ओसियान एक बार फिर दिल्ली की जमीन पर लौटा है और सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम एक बार फिर गुलजार है देश दुनिया की नायाब फिल्मों से. फिल्मों का समंदर सिरी फोर्ट में लहरा रहा है और फिल्मों के दीवाने इसमें डूब डूब कर मोती चुन रहे हैं. लगभग 50 देशों की 200 से अधिक फिल्मों के साथ 12 वां ओसियान फिल्म समारोह भारतीय, एशियाई और अरब देशों के सिनेमा का एक अद्वितीय मंच बन कर उभर रहा है. पिछले दो दिनों से चल रहे इस फिल्म महोत्सव में भाग ले रही विदेशी फिल्मों और इन फिल्मों से जुड़े लोगों का जोश खरोश के साथ हिस्सा लेना दिल्ली को अंतराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के लिए सबसे मुनासिब जगह साबित करता है. जहां न केवल विदेशी मेहमान इस महोत्सव का हिस्सा बनकर कुछ नया महसूस कर रहे हैं वहीं दिल्लीवाले भी पूरे दिल से इस फैस्ट का लुत्फ उठा रहे हैं. इस बार के महोत्सव की थीम ‘रचनात्मक विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ रखी गई है.
पूरे परिसर में आप फिल्म निर्देशकों, कलाकारों और फिल्मों की नुक्ताचीनी करने वाले ब्लॉगचियों को इधर से उधर होते देख सकते हैं. मजे की बात ये है कि आप फिल्म देख देख कर थक सकते हैं पर ओसियान आपको फिल्म दिखाने से नहीं थकेगा. एक समय में पांच अलग-अलग स्क्रीन पर फिल्में चल रही हैं. लेकिन हम एक साथ पांच जगह नहीं हो सकते. सो मामला चूजी होने का हो जाता है. जिन फिल्मों की तारीफ पहले से सुन रखी है उन्हें अपने शेड्यूल में शामिल करने में तो कोई कठिनाई नहीं है. पर असल रोमांच है अनजानी और अनसुनी फिल्मों को अचानक से ट्राई करने में. कुछ फिल्मों के ब्रोशर से थोड़ी बहुत जानकारी मिल सकती है पर कुछ के बारे में नाम से ज्यादा कुछ नहीं. रिस्क लेकर ट्राई करने पर कभी कभी जैकपॉट भी हाथ लग जाता है.
ऐसे मौकों पर मेरी प्राथमिकता हमेशा उन फिल्मों के प्रति रहती है जो आसानी से न देखी जा सकती हों या फिर बड़े पर्दे पर न देख पाने की संभावना हो. अंतराष्ट्रीय फिल्म समारोह में जाकर भी अगर पॉपुलर हिंदी फिल्में ही देखी तो क्या ख़ाक सिनेमा देखा. एक ही जगह जब ईरानी, ताईवानी, जापानी, जर्मन, फ्रेंच, अल्जीरियाई, तुर्किश, कोरियाई, चीनी और इण्डोनेशियाई फिल्में देखने को मिल जाएं तो किसी सिनेमा प्रेमी के लिए इससे बड़ी सौगात नहीं हो सकती.
इस बार ओसियान की शुरूआत निर्देशक कैईची सातो की एक जापानी एनीमेटिड फिल्म ‘असुरा’से हुई है. एनीमेशन और एनीमेटिड फिल्में और खासकर जापानी एनीमेटेड फिल्में समारोह में खूब पसंद की जा रही हैं. समारोह के तीसरे दिन ऐसी ही एक और एनीमेटेड फिल्म Tatsumi देखने का मुझे मौका लगा. जापानी लोग पूरी दुनिया में एनीमेशन के क्षेत्र में हो रहे प्रयोगों से हटकर एनीमेशन के माध्यम से गंभीर सिनेमा तैयार करने में अपना लोहा मनवा चुके हैं. तात्सुमी असल में एनीमेशन में एक मंगा आर्टिस्ट योशिहिरो तात्सुमी की ऑटोबायोग्राफी है. योशिहिरो ने गेकिगा शैली में एनीमेशन के जरिए अपनी कहानियां दुनिया के सामने रखीं. तात्सुमी योशिहिरो के जीवन के घटनाक्रमों और उनके कामिक्स की कहानियों का अनूठा कोलाज है. जो अपने साथ जापान की संस्कृति और वहां की जीवन शैली में हमें झांकने का भरपूर अवसर देती है.
