मप्र में कमलनाथ और सिंधिया वक्त बदलाव का लाने में कामयाब

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विवेक कुमार पाठक स्वतंत्र पत्रकार
वक्त है बदलाव नारे के साथ पांच राज्यों के चुनावों में उतरी कांग्रेस आखिर मध्यप्रदेश का किला जीतने में कामयाब रही। अंगद की तरह पैर जमाए भाजपा के तीन बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पराजित कर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जोड़ी मध्यप्रदेश कांग्रेस को वो संजीवनी देने में सफल रही जिसके बिना उसका संगठन और मायूस कार्यकर्ता इस हिन्दी भाषी राज्य में निरंतर कड़े संघर्ष में था। मप्र विधानसभा चुनाव में जिस तरह भाजपा से कांग्रेस का कड़ा मुकाबला चुनाव परिणामों के रुप में टीवी चैनलों पर निरंतर दिखा उससे साफ था कि शिवराज को हराने में कांग्रेस को कितना जोर लगाना पड़ा।2018 में मप्र की जीत ने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जोड़ी को हिट साबित कर दिया है। अलग अलग गुटों में बंटी कांग्रेस ने 2003 से 2013 के बीच कितनी करारी हार देखी हैं मप्र के 5 करोड़ मतदाता इसके गवाह हैं। 2013 में तो कांग्रेस मोदी लहर में 58 सीटों पर सिमट गई थी जबकि शिवराज 165 सीटों के साथ मप्र के सफलतम सरताज बने थे।तीन चुनावों में कांग्रेस की जो करारी हार हुई थी उसके बाद 2018 में भोपाल में कांग्रेस का तिरंगा फहराना कांग्रेस आलाकमान के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी। मप्र कांग्रेस के लिए 2018 चुनाव करो या मरो वाला चुनाव रहा। गुटों में बंटी मप्र कांग्रेस मई 2018 में राहुल गांधी ने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की युगल जोड़ी दी। तीन हारों से निराश संगठन में जान डालने कमलनाथ प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए तो युवा चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया को मप्र में चुनाव प्रचार का जिम्मा सौंपा गया।2018 में कांग्रेस के चुनावी अभियान में वक्त है बदलाव को हकीकत में बदलने कई बदलाव किए गए। पिछले चुनाव से सीखकर इस बार चुनाव अभियान नीतिगत रुप से सभी नेताओं के हाथों में बिखरा बिखरा न होकर सिर्फ कमलनाथ और सिंधिया के हाथ में रहा। दोनों को खुलकर फैसले लेने दिए गए। कमलनाथ किसी तरह संगठन को सक्रिय करने में बहुत हद तक कामयाब हुए। प्रबंधन कला के कारण कमलनाथ विवादों के बिना कांग्रेस को बढ़ाते दिखे। मप्र के तमाम कांग्रेसी गुटों से समन्वय रखकर संगठन को जीत के लिए मोबलाइज कर में कमलनाथ अपने उदार व्यवहार से कामयाब रहे।उधर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी इस बार 2013 के असफल चुनाव अभियान की खामियां पूरी करने में पूरी ताकत लगाई। चुनाव अभियान प्रमुख सिंधिया भाजपा के हिन्दू कार्ड की हर अवसर पर काट करते नजर आए। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से मप्र चुनाव का शंखनाद करते हुए उन्होंने मप्र के करोड़ों हिन्दू मतदाताओं का ध्यान खींचा। वे प्रचार के दौरान शिव के त्रिपुंड तो माता की चुनरी ओड़े जगह जगह दिखे। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी मानसरोवर यात्रा के बाद अपनी शिवभक्त छवि को मप्र चुनाव में नया कैनवास दिया। वे भाजपा के भगवा अभियान की काट करने सिंधिया के साथ ओरछा  में रामराजा सरकार, दतिया में पीताम्बरा पीठ तो  ग्वालियर  में अचलनाथ महादेव के दरबार में पूजा अर्चना करने भगवा वस्त्रों में दिखे। सिंधिया ने ग्वालियर में राहुल गांधी का आम जनता के बीच सफलतम रोड शो कराकर न केवल ग्वालियर चंबल अंचल में कांग्रेस के लिए अच्छी हवा बनाई बल्कि शिवराज की जनआशीर्वाद यात्रा के दनादन मीडिया कवरेज को कांग्रेस की ओर मोड़ा। ग्वालियर में राहुल गांधी के रोड शो को देखने उमड़े जनसमूह के बाद से कांग्रेस को लगातार लीड मिली। इंदौर में कमलनाथ और सिंधिया के साथ राहुल गांधी की त्रिकड़ी मप्रवासियों का ध्यान खींचने में कामयाब रही। भाजपा के लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले मप्र में सफल प्रचार अभियान ने सिंधिया की मॉस लीडर की छवि को मप्र की राजनीति में स्वीकार्यता दी है। मप्र में प्रचार अभियान के दौरान हेलीकॉप्टर से सभाएं करते करते सिंधिया ने 150 से अधिक विधानसभाओं में लाखों लोगों से सीधा संवाद किया। वे राहुल गांधी, नगमा राजब्बर  आदि चंद चेहरों वाली कांग्रेस में मप्र के लिए किला लड़ाने वाले सबसे बड़े लड़ाके रहे। खास बात ये है कि प्रचार में सिंधिया शिवराज के पाले में खड़े पीएम मोदी, अमित शाह, भाजपाई मुख्यमंत्रियों योगी आदित्यनाथ, भूपिन्दर हुड्डा सहित तमाम केन्द्रीय मंत्रियों के सामने दमदारी से गरजते दिखे। भाजपा के माफ करो महाराज कैम्पेन ने परोक्ष रुप से शिवराज से कहीं अधिक महाराज मतलब ज्योतिरादित्य सिंधिया को उलाहना देते हुए भी उनका कद बड़ाया।इस चुनाव ने सिंधिया की मॉस लीडर छवि को देश भर ने देखा है। चुनाव जीतने पर कमलनाथ के बराबर ही सिंधिया मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदार हैं। बेशक ज्योतिरादित्य सिंधिया पर कमलनाथ की तरह कांग्रेस के बाकी गुटों का समर्थन न हो मगर आलाकमान की नजर अगले चुनावों में ज्योतिरादित्य सिंधिया की युवा छवि को भुनाने की होगी। राजनीति के जानकार भी कहते हैं देश के युवा वोटरों पर प्रभाव डालने कांग्रेस आलाकमान मप्र में सिंधिया पर दांव लगा सकता है। खैर अब जब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शिवराज के तिलिस्म को ध्वस्त कर मप्र में बहुमत हांसिल कर लिया है ऐेसे में देखना दिलचस्प होगा कि क्या राहुल की कांग्रेस मप्र जीतने पर जोशीले प्रचार से गांव और शहर शहर कांग्रेस का वोट बैंक जीवित करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को युवा चेहरे के नाम पर मप्र की कमान देती है अथवा उन्हें फिर सेनापति की भूमिका के लिए पसंद किया जाएगा और 2019 में लोकसभा में मप्र का रण जीतने की जिम्मेदारी देकर प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ को मप्र का ताज पहनाया जाएगा।

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  1. सोचता हूँ प्रवक्ता.कॉम पर पिछले चार माह से पैर पसारे लेखक के उद्देश्य को संभवतः अंतिम आहुति देता प्रस्तुत राजनीतिक निबंध, “मप्र में कमलनाथ और सिंधिया वक्त बदलाव का लाने में कामयाब” क्या पत्रकारिता है अथवा कांग्रेस-चालीसा? यदि फिर कभी लेखक को पढ़ने का सौभाग्य मिलेगा तो आशा करूँगा कि राजनीतिक दलों में रस्सा-कसी के धूर्त खेल पर कम भारत और भारतवासियों के भाग्य पर अधिक विचार किया जाएगा| चिरस्थाई गरीबी और गंदगी जो अब तक भारत का प्रमाणांकन बन चुकी है, उसमें बदलाव लाया जाएगा|

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