स्मृति ईरानी और लार्ड मेकाले की शिक्षा

-बिपिन किशोर सिन्हा-
smriti

समरस समाज, प्रेरणादायक नेतृत्व और नागरिकों के उच्च चरित्र ही देश और समाज के सर्वंगीण विकास में सहायक होते हैं। फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथेमेटिक्स, इतिहास, भूगोल और अर्थशास्त्र की किस पुस्तक में लिखा है कि बड़ों का सम्मान करो, स्त्रियों को मां-बहन का सम्मान दो, माता-पिता-गुरु को पैर छूकर प्रणाम करो। राम, कृष्ण, गौतम, गांधी के चरित्र को हृदय से हृदयंगम किए बिना नैतिकता और चरित्र का विकास असंभव है। मैकाले की सेकुलर शिक्षा व्यवस्था ने नैतिकता और चरित्र को कालवाह्य बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।

फरवरी १८३५ में इंग्लैंड के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में भारत की शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन हेतु अपनी दलील देते हुए लार्ड मेकाले ने कहा था –

“I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is beggar, who is a thief. Such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such calibre, that I do not think that we would ever conquer this country unless we break the very backbone of this nation, which is the cultural and the spiritual heritage, and thereof, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them – a truly dominated nation.” (बिना किसी संशोधन के एक-एक शब्द, कॉमा फ़ुलस्टॉप के साथ मेकाले के लिखित वक्तव्य से उद्धृत)

“मैंने पूरे भारत की यात्रा की और ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो भिखारी हो या चोर हो। इस तरह की संपत्ति मैंने इस देश में देखी है, इतने ऊंचे नैतिक मूल्य, लोगों की इतनी क्षमता, मुझे नहीं लगता कि कभी हम इस देश को जीत सकते हैं, जबतक कि इस देश की रीढ़ को नहीं तोड़ देते जो कि उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत है। इसलिए मैं प्रस्ताव करता हूं कि हमें इसकी पुरानी और प्राचीन शिक्षा-व्यवस्था, इसकी संस्कृति को बदलना होगा। इसके लिए यदि हम भारतीयों को यह सोचना सिखा दें कि जो भी विदेशी है और अंग्रेज है, यह उनके लिए अच्छा और बेहतर है, तो इस तरह से वे अपना आत्मसम्मान खो देंगे, अपनी संस्कृति खो देंगे और वे वही बन जायेंगे जैसा हम चाहते हैं- एक बिल्कुल गुलाम देश।”

आज़ादी के बाद भी हमने अपनी शिक्षा व्यवस्था में कोई सुधार नहीं किया। हमने किसी भी व्यक्ति की योग्यता को लॉर्ड मेकाले के मापदंडों के आधार पर ही मापा। लेकिन मेकाले के अंध भक्तों ने देश को दिया क्या? सदियों पुराने देश का नाम बदलकर इंडिया रख दिया। मेकाले के सबसे बड़े भक्त जवाहर लाल नेहरू ने ५० हजार लाशों की नींव पर देश का बंटवारा करा दिया। सारी नैतिकता को ताक पर रखकर एडविना मौन्टबैटन से अनैतिक संबन्ध बनाए और कांग्रेस में वंशवाद के पुरोधा बने। इन्दिरा गांधी लार्ड मेकाले की शिक्षा पद्धति से कोई डिग्री तो नहीं ले पाईं लेकिन देश की प्रधान मंत्री अवश्य बन गईं। उन्हें भारत का इतिहास इमरजेन्सी के माध्यम से तानाशाही थोपने के लिये हमेशा याद करेगा। उनके पुत्र भी किसी विश्वविद्यालय से कोई डिग्री नहीं ले पाये। हां, हवाई जहाज उड़ाते-उड़ाते देश के पायलट जरुर बन गये। सोनिया जी लन्दन में मेकाले की शिक्षा पाने गईं अवश्य थीं लेकिन कोई डिग्री हाथ नहीं लगी। बार गर्ल की नौकरी के दौरान राजीव गांधी हाथ जरुर लग गये। उन्होंने १० वर्षों तक रिमोट कन्ट्रोल से भारत पर शासन किया। उनके सुपुत्र राहुल बबुआ भी डिग्री के लिये हिन्दुजा से डोनेशन दिलवाकर हार्वर्ड गये। पढ़ने के बदले कोलंबिया गर्ल से फ़्लर्ट करना ज्यादा मुनासिब समझा और खाली हाथ इंडिया लौट आए। यहां तो युवराज का पद आरक्षित पड़ा ही था। मेकाले के मापदंडों पर खरा उतरने वाले पिछली सरकार के रहनुमाओं में डा. मममोहन सिंह, चिदंबरम, ए. राजा, कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, दिग्विजय सिंह, शशि थरुर, नारायण दत्त तिवारी जैसे नेताओं के नाम स्वार्णाक्षरों में अंकित रहेंगे। लेकिन इन्होंने किया क्या? किसी ने परस्त्रीगमन किया, किसी ने रिश्वत लेकर देश बेचने का काम किया, तो किसी ने भारत की अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचाने में अपना सर्वस्व झोंक दिया।

भारत की जनता ने इनके कुकृत्यों के कारण गत माह में संपन्न हुए आम चुनाव में इन्हें बुरी तरह ठुकरा दिया। हताश मेकाले भक्तों को खांटी देसी प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री के रूप में स्मृति ईरानी दिखाई पड़ गईं। ये वही महिला हैं जिन्होंने अमेठी में शहज़ादे को लगभग धूल चटा दी थी। खुन्दक खाए चाटुकार दरबारी, स्मृति की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाने लगे। इन चाटुकारों ने इसके पहले कभी भी इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी, सन्जय गांधी, सोनिया गांधी और शहज़ादे राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल नहीं उठाए। क्या यह सत्य नहीं है कि मेकाले को ईश्वर का दूत मानने के बावजूद नेहरू जी के बाद उनके खानदान में कोई स्नातक की डिग्री नहीं ले पाया?

शिक्षा और संस्कार से दो चीजें प्राप्त होती है- १. ज्ञान २. जानकारी। मेकाले की शिक्षा से सिर्फ़ जानकारी मिलती है जिसका चरित्र और संस्कार से कोई तालमेल नहीं है। भारतीय शिक्षा पद्धति से ज्ञान प्राप्त होता है जिसमें चरित्र और संस्कार कूट-कूट कर भरे रहते हैं। बाल्मीकि, तुलसी, सूर, कालिदास, कबीर, विद्यापति, शिव पूजन सहाय, जय शंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचन्द, मैथिली शरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, फणीश्वर नाथ रेणु, नागार्जुन बाबा, मौसम वैज्ञानिक घाघ और अनेक देसी रत्नों ने कहीं से पी.एचडी. नहीं की थी लेकिन उनपर और उनकी कृतियों पर हजारों लोग पी.एचडी कर चुके हैं। अकबर, छत्रपति शिवाजी, महारानी लक्ष्मी बाई, अहिल्या बाई होलकर के पास लार्ड मेकाले की कोई डिग्री नहीं थी लेकिन उनकी शासन व्यवस्था, प्रबन्धन और कुशल नेतृत्व को इतिहास क्या कभी भुला पाएगा? आज के युग में हजारों इंजीनियरों और प्रबंधकों को नौकरी प्रदान करने वाले रिलायंस ग्रूप के संस्थापक धीरु भाई अंबानी के पास कौन सी डिग्री थी? एक लोटा और १०० रुपए के एक नोट के साथ पिलानी से कलकत्ता पहुंचने वाले घनश्याम दास बिड़ला तो हाई स्कूल पास भी नहीं थे। उन्होंने जो औद्योगिक साम्राज्य खड़ा किया, उसमें मेकाले का क्या योगदान है? सिर्फ़ आलोचना-धर्म के निर्वाह और चाटुकारिता के लिये माकन, सिब्बल, दिग्गी जैसे चारण स्मृति की आलोचना कर रहे हैं। उन्हें राज्य सभा में स्मृति द्वारा दिये गए विद्वतापूर्ण भाषण, टीवी चैनलों पर दिये गए साक्षात्कार और क्रान्तिकारी भाषण कभी याद नहीं आयेंगे। मेकाले की डिग्री और योग्यता से कोई संबंध नहीं है। स्मृति के पास दृष्टि है, कार्य करने की इच्छा शक्ति है, कर्मठता है, नेतृत्व क्षमता है और सबसे बढ़कर भारत माता के प्रति अटूट निष्ठा है। ये सारे दुर्लभ गुण उन्हें सफलता के नये-नये सोपन प्रदान करेंगे। चन्द्रगुप्त की प्रतिभा को चाणक्य ने पहचाना था, स्मृति की प्रतिभा को नरेन्द्र ने पहचाना है। शुभम भवेत।

1 COMMENT

  1. सिन्हा साहब आपने बिल्कुल सही तर्क दिया कि इंदिरा, राजीव और सोनिया के पास डिग्री नही तो स्मृति ईरानी के पास भी नही है तो इसमे क्या गलत हो गया | ये आप भूल जाते है कि ये डिग्री हीन व्यक्ति ही देश का शासन अपने हाथों मे लेकर देश का बंटाधार कर दिया तो क्या आप फिर डिग्री हीन व्यक्ति को मंत्री बनाकर वही करना चाहते है जो कॉंग्रेस ने किया |

  2. main aapke tarkon se sahmat nahee hun( padhen PP Gurujee MS GOLwalkar ke prajatantra ka swaroop- jhana unhone prajatantra me har visheshgyataa kee baat kahee thee – yadi dr harshwardhan swasthymantree banaye ja sakte hain to kyaa shikshaa mantree ke liye akaal thaa.. smriti ko unkee visheshgyataa kaa mantralay aaur shyad MOS ( umra dekhte huwe bankee mantriyon ke) swatantra prabhar kafee thaa-
    Alochna bhee ab samarthkon ko hee karnee hogee kyonki vipaksh hai hee nhee,

  3. मार्क्सवादी इतिहासकार बड़े गर्व से कहते हैं कि उन्होंने भारत की कोई पुस्तक नहीं पढ़ी है, उनको कैसे शिक्षित माना जाय? प्रायः लोगों को विद्या, धन या सत्ता का गर्व होता है, लेकिन इनको अपनी अशिक्षा का गर्व होता है। २००४ में डा. कर्ण सिंह की अध्यक्षता में मेरे भाषण के दौरान विपान चन्द ने हल्ला आरम्भ किया कि महाभारत काल में खेती नहीं होती थी मैं उस काल के ज्योतिष की कैसे चर्चा कर रहा था? उन्होंने अपनी पुस्तक Food Gathering Communities of Mahabharata का हवाला दिया। तब मैंने उनसे महाभारत का सन्दर्भ पूछा। बड़े गर्व से उन्होंने कहा कि उन्होंने महाभारत नहीं पढ़ी है। ऐसे मूर्खों को क्या कहा जा सकता है? यही अनुरोध कर सकते हैं कि जिस दिन वे पढ़ना सीख जायें उस दिन वे दूसरों को पढ़ायें।

  4. बहुत सुंदर, विपिन जी।
    सारी हमारी आज की शिक्षा मतिभ्रमित करनेवाली ही है।
    शिक्षा के कारण छात्र “धौत-बुद्ध” (Brain Washed )हो जाता है। अपनी ही परम्परा पर लजाता है।
    अनुभव से कहता हूँ। कि मुझे १०-१२ वर्ष पूर्व समझ आया कि हमारी भारतीय़ शालेय और विद्यालयीन शिक्षा ही समस्या है, हल नहीं।
    उसे तो आमूलाग्र सुधारना ही होगा।
    जिसको अहेरा गहेरा छात्र, -प्राप्त करने पर पश्चिमी दलाल पैदा होता है।
    जिस स्थिति से निकलने में (तक ) जीवन ही चला जाता है।
    तकनिकी विषयों को छोडकर बाकी विशेष कुछ सीखने जैसा नहीं मानता।

    हमारी सर्वोच्च देन संस्कृत को हमने कैसे उपेक्षित की? हिंदी को भी उपेक्षित की। और हम पिछड गए।
    जापान ६ प्रमुख भाषाके शोध पत्रों का अनुवाद, २१ दिनमें अनुवादित कर जापान में (मूल से भी सस्ता) उपलब्ध कराता है। दुनिया ४५ दिन में जो कार निर्माण करती है, जापान ९ दिनमें बनाता है। सारा काम जापानी भाषामें शीघ्रता से करता है।
    सोचिए क्या अंग्रेज़ी में अभियान चलाकर मोदी जी चुनावी सफलता प्राप्त कर सकते थें?
    दूसरी ओर, मनमोहन सिंह क्या कम पढे हुए हैं?
    अंग्रेज़ी शिक्षा रट्टा मरवाकर चिन्तन की हत्त्या कर देती है।छद्म विद्वत्ता को ओढकर व्यक्ति सारा जीवन ढपोसला जीवन (नाटक) बिताता है।
    —————————————————————
    किसी बडे लेखक (शायद शेक्स्-पियर) ने कहा है. “कुछ लोग जिस दिन मरेंगे, उन्हें पता नहीं होगा; पर वे एक दिन भी जिए बिना मरेंगे।स्वामी रामदास ऐसे कुछ पढे लिखों को “पढत मूर्ख की” संज्ञा देते हैं।
    जब कबीर, तुकाराम, रामदास, ज्ञानेश्वर इत्यादि पढता हूँ, तो उनके सीधे चिन्तन को छूनेवाले विचार चिरकालीन और नए प्रतीत होते हैं।
    छोटी टिप्पणी में क्या लिखूँ? कुछ अच्छाई मिले तो लेनी अवश्य चाहिए।

    धन्यवाद। आपने अच्छा आवश्यक विषय लिया है।

  5. बंधुवर सिन्हा साहब –
    आप डॉ मधुसूदन की तरह इंजीनियर होते हुए भारतीय भाषा और संस्कृति के पोषक हैं – इस के लिए आप का साधुवाद। आप ने लार्ड मेकाले की चिंता की चर्चा की और उस ने उस का समाधान किस प्रकार भारतीय भाषा और संस्कृति को नष्ट करने में ढूंढा। आप ने घनश्याम दास बिड़ला और धीरूभाई अम्बानी की शिक्षा दीक्षा की भी बात की। इस सम्बन्ध में 2004 की एक घटना मेरे ह्रदय पटल पर ज्यों त्यों अंकित है – 2004 में जब हमारे पूर्व प्रधान मंत्री डॉ मन मोहन सिंह जी ने पद की शपथ ली थी तो सब जगह उनकी विद्वता की चर्चा थी। भारत के पुराने सभी अर्थशास्त्री जैसे वी के आर वी राव, के एन राज, डी आर गाडगिल आदि उन की विद्वत्ता के सामने फीके पड़ गए थे। शपथ लेने के कुछ समय बाद ही उन्हें केम्ब्रिज यूनि ( इंग्लॅण्ड) से एक विशेष दीक्षांत समारोह में ऑनरेरी डी० लिट् डिग्री देने का निमंत्रण मिला और वे इस के लिए इंग्लॅण्ड गए । डिग्री देने के समय उन के सम्मान में वहां के कुलपति का भाषण हुआ। उस भाषण के उत्तर में हमारे प्रधान मंत्री ने जो कुछ कहा, वह अविस्मरणीय रहेगा। अपने प्रत्युत्तर में डॉ सिंह ने कहा था – केम्ब्रिज यूनि ने मुझे सम्मानित किया में ह्रदय से आप का आभारी हुँ। मैं ही नहीं हमारा देश आप के प्रति अत्यंत कृतज्ञ है क्योंकि आप ने (ब्रिटिश सरकार ने) हमें प्रशासन सिखाया, हमें रेल
    दी, सेना दी, यातायात दिया, पोस्ट ऑफिस दिया, हमें अनुशासन सिखाया, काम करने का तरीका सुझाया आदि आदि। बहुत लम्बा प्रशस्ति गान था। डॉ सिंह के अनुसार जो कुछ भी हमारे पास है वह सब ब्रिटिश सरकार की देन है। उन के इस प्रकार के प्रशंसात्मक भाषण से सारा देश हतप्रभ था। लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा क्योंकि पूरा देश उस समय नए प्रधान मंत्री की डिग्रियों से और उन की ईमानदारी से अत्यधिक प्रभावित था। मुझे उस से जो हार्दिक आघात लगा था वह तो मेरा अपना था। लेकिन सार्वजानिक तौर यदि किसी ने इस भाषण की भर्त्सना की थी तो वह केवल एक पत्रकार था – प्रभाष जोशी। जोशी जी ने अपने कालम ‘कागद कोरे’ में स्पष्ट रूप से खुले शब्दों में इसे देश की गरिमा के प्रतिकूल और सेकंडों स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान बताया था।.…

  6. प्रिय विपीन जी
    व्यवहारिकता का किसी डिग्री से कोई सम्बन्ध नही है। देश भक्ति किसी प्रमाणपत्र या डिग्री की मोहताज नही। राम, कृष्ण अरस्तू के किसी विश्वविद्यालय में पढने की मुझे कोई जानकारी नही है। शायद माकन जी उपलब्द्ध करा सके। बात करने वालो के परिप्रेक्ष्य में काम करने वालो का यह लेख हौसला बढायेगा ऐसा मुझे विश्वास है। सुन्दर लेख के लिये बधाई।
    आपका
    अरविन्द

  7. 34 साल का मेरा अध्यापकीय अनुभव है| दिल्ली, क़तर, होंकॉंग, सिंगापुर में शिक्षण कार्य किया| अब दुबई में पढ़ाता हूँ| आज़ादी के बाद कांग्रेस सरकारों ने वामपंथियों को शिक्षा की कमान थमा दी| सभी अकादमियों में कुंडली मारकर बैठ गये| बुद्धिजीवी होने के सर्टिफिकेट बाँटने लगे| परिणाम सामने है| देशभक्ति, राष्ट्रीय स्वाभिमान से शून्य नई पीढी| आज जो स्मृति ईरानी पर आक्षेप लगा रहे हैं, वे बताएं कपिल सिब्बल ने ही कौन सा तीर मार लिया था? वे तो नामी गिरामी पढ़े लिखे वकील है| माध्यमिक शिक्षा का जितना बंटाधार कपिल ने किया, उसको ठीक करने में ही काफी समय लगेगा| बिना पढ़े, बिना परिश्रम किये 10वीं पास करना इतना आसान कर दिया जिसकी मिसाल मिलना मुश्किल है| अटल जी के ज़माने में जाने माने शिक्षाविद और विद्वान डा. मुरली मनोहर जोशी को क्या इन लोगों ने बख़्श दिया था? इनको सिर्फ विरोध करना है| अगर माता सरस्वती को भी मोदी शिक्षा मंत्री बना दें तो भी इनका विरोध खत्म नहीं होगा| इनकी सल्तनत और एकाधिकार खत्म जो हो रहा है|

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