक ही सीमित था। इनके नमो बनने का सिलसिला तब शुरु हुआ जब भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बैठक में उपस्थित पाये गयें। उस समय भाजपा किले में पीएम प्रत्याशी की घोषणा को लेकर वीरों का अस्त्र प्रयोग, पोस्टर प्रयोग, अनुपस्थिति, उपस्थिति की गूढ़ विद्या, आवश्यक अनावश्यक बयानबाजियों का दौर चल रहा था तब अनेकों धुरंधर महाभारत के द्रोणाचार्य, अर्जुन और चिडि़या की आंख के मनन में थे। हां यह दीगर था कि कुछ पर्दे के पीछे से निशाना बेध रहे थे तो कुछ खुलेआम मंच पर आसीन होकर। उस समय राजनीति के दिग्गज माने जाने वाले लोग एक सिरे से मोदी को पीएम पद के लिए खारिज कर रहे थे लेकिन अंततः मोदी भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार घोषित कर ही दिये गये फर्क इतना रहा की पहले मोदी विरोधी बयानबाजियाँ राजनीति के गलियारों से आती थी लेकिन अब यह लगभग हर उस जगह से आ रही हैं जहां से जनता को विश्वास में लिया जा सके कि मोदी प्रधानमंत्री बने तो देश में माहौल खराब हो जायेगा और मोदी के योग्यता पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। शोभन सरकार से भी आगे बढ़ते हुए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात कन्नड़ लेखक डा. यू आर अनंतमूर्ति ने कहा था ”नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर वह देश में नहीं रहेंगे।“ अन्ना हजारे भी मोदी को प्रधानमंत्री के लायक नहीं मानते। चिंतक माने जाने वाले केएन गोविंदाचार्य ने फरवरी में कहा था कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लायक नहीं हैं। उससे पहले नीतिश कुमार, शरद यादव, दिग्विजय सिंह सरीखे अनेकों नेता मोदी के पीएम पद को लेकर अपने विरोधाभाषी बयान जारी कर चुके हैं। देश के लगभग जाने माने लोग मोदी को लेकर अपनी छिंटाकसी कर चुके हैं।

महात्मा गांधी ने अपने लिखित वक्तव्य में कहा था ”याद रखना, आजादी करीब हैं। सरकारे बहुत जोर से यह जरूर कहंेगी कि हमने यह कर दिया, हमने वह कर दिया। मै अर्थशास्त्री नहीं हूँ, लेकिन व्यावहारिकता किसी भी अर्थशास्त्री से कम नहीं हैं, आजादी के बाद भी जब सरकार आएगी, तो उस सरकार के कहने पर मत जाना, इस देश के किसी हिस्से में एक किलोमीटर चल लेना, हिन्दुस्तान का सबसे लाचार, बेबस बनिहार मिल जायेगा, अगर उसकी जिन्दगी में कोई फर्क नहीं आया तो उसी दिन, उसी क्षण के बाद चाहे वह किसी की सरकार हो उसका कोई मतलब नहीं। गांधीजी के विचार तो विचार ही रह गये। नेहरू की पहली सरकार आयी और आज हम यूरोप से 65 गुणा पीछे हो चुके हैं। हमारी कीमत जोकी रुपये की कीमत है वह कम हो चुकी हैं। हमने लोन ले लेकर अपनी औकात कम कर चुके हैं। महात्मा गांधी तो संविधान लागू होने से पहले ही विदा हो गये। अगर वर्तमान में गांधीजी भी होते और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होते तो शायद उनका, मोदी से ज्यादा विरोध होता। क्योकि गांधीजी होते तो वल्र्ड बैंक, डब्ल्यूएमएफ की नीतियों का विरोध करने वाले पहले भारतीय होते। अमेरिका, ब्रिटेन की भाषा पर इस देश को कतई नहीं लुढ़काते। अमेरिका, ब्रिटेन और चीन आदि वैश्विक देशों की वैसी वस्तुओं को यहां कतई नहीं बेचने देते जो जीरों तकनीकी की हैं लेकिन वर्तमान व्यवस्था में हमारे खुदरा दुकान ब्रिटेन के यूनीलीवर और अमेरिकी प्रोडक्टों से पटे पड़े हैं। बस फिर वैश्विक कंपनीयां और ये सभी देश गांधी विरोध में जुट जातें। गांधीजी होते तो आज नमक पर टैक्स नहीं होता। गांधीजी होते तो समूचा तंत्र वैसा नहीं होता जैसा आज हैं। परिवर्तन की आंधी चलती और यूरोप की नीतियां और विचार तेज हवां के झोंकों के साथ वापस यूरोप भाग जाते। एक बार लाल बहादुर शास्त्री जी ने कुछ ऐसा ही करने की कोशिश की थी और नतीजा सब जानते हंै कि उनका पोस्टमार्टम तक नहीं हुआ था। उनको ताशकंद में में भी मृत पाया गया।

वर्तमान में भारत की स्थिति समझने के लिए बस इतना उल्लेख काफी है कि हमारे देश के स्लम एरिया में पालतु कुत्तों से भी बद्तर जिन्दगी बसर कर रहे लोगों की संख्या विश्व के अनेक देशों की जनसंख्या से भी ज्यादा हैं और आने वाले समय में यह और भी भयावह रूप में हमारे सामने आने वाला हैं। यूरोप का पूंजीवादी चेहरा भारत को ढंकने लगा हैं और इस चादर पर जाने अनजाने भारत के रसूखदार लोग सवार हैं। इन रसूखदार लोगों में अधिकतर अनजान हैं कि यह पूंजीवादी चेहरा भारत को उस चादर तले ढंक लेगा जहां सिर्फ स्लम एरिया और अमेरिका सरीखे संपन्न लोग बचेंगे। जो जानते हैं वे जानबूझकर अनजान बने हुये हैं क्योंकि उन्हें पता है उनका क्या हश्र हो सकता है और जो बेचारे अजनान हैं उनकी बात ही करनी बेमानी हैं। जाति, पाति, पंथ, विचार आदि अनेकों फैक्टर के पहियों पर यह देश चलायमान हैं और इससे यूरोप को कोई कष्ट नहीं और अगर भारतीय प्रजातंत्र के संविधान के अनुसार जनता मोदी को प्रधानमंत्री बनाती है तो इसमें यूरोप और कथित भारतीय विशेषज्ञों, नेताओं, समाजसेवियों आदि को दिक्कत हैं? अपने मन से अथवा दूसरों के बयानों को तोता सरीखे रटने वाले बुद्धीजीवियों को अपने बयान से पहले सोचना चाहिये कि अगर भाजपा मोदी को पीएम प्रत्याशी बना रही है तो मोदी कोई पीएम नहीं बन जाने वाले। चुनाव होगा जनता जिनकों चुनेगी वे और उनकी पार्टियां मिलजुलकर तय करेंगी की मोदी पीएम बनेंगें या नहीं। मोदी विरोध के चादर पर वैश्विक कंपनीयों, यूरोप और तथाकथित आजादी पश्चात् यूरोपीय विचारधारा और रंग को सबसे चमकदार बताने वाले कुछ लोग हो सकते हैं। आजादी पश्चात से अबतक लगभग वही लोग देश के नीतिकर्ता रहे हैं जिन्होनंे बीएमडब्ल्यू और मर्सीडीज से बैलगाड़ी को खींचने की कोशिश की हैं और जो यूरोपीयन गुणगान के समर्थक रहे हैं। समाजवादी पार्टी के महासचिव नरेश अग्रवाल जिस प्रकार कहा कि ” एक चाय बेचने वाले का नजरिया कभी राष्ट्रीय स्तर का नहीं हो सकता।” वह प्रत्यक्ष रूप से प्रदर्शित कर रहा है कि जमीनी आदमी का पीएम पद पर पहुंचना न सिर्फ देश के रसूखदार लोगों के लिए विरोधाभाषी हैं बल्कि गांधीजी के बनिहार वाली कथन के लिए विरोधाभाषी हैं। दरअसल ब्रिटिश इंडिया से चली आ रही परंपरा के अनुसार देश का कोई भी जमीनी व्यक्ति अगर पीएम बनता है तो अंग्रेजी रंग में रंगे लोगों के लिए दिक्कत की बात तो होगी ही। बाकी आप सभी समझदार हैं और समझदारों के लिए इशारा ही काफी हैं। मोदी विरोध सिर्फ इसीलिए हो रहा है कि ताकी ब्रिटिश इंडिया के समय से चली आ रही शासन में आमूल चूल परिवर्तन न हो सकें। और यह यूरोपीयन देश से लेकर इनके पूंजीवादी रंग में रंग जाने वाले अनजाने भारतीय रसूखदार भी चाह रहे हैं इसीलिए सिर्फ मोदी विरोध हो रहा हैं।