बदहवास लोग और खोखले दरख्त

tमहर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि रेगिस्तान में अरण्ड का पौधा भी बड़ा पेड़ दिखाई देता है। यही स्थिति समाज और राष्ट्र के लिए उस समय बन जाया करती है जब वास्तव में राष्ट्र में बड़े नेता ना हों और छोटे छोटे दीपक स्वयं को सूर्य समझने लगें या समझाने का प्रयास करते दीखें। मुजफ्फरनगर दंगों में मानवता हारी और मानवता की ही हत्या की गयी, लेकिन नेताओं की एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की ऐसी झड़ी लगी कि सच कहीं दबकर रह गया। मरने वालों को मरने के बाद भी हिंदू मुस्लिम के रूप में देखा जा रहा है। कोई भी ये नही मान रहा कि जो गया वह एक मनुष्य था और अब हमारी मानवता इसी में है कि हम जाने वाले को सम्प्रदाय के नाम पर ना जानें, अपितु उसे एक मनुष्य का नाम दें। झूठे तथ्य, झूठे आंकड़े और झूठे लोग सच को झूठ की इतनी तहों में लपेट चुके हैं कि आप चाहे कितने ही आयोग बना लेना, पर सच को नही खोज पाओगे।

‘तहलका’ समाचार पत्रिका के संस्थापक एवं संपादक तरूण तेजपाल अपनी कलम की तरूणाई के कारण पूर्व में ‘तहलका’ के माध्यम से ‘तहलका’ मचा चुके हैं, परंतु अब एक बार उनकी वास्तविक तरूणाई रंग लायी है और उन पर उनकी एक सहयोगी महिला पत्रकार ने ‘यौन शोषण’ का आरोप जड़ दिया है। ‘तहलका’ के तरूण तेज के इस कृत्य ने संवेदनशील लोगों के हृदय पर वज्रपात कर दिया है। लोग सोचने पर विवश हो गये हैं कि अंतत: हम जा किधर रहे हैं? कलम यदि रास्ता भूलेगी या संसार के क्षणिक सौंदर्य को ईश्वरीय सौंदर्य के समक्ष उच्च और उत्कृष्ट मानेगी तो मानना पड़ेगा कि उस कलम के पीछे सांसारिक ऐषणाऐं ही खड़ी थीं जो उसे ऊंचाई दे रही थीं।  उसमें ‘साधना’ का अभाव था। लक्ष्य और साधना को साधना ही गरिमा देती है। यदि साधना को जीवन से निकाल दिया तो लक्ष्य और साधन चाहे कितने ही ऊंचे और पवित्र क्यों ना हो व्यक्ति के सपनों का महल साधना के अभाव में भर-भराकर गिर जाता है। इसलिए तरूण तेजपाल के अपने सपनों का महल ढह चुका है और वह अब केवल एक आरोपी की मुद्रा में खड़े होकर अपनी सफाई पेश करते दिखाई देंगे। वह पत्रकारिता के क्षेत्र में खोखले दरखत सिद्घ हुए हैं और जो उनसे आशाएं की जा रही थीं-उन पर वह खरे नही उतर पाये हैं। जीवन की सबसे बड़ी कठिनाई का नही अपितु सबसे बड़ी हार का वह सामना कर रहे हैं। ऐसी हार जिसका अंत केवल मृत्यु में ही होता है। काल सबको खा जाता है, परंतु कीर्ति को नही खा पाता है। कीर्ति काल को पछाड़ देती है और उस पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेती है। जिस व्यक्ति की कीर्ति पर काले बादल छा जाएं वह जीवित ही मर जाता है।

राजनीति में स्वच्छता का अभियान भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण करने के संकल्प को लेकर चलने वाले अन्ना हजारे ने आरंभ किया। उस अभियान में अरविंद केजरीवाल ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। परंतु अपने गुरू के साथ ही ‘छल’ करते हुए अपनी लोकप्रियता के नशे में धुत्त अरविंद ने राजनीति की कीचड़ में ‘कमल’ खिलाने का सपना लेकर ‘आम आदमी पार्टी’ का गठन कर लिया। लोकतंत्र में अपने विचार को बलवती करने और सत्ता प्राप्त करने का अधिकार सबको है। इसलिए देश के लोगों ने आम आदमी पार्टी के गठन को अनुचित नही माना। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के विधानसभा चुनावों में अपने प्रत्याशी उतार दिये। लोगों को भ्रांति थी कि एक नया दरखत राजनीति में दिखाई देने लगा है, परंतु वह दरखत भी झाड़ी या अरण्ड का पौधा ही सिद्घ हुआ। भ्रष्टाचार के विरूद्घ खड़ा हुआ नेता भ्रष्टाचार में ही फंसा और धंसा नजर आया। लोगों को एक ‘स्टिंग ऑपरेशन’ के माध्यम से पता चल गया कि कालाधन डालरों के माध्यम से कैसे इस आम आदमी पार्टी के पास आ रहा है? खोखले नेता-खोखले दरखत, खोखले आदर्श???

पटना में नरेन्द्र मोदी की रैली हुई, तो नीतीश कुमार को पता चल गया कि बिहार की जनता किधर जा रही है? सावधानी से अपनी वाणी को उसी प्रकार संभालने लगे जैसे एक ‘देहाती महिला’ अपने ज्येष्ठ के सामने सर से उतरते पल्लू को संभालने लगती है। किसी भी प्रकार अपने पुराने दोस्तों से मुलाकात की इच्छा जगने लगी। तब एक बहाना मिल गया। देश की सरकार (जो अब एक देशी शहजादे के अनाड़ीपन से चल रही है) ने ‘शहजादे’ के दिशा निर्देश पाकर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने की घोषणा कर दी। क्रिकेट के इस ‘भगवान’ के साथ ही महान वैज्ञानिक सी.एन. राव के नाम की भी घोषणा कर दी गयी। नाम दोनों ही अच्छे हो सकते हैं, नामों पर किसी को आपत्ति नही है, परंतु इन नामों में जो राजनीति और कमनिगाही दिखाई दी वह आपत्ति जनक है। सचमुच भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल जी देश की जनता की दृष्टि में ‘भारत-रत्न’ हंै, उन्हें कांग्रेस के मनमोहन सिंह एक बार ‘भीष्म पितामह’ तो कह चुके हैं, पर उन्हें ‘भारत-रत्न’ के योग्य नही माना गया। इसी प्रकार भारतीय खेल हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान सिंह की स्थिति है, सारा देश इन दोनों लोगों के लिए ‘भारत-रत्न’ देने की प्रतीक्षा कर रहा था। लेकिन खोखले नेताओं के खोखले आदर्श सामने आ गये और उन्होंने दूसरे नामों की घोषणा कर दी।

तब पटना के गांधी मैदान में चित्त हुए नीतीश को नीति की बात उसी प्रकार स्मरण हो आयी जैसे कई षडयंत्रों में सम्मिलित रहे कर्ण को युद्घ के मैदान में अपना रथ कीचड़ में फंस जाने पर धर्म और नीति की, बात का स्मरण हो आया था। इसलिए उन्होंने अटल जी को भारत रत्न देने की बात कह डाली। निश्चित रूप से उचित बात को कहे जाने का अधिकार लोकतंत्र में विरोधी को भी होता है, और जब उस उचित बात को विरोधी कहता है तो वह और भी अधिक सात्विक और प्रामाणिक बन जाती है, परंतु तभी जब विरोधी की भावना और बुद्घि भी सात्विक और प्रामाणिक हो। नीतीश ने बड़ी बात कहकर भी अपने खोखले पन को दर्शा दिया है। उन्हें राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देना था तो उसी समय देना चाहिए था, जब भाजपा उन से प्रेमपूर्ण और नीतिगत संबंध बनाये रखने में रूचि दिखा रही थी। यहां तक कि उनकी पार्टी के लोग भी उन्हें समझा रहे थे कि मोदी बड़ी सावधानी से धारा 370 को हटाने, समान नागरिक संहिता लागू करने, राममंदिर निर्माण कराने जैसे मुद्दों पर कुछ नही बोल रहे हैं। वह ‘सबका देश-सबको समान अधिकार’ की बात कह रहे हैं, तो इस उचित बात पर अपनी मुहर लगाकर उन्हें समर्थन दिया जाए। परंतु उस समय के दम्भी नीतीश ने ‘द्रोपदी’ का चीरहरण होने दिया और पटना के गांधी मैदान में रथ फंसते ही धर्म और नीति की बात करने लगे। उचित बात के लिए उचित व्यक्ति (अटल) का आश्रय ढूंढ़ते नीतीश उचित अवसर को तो चूक गये और अब समय के चूके गोते खा रहे हैं। खोखले लोग, खोखली बातें:-रस नही आता-दूर-दूर तक जल नही दीखता-घोर राजस्थान में देश का रथ चला गया है।

संविधान ने देश में जाति, संप्रदाय और लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार से राजनीति करने  या लोगों के मध्य विभेद करने को अनैतिक मानते हुए निषिद्घ किया है। परंतु देश के एक बड़े नेता मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में संविधान की इस मान्यता की धज्जियां उड़ा रहे हैं और सीधे सीधे खुली साम्प्रदायिक घोषणा कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट भी उनकी घोषणाओं पर कड़ा दृष्टिकोण अपना चुका है परंतु उन्होंने फिर कह दिया है कि वह मुस्लिमों के हकों की लड़ाई को लड़ते रहेंगे। मुस्लिमों के अधिकार क्या हैं? क्या लैपटॉप पाना या 30 हजार रूपये अध्ययनरत मुस्लिम लड़कियों को दिलवाना या साम्प्रदायिक आधार पर उनके धर्मस्थलों या कब्रिस्तानों की मरम्मत आदि कराना ही मुस्लिमों के अधिकार हैं? नहीं हैं, उनके अधिकार हैं-शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सेवाओं में उनको स्थान देना। इसके साथ ही भारत माता के भी कुछ अधिकार हैं-मां के प्रतिपूर्ण समर्पण। इसलिए प्रत्येक नागरिक को ऐसा पाठ पढ़ाना सरकार का दायित्व है कि वह स्वभावत: भारत माता के प्रति व इसके सामाजिक मूल्यों के प्रति निष्ठावान बने। हमारी यह बात केवल मुस्लिमों के लिए ही नही है, अपितु प्रत्येक नागरिक के लिए है। उस दिशा में मौलाना मुलायम सिंह यादव इतना ही काम कर पाये हैं कि वह स्वयं मौलाना हो गये। खोखला आदर्श-खोखले कद का निर्माण करता है और कद को कभी व्यक्ति या व्यक्ति के प्रशंसकों की दृष्टि से नही देखा जाता है, अपितु इतिहास अपने मानदण्डों से स्थापित करता है। सचमुच देश की परिस्थितियों को देखकर यही कहा जा सकता है :-

आंधियों से कुछ ऐसे बदहवास हुए लोग

कि जो दरखत खोखले थे उन्हीं से लिपट गये।

रेगिस्तान में कोई बड़ा पेड़ भी तो नही दीख रहा, अरण्ड के पेड़ों से चिपटना या खजूर की छाया में सोने का दिवास्पन लेना या आंधी में खोखले दरखतों से लिपट जाना देश की जनता की सबसे बड़ी बाध्यता है। हम सभी ईश्वर से प्रार्थना करें कि 2014 के पश्चात देश को सुदृढ़ और सुविवेकी नेतृत्व मिलें। हम अपने मत का मूल्य समझें।

Previous articleबदलावों के बीच मानसिकता में बदलाव कब?
Next articleकेंद्र की मंशा ही है बांटों और राज करो
राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

10 COMMENTS

  1. ‘जैसे एक ‘देहाती महिला’ से आपका क्या तात्पर्य है, समझ में नहीं आया ,
    नेहरु के विचारो का डीएनए हमारे अंदर इतनी गहराई तक घुसा हुआ है की आप जेसे विद्वान् व्यक्ति भी देहाती शब्द /औरत की सामाजिक मर्यादा /व्यव्हार की उपेक्षा कर बैठते है. भारतीय संस्कृति व संस्कार के कुछ ब्यवहार आज भी देहातो में ही मिलते है.

    • पवन जी नमस्कार,
      देहाती महिला शब्द को मैंने inverted commas में दिखाया है.जिसका विशेष अर्थ डा० मनमोहन सिंह के लिए पाक प्रधानमंत्री की हाल में ही दी गई टिप्पणी की ओर संकेत करना था.पाकिस्तान में चाहे देहाती महिला जैसी हो परन्तु भारत में वह बहुत ही मर्यादित और सहनशील होती है.मै भारतीय नारी के विषय में आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ.प्रवक्ता पर पड़े मेरे नारी सम्बन्धी लेखों को आप देखेंगे तो निश्चय ही आपके मत की पुष्टि में मेरा हाथ आपके साथ होगा.आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद.
      सादर

      • धन्यवाद , में आपके लेखों को बड़े मनोयोग से पड़ता हु तथा चिंतन करता हूँ, भारतीय संस्कृति के प्रचार- प्रसार में आपका अमूल्य योगदान मानता हूँ , विरोधियो को उचित जबाव देने की आप में विलक्षण प्रतिभा हैं .
        कृपया भारतीय नव वर्ष के वारे में कुछ लिखने का कष्ट करें.

  2. राकेश कुमार जी, बहुत दिनों से कुछ सामयिक व्यस्तता के कारण प्रवक्ता पर कम ही आ पाता था. अब इस ओर अधिक आने की उम्मीद है. आपने दो बातें कही हैं.पहली बात है अन्ना जी और अरविन्द केजरीवाल के बीच मतभेद की, तो मेरे विचार से यह मतभेद है. दूसरी बात है आंदोलन के भटक जाने की ,तो इसके बारे में मेरा व्यक्तिगत मत बहुतों से मेल नहीं खाता है,पर यह सत्य है कि जिस रूप में आंदोलन रामलीला मैदान तक चला था( यानि अप्रैल २०११ से अगस्त २०११ तक),उस रूप में अब आंदोलन का महत्त्व समाप्त हो चुका था. रामलीला मैदान वाला दृश्य और जनता की इतनी भागीदारी फिर से सम्भव नहीं था. इसमें भी दो मत नहीं कि रामलीला मैदान तक इसमें आर एस एस के स्वयं सेवक भी संगठित रूप से उस आंदोलन में मौजूद थे. राम लीला मैदान के जनता के सैलाब में उनकी संख्या बहुत भले ही न रही हो,पर वे कम नहीं थे. संगठन और उससे जुडी राजनैतिक पार्टी को शायद लग रहा था कि इसका अंतिम लाभ उन्ही को होने वाला था,क्योंकि उन्हें या शायद अरविन्द केजरीवाल को भी यह ख्याल नहीं था कि कोई पार्टी बनाने की आवश्यकता पड़ेगी.
    मेरे विचार से यहाँ भाजपा से एक बड़ी भूल हो गयी या होसकता है कि उन्होंने जान बूझ कर ऐसा किया हो.अगर भाजपा जन लोकपाल के समर्थन में खड़ी हो जाती तो भी अन्य पार्टियां इसको पारित नहीं होने देती,पर भाजपा को इससे स्पष्ट लाभ मिल जाता और वह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाली पार्टी के रूप में विख्यात हो जाती. पर ऐसा नहीं हुआ.सब पार्टियां संसद के अंदर और बाहर अपना दांव खेल गयी और उतने बड़े आंदोलन का प्रभाव समाप्त हो गया. जाहिर था कि अब वैसे दृश्य की पुनरावृति नहीं हो सकती ,फिर भी अन्ना जी ने मुम्बई में अनशन किया,पर वह प्रभाव हीन सिद्ध हुआ. मेरे विचार से इसके बाद जो भी इस तरह के आंदोलन होते उनका प्रभाव न जनता पर पड़ता और न सरकार पर. विकल्प देने की आवाज भी उठने लगी थी. १५ मंत्रियों के भ्रष्टाचार को आधार बना कर जुलाई अगस्त २०९१२ का आंदोलन आरम्भ हुआ और उसका अंत हुआ बिना शर्त समाप्ति में इस घोषणा के साथ कि अब हम विकल्प देंगे. अन्ना ने ३ अगस्त २०१२ को स्वयं इसकी घोषणा की थी. उस समय विभिन्न टीवी चैनलों ने सर्वे भी कराया था और अधिकतर जानता ने इसका समर्थन किया था. बीच में उकुछ ऐसी चालें चली गयी कि जब अन्ना १८ अगस्त को कांस्टीट्यूशन क्लब आये तो उनका तेवर बदला हुआ था और उन्होंने नयी पार्टी का साथ देने से साफ़ साफ़ मना कर दिया था. यहाँ से आंदोलन अवश्य दो रास्तों में विभाजित हो गया,पर मेरे विचार से राम लीला मैदान के आंदोलन को प्रभाव हीन हो जाने के बाद उस तरह के किसी आंदोलन के सफल होने की आशा करना बेमानी था. पता नहीं यह अन्ना के राजनैतिक पार्टियों से सामान्य एलर्जी के काकरण था या वे स्वयं राजनीति के शिकार हो गए थे ,जिससे उनकी विचार धारा १५ दिनों में बदल गयी थी,पर यह सत्य है कि इससे मरणशील आंबदोलन को तो शायद ही कोई हानि हुई ,पर नई पार्टी उनके सहयोग से अवश्य वंचित हो गयी.