कमोबेश हर विदेशी फिल्म आपको अपने देश की संस्कृति, वहां के लोगों की सोच, रवायतों और आदतों से रू-ब-रू करती चलती है. यहां एक बात विशेष रूप से कहने की है कि फिल्में विदेशी भाषा में हाने के बावजूद सबटाइटल्स के साथ बिल्कुल अपरिचित नहीं लगतीं. यहां तक की एशियाई और अरब देशों के बहुत से मसले और लोगों की जीवन शैली के बहुत से हिस्से एक जैसे लगते हैं. शायद यही वजह है कि जब मैं दारियुश मेहरजुईकी ईरानी फिल्म ‘द ऑरेंज सूट’ देखता हूं तो शहरी कूड़े कचरे की समस्या को केन्द्र में रख कर बनाई गई यह फिल्म मुझे किसी भी भारतीय शहर की कचरे की समस्या के लिए कम प्रासंगिक नहीं लगती. एक पल के लिए लगता है कि फिल्म ईरान में नहीं बल्कि यहीं कहीं दिल्ली में शूट की गई है. ‘द ऑरेंज सूट’ कहानी है एक ऐसे फोटो जर्नलिस्ट की जिसे कचरा साफ करने वाले स्ट्रीट स्वीपर के काम से इश्क हो जाता है और वह बड़े चाव से स्वीपर की नौकरी हासिल कर ईरान की गलियों को साफ करता है. जिस मैंटल क्लटर की बात फिल्म का नायक हामिद ओबेन करता है उसी मेंटल क्लटर से किसी भी देश की शहरी जिंदगी परेशान है. ओबेन शहर की गंदगी को साफ करते हुए अपनी आत्मा को शुद्ध करने की कोशिश में है. फिल्म के शीर्षक में ऑरेंज सूट स्ट्रीट स्वीपर की वर्दी के रंग से आया है. यूं तो मेहरजुई की इस फिल्म में एक साथ कई मुद्दे समानांतर रूप से चलते हैं पर जिस सादगी से उन्होने शहरी कचरे की समस्या को दिखाया है वह वाकई काबिले तारीफ है.
इस बार के फिल्म फैस्ट में जहां सैक्स और सेंसरशिप पर खुल कर चर्चा हो रही है वहीं जापानी सॉफ्टकोर पोर्नोग्राफिक थियेटरिकल फिल्म शैली में पिंक फिल्में भी चर्चा के केन्द्र में हैं. गो गो गो सेकेंड टाइम वर्जिन, एक्सटेसी ऑफ एंजेल्स, द स्मैल ऑफ करी एण्ड राइस और ‘कॉस्मिक सैक्स’जैसी फिल्मों का सिनेमा प्रेमियों को इंतजार है.
अपने पसंदीदा कलाकारों को समारोह में अपने अगल बगल में देख पाना यकीनन इस सरूर को और बढ़ा देता है. पर मेरी राय में फिल्म समारोह का फायदा अपने चहेते कलाकारों से ज्यादा नई प्रतिभाओं से रूबरू होने और चुनींदा फिल्मों पर समय लगाने के लिए उठाना चाहिए. इस समारोह में मणि कौल की कुछ फिल्में ऑरिजनल प्रिंट के साथ आ रही हैं. जिन्हें देखना वन्स इन ए लाइफ टाइम अनुभव होगा. मणि कौल की ध्रपद और सिद्धेश्वरी कुछ हट कर उम्दा देखने वालों के लिए एक वर्चुअल ट्रीट से कम नहीं है. वहीं भारतीय खंड में कुछ चुनींदा फिल्में दर्शकों की प्राथमिकताओं पर हैं. दुनियां भर में धूम मचा चुकी प्रशांत भार्गव की फिल्म पतंग, अजय बहल की बी.ए. पास, अजीता सुचित्रा वीरा की ‘बैलेड ऑफ रूस्तम’ और अमिताभ चक्रवर्ती की कॉस्मिक सैक्स दर्शकों द्वारा खूब सराही जा रही हैं.
अगर आप अभी तक इस महोत्सव का हिस्सा नहीं बन पाए और बहुत कुछ मिस कर चुके हैं तो भी निराश न हों क्योंकि अभी अगले कुछ दिनों में ऑरेंज सूट ( 31 जुलाई को दूसरी बार दिखाई जाएगी), शांघाई, प्राग, 10 एमएल लव, हंसा, नो मैन्स जोन, दिस इज नॉट ए फिल्म, एक्सप्रैस, बैलेड ऑफ रूस्तम, डैथ फॉर सेल, लेबिