राष्ट्रवाद ने किया नामुमकिन को मुमकिन

प्रमोद भार्गव

               सत्रहवीं लोकसभा के आम चुनाव में भाजपा नेतृत्व वाले राष्ट्रीय  जनतांत्रिक गठबंधन को मिला प्रचंड बहुमत प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रवादी राजनीति का प्रतिफल है। इसी राष्ट्रवाद  के देशव्यापी परचम ने भाजपा को 303 और अपने सहयोगी दलों को मिलाकर कुल 353 संसदीय क्षेत्रों में उल्लेखनीय विजय दिलाई है। चूंकि इस चुनावी विजयश्री की पृष्ठभूमि में मोदी और केवल मोदी थे, उनके भाशणों की हुंकार में प्रबल राष्ट्रवाद  का सुर था, इसलिए कांग्रेस और ज्यादातर क्षेत्रीय-छत्रपों के मंसूबें तो ध्वस्त हुए ही, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में जाति व धर्म की राजनीति भी नेस्तनाबूद हो गई। मोदी ने जो राष्ट्र   वादी छवि गढ़ी उसे दें। हिंदुत्व और हिंदु धर्म के राष्ट्र   वादी आयामों से भी परिश्कृत, करते रहे हैं। नामुमकिन को मुमकिन कर देने वाली इस राष्ट्र   वादी राजनीति के दूरगामी परिणाम देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को अक्षुण्ण बनाए रखने में नींव के पत्थर साबित होंगे।

               2019 के आम-चुनाव के मद्देनजर संघ, भाजपा और मोदी ने बालाकोट में की गई एयर स्ट्राइक के बहुत पहले से ही राष्ट्रीय  सुरक्षा और राष्ट्रवाद  जैसे मुद्दों की रणनीति रच दी थी। मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद देश के भीतर और बाहर आतंकवाद पर जो आक्रामक हमले किए और वैष्विक मंचों से आतंकवाद को जिस ढंग से दुनिया के लिए खतरनाक बताया, उसी का पर्याय था कि पुलवामा कांड के बाद पाकिस्तान के भीतर घुसकर बालाकोट के आतंकी शिविरों पर भारतीय वायुसेना ने घात लगाकर जो हमले किए, उन्हें पूरी दुनिया ने जरूरी और जायज ठहराया। यहां तक कि भारत के चिर-विरोधी चीन और अनेक इस्लामिक देश भी इस एयर स्ट्राइक के समर्थन में आ खड़े हुए थे। इसी का नतीजा था कि पाक सैनिकों की गिरफ्त में वायु सैनिक अभिनंदन को 48 घंटे के भीतर भारत को लौटाना पड़ा। आतंकवाद के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई को तो मोदी और अमित शाह निर्वाचन प्रक्रिया की अधिसूचना जारी होने के पहले से ही भुना रहे थे, संयोग से पुलवामा और बालाकोट की घटनाएं अधिसूचना जारी होने के कुछ समय पहले ही घटीं। इसमें सरकार को अप्रत्याशित सफलता के साथ दुनिया का समर्थन भी मिला। इस सफलता को मोदी और भाजपा ने जमकर भुनाया। इस पर विपक्षी दलों ने आपत्तियां भी दर्ज कीं। चुनाव नतीजे बताते हैं, इन आपत्तियों को देश के मतदाता ने सिरे से खारिज कर दिया है।

               भारत में राष्ट्रवाद  और राष्ट्र   भक्ति से बड़ा मुद्दा शायद दूसरा कोई नहीं है। 1971 में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर एक नए राष्ट्र  बांग्लादेश का सूर्योदय किया था, तब उन्होंने भी 1971 के आमचुनाव में इस मुद्दे का अपने और कांग्रेस के राजनीतिक हितों के लिए भरपूर दोहन किया था। पाक के दो टुकड़े कर देने का दुस्साहस दिखाने के शौर्य के परिणामस्वरूप ही अटलबिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी का देवी दुर्गा के संबोधन से विभूषित किया था। गोया मोदी ने राष्ट्रवाद का देशव्यापी परचम फहराकर जो अप्रत्याशित परिणाम प्राप्त किए हैं, इन्हें इंदिरा गांधी द्वारा पाक के दो टुकड़े कर देने के परिणामों के समकक्ष ही देखना चाहिए।

               दुनिया के किसी भी देश के लिए विकास या अन्य बुनियादी जरूरतों से पहले राष्ट्रवाद  की अहमियत है। राष्ट्रवाद  की जब हवा चलती है तो किसी भी देश की जनता आसानी से एकजुट हो जाती हैं। इसीलिए राष्ट्र    की अस्मिता और राष्ट्रीय  सुरक्षा की जब भी बात ने तूल पकड़ा, तो जनता के मन-मस्तिष्क में एक ही नाम उभरा कि इस अखंडता व संप्रभुता को सुरक्षित बनाए रखने का काम वर्तमान राजनीतिक नेतृत्वकर्ताओं में पूरी दम-खम से कोई कर सकता है तो वे केवल नरेंद्र दामोदरदास मोदी हैं। राष्ट्रीय  स्वयं सेवक संघ से संस्कारित उनका व्यक्तित्व इसके एकदम अनुकूल है। दरअसल मोदी बालाकोट से पहले भी 2016 में पंजाब के उरी सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले के बदले में एयर स्ट्राइक कर चुके थे। विपक्षी दलों ने इस स्ट्राइक को हल्कें मे लिया और मोदी व भाजपा का खूब मजाक उड़ाया। इस मजाक को जनता ने राष्ट्र    के लिए आघात माना। चीन के साम्राज्यवादी रुख के चलते चीन भूटान-भारत सीमा पर डोकलाम विवाद इस हद तक बढ़ गया था कि भारतीय सेनाओं के तीनों अंग मोर्चा संभालने को सक्रिय होने लगे थे। किंतु मोदी ने कूटनितिक रणनीति को अंजाम दिया और न झुकने की दृढता अपनाए रखी, नतीजतन विवाद का सम्मानजनक ढंग से निपटारा हुआ और चीनी सेना पीछे खिसक गई। चीन और पाकिस्तान के साथ आंख से आंख मिलाकर बात करने के परिणाम ने सबसे ज्यादा जोश उन युवाओं में जगाया, जिन्हें नए मतदाता के रूप में पहली बार इस लोकसभा चुनाव में मतदान करना था। इनकी संख्या 8 करोड़ 60 लाख थी। 29 राज्यों की 282 लोकसभा सीटों पर जीत की कूंजी इन्हीं युवाओं के हाथ थी। इनकी प्रत्येक लोकसभा सीट पर करीब डेढ़ लाख संख्या थी। इनमें से ज्यादातर का मत व समर्थन मोदी के लिए रहा।

               भिन्न विचारधारा के लोग इस चुनाव को अपने-अपने ढंग से परिभाशित करेंगे। नकारात्मकताओं को उभारेंगे। भविष्य में असहिष्णुता फैलने और अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगा देने जैसे मुद्दों को हवा देंगे। जबकि भारत की जो मूल संस्कृति है, वह उदार, सहिष्णु और आशावादी रही है। बावजूद कटुता की राजनीति करने वाली जो वामपंथी वैचारिकता है, वह वातावरण को समरस बने नहीं रहने देना चाहती है ? अलबत्ता इसके विपरीत भारत का जो एककात्म-मानवतावाद है, वह सृष्टिऔर मनुस्य के सर्वांगीण समावेशी विकास की दृष्टि       देता है। इसे दुनिया में हिंदू जीवन दृष्टि       या हिंदू चिंतन के नाम से जाना जाता है। यही हिंदू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद  है। इसका संदेश मोदी ने 17 मई को चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद केदारनाथ की गुफा में एक रात बिताकर दिया। यह आध्यात्मिक साधना भारतीय या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद  में जो हिंदू तत्व है, उसको साधने का काम करती है।

निश्चित रूप इस साधना ने उन मतदाताओं को लुभाया है, जिन्हें 19 मई को शेष रह गई सीटों पर मतदान करना था। भगवा वस्त्रों में मोदी के इस रूप को देख कर विपक्षियों ने यह आरोप भी लगाया कि मोदी ने यह स्वांग हिंदुओं के वोट बटोरने के लिए रचा है। मैं इसमें अंतनिर्हित सच्चाई को नहीं नकारता ? क्योंकि यह रूप और दृष्टि       ही भारत को एकरूपता में ढाले रखने का काम करती है। भारत में अनेक अभारतीय अवधरणाएं हैं, जो अनेक अस्मिताओं को बांट कर देखती हैं, जातीय अस्तिओं को उभार कर वर्ग संघर्ष के लिए उकसाती हैं। आदिवासी और दलित समाजों के हिंदू होने पर सवाल खड़े करती हैं। आजादी की लड़ाई को राष्ट्रवाद  में पिरोने वाले और भारतीय अस्मिता के पुनर्जागरण से जुड़े भक्तिकालीन साहित्य को प्रतिक्रियावादी साहित्य ठहराती हैं। लिहाजा इस राष्ट्र   विरोधी विचारधारा से मुक्ति जरूरी है। मोदी ने हिंदुत्व के जरिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद  का जो परचम फहराया, उसे देश की जनता ने मत व सर्मथन देकर सही ठहरा दिया है।

पूर्वी भारत यानी पश्चिम बंगाल के जो मस्लिम बहुल क्षेत्र हैं, उनमें बड़ी संख्या में बगदी, डोम और बाल्मीकि समुदायों के लोग रहते हैं। इनमें से ज्यादातर की अब तक वाम दलों के प्रति सहानुभूति रही है। लाल झंडा कंधे पर रखकर ये इतराते रहे हैं। चुनाव प्रक्रिया के दौरान जब रामनवमी थी, तब ये दलित कंधे पर केसरिया झंडे में उत्कीर्ण हनुमान वाले झंडे लहराते हुए जय-जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे। इन नारों के विस्तार ने बंगाल में भाजपा को 18 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दिलाई है। भारत के दूरांचल के उपेक्षित क्षेत्रों में यह मोदी से अभिप्रेरित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद  का अभ्युदय है। हालांकि अनेक लोगों का मानना है कि बंगाल का देवी दुर्गा के विविध रूपों में तो गहरा संबंध रहा है, किंतु हिंदू धर्मग्रंथों और पुराणों में राम व कृष्ण कभी बंगाल गए हों, ऐसा उल्लेख नहीं मिलता। दरअसल यह एक भ्रम है। राम से पहले परशुराम ने सहस्त्रवाहु अर्जुन से युद्ध में विजय के बाद अपना फरसा अरुणाचल प्रदेश के लोहित कुंड से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी के जल में ही धोया था। राम ने भारत की भौगोलिक सीमाएं निर्धारित करने की दृष्टि  से उत्तर से दक्षिण की सांस्कृतिक यात्रा की थी और कृष्णा ने पश्चिम की द्वारका से लेकर त्रिपुरा-मणिपुर तक भारत को सांस्कृतिक सूत्र में पिरोया था। मोदी ने इस चुनाव में इसी संस्कृति का पुनर्जागरण किया है।

               2019 की विजय प्राप्ती के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने पहले भाशण में तीन प्रमुख बातें कही हैं। एक मैं, अपने लिए कोई कार्य नहीं करूंगा। दूसरी, सरकार बहुमत से नहीं सर्व-सम्मति से चलती है। तीसरी, मैं बद्नीयत से कोई काम नहीं करूंगा। प्रचंड जनादेश के बाद प्रधानमंत्री के ये संकल्प देश में राष्ट्रवाद  को पुख्ता बनाए रखने के साथ देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को भी अक्षुण्ण बनाए रखने का काम करेंगे।

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