    • आ० आर सिंह जी,
      नमस्कार
      अब तो भाजपा जनलोकपाल के समर्थन में आ गई है.केजरीवाल को भी अब सरकार बनानी चाहिए.बीते हुए कल में कहाँ क्या हुआ अब इस पर मंथन की आवश्यकता नहीं रह गई है,अब तो “आज” ही एक चुनौती के रूप में खड़ा है.बीते हुए कल में किसने किसके साथ छल किया इस पर विचार न करते हुए अब हमारी पूरी शक्ति और ऊर्जा इस बात पर केंद्रित हो कि किसी भी स्थिति में आज के साथ छल न हो जाए.यदि अब भी दिल्ली में पुनः चुनाव हुए तो इसके लिए भाजपा और कोंग्रेस जिम्मेदार नहीं होंगे बल्कि केजरीवाल ही जिम्मेदार होंगे.उन्हें जीत तो मिल गई है लेकिन अभी उन्हें अपने आप को सिद्ध करना शेष है.आपको स्मरण होगा १९८४ में संपन्न हुए लोकसभा चुनावो में तेलुगु देशम पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में संसद में पहुंची थी और बाद में उसकी स्थिति क्या हुई यह सभी जानते है.केजरीवाल यदि स्वंय को स्थापित कर गए तो तभी उनके लिए कुछ कहा जा सकता है.फिर भी हमें देश के उज्वल भविष्य कि कामना करनी चाहिए और यह भी आशा करनी चाहिए कि केजरीवाल का इसमें महत्वपूर्ण योगदान होगा.
      सादर

      • राकेश कुमार जी,बहुत बहुत धन्यवाद. ऐसे तो लोगों में मत वैभिन्य के चलते ही आम आदमी पार्टी ने विभिन्न माध्यमों के सहारे जनता की राय जानना चाहा हैं.उसके लिए रविवार तक का समय निर्धारित किया है.इसे भी स्थापित दलों और उनके समर्थकों ने नौटंकी कहा है,पर अब तक आम आदमी पार्टी जो भी कर रही है है,बिरोधियों की निगाहों में वह सब नौटंकी ही है,अतः आम आदमी पार्टी अपने ढंग से किसी निर्णय पर पहुचना चाहती है. उम्मीद है क़ि आम जनता आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने के पक्ष में निर्णय देगी.अगर ऐसा नहीं हुआ तो आप दोबारा चुनाव की सिफारिश करेगी या हो सकता है कि उस हालात में बीजेपी भी पुनर्विचार करे,अतः हमें अगले सोमवार या मंगल वर तक इन्तजार करना पडेगा.

  3. Nitish Kumar has proved beyond any doubt that he is an evil and opporunist and has gone to Sonia for the favour so he has betrayed those who had trusted him.
    He has also betrayed the his i ideals Ram manohar Lohiya and Shri Jaya Prakasjee
    which is a shame on his part .His right hand leaders have also lost the trust of NDA.
    JDU has now joined the Congress which is synonymus with corruption and all the evils you name them.
    In Bihar now people do not trust Nitish Kmar as people in trains and bus often hate to talk about him.

    • डॉ साहब कुछ चीजे व्यक्ति को प्रारब्ध के आधार पर प्राप्त हो जाती है ऐसे व्यक्ति को कई बार हम कम पुरुषार्थ मे ही बड़ा परिणाम प्राप्त करते देखते हैं।प्रारब्ध की बदली जब निकाल जाती हैं तो वही व्यक्ति असहाय सा खड़ा रह जाता हैं तब वह प्रयास करता हैं बहुत कुछ पाने का ,परंतु सफल नही हो पाता।नितीश के लिए अब कुछ ऐसा ही होने वाला लगता हैं। उन्होने प्रारब्ध को नमन न करके वही किया जिसे साधारणतया लोग करते है और वह भ्रांति का शिकार हो गया। अब वह अहंकार के वसीभूत है इसलिए उनका सूर्य निरंतर अस्ताचल की और जा रहा है। ईश्वर उन्हे सदभुदधि दे।आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद।

  4. अरविन्द की आम आदमी पार्टी का चुनाव में क्या हस्र होगा,यह तो आठ तारीख को पता चल ही जाएगा,पर जो लोग बार बार यह दुहराते हैं क़ि अरविन्द ने अन्ना को धोखा देकर राजनीति में प्रवेश किया ,वे क्यों यह भूल जाते हैं क़ि अन्ना ने अपने साथियों के साथ अनशन तोड़ते हुए स्वयं एक विकल्प की बात की थी. आखिर वह विकल्प क्या था? क्या उन्होंने राजनैतिक पार्टी के निर्माण की बात नहीं कही थी? यह दूसरी बात है की वे अपने ही कथन से बाद में मुकर गए थे. मान लीजिये क़ि उन्होंने वैसा कुछ नहीं कहा था.,पर क्या कोई बता सकता है क़ि अगस्त २०११ के राम लीला मैदान के ऐतिहासिक आंदोलन और सरकार के अपने वादे से मुकरने के बाद अन्य उपाय क्या बचा था? कांग्रेस अगर भ्रष्टाचार में डूबा हुआ था,तो विपक्ष ने क्यों नहीं आंदोलन कारियों का साथ दिया था? इससे क्या यह नहीं पता चलता है क़ि विपक्ष भी सत्ता दल के काले कारनामों में बराबर का हिस्सेदार था.

    • आ॰ आर॰ सिंह जी,बहुत दिनो बाद आपसे बातचीत हो रही हैं। केजरीवाल और अन्न हज़ारे के मध्य निश्चित रूप से कुछ मतभेद रहे है जिंका परिणाम ये निकला कि दोनों का आंदोलन मार्ग से भटक गया और देश जिस क्रांति के मुहाने पर जा खड़ा हुआ था,वहीं अटक गया।अब दोनों ओर ऐसे चाटुकार है जो इन्हे निकट नहीं आने देंगे।इससे पेसेवर राजनीतिज्ञो को लाभ होगा क्यूकि वे भी नहीं चाहेंगे कि ये दोनों एक साथ बेठे।मेरे और आप जैसे लोगो को निस्पक्ष आंकलन करना चाहिए ।और यदि निष्पक्षता से देखा जाये तो केजरीवाल ने अपनी ऐसी कोई योजना स्पस्ट नहीं कि है,जिससे देश कि जड़न्त समस्याओ का समाधान खोजा जा सके ।हमारी आपकी खोज किसी ऐसे राष्ट्र पुरुष के लिए हैं जो अनेक समस्याओ का एक समाधान सिद्ध हो सके ।आपकी टिप्पणी के लिए पुन; धन्यवाद ।

Leave a Reply to DR.S.H.SHARMA Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here