तल्खियां मौसम की,
हवाओं के थपेड़े,
जाने और क्या – क्या
सहा उसने
मगर रिश्ता कमजोर
नहीं पड़ने दिया
धरती से अपना!
ज्यों – ज्यों
उम्रदराज हुआ
रिश्ता और भी
आगाध हुआ
उनका!
हर मुसीबत को सह गया
पर धरती को
अपने आलिंगन से
मुक्त ना होने दिया
उसने!
यही वज़ह है शायद…
आज भी मुस्कुरा रहा है
मेरे गांव में बूढ़ा पेड़
बरगद का!
आशीष “मोहन”
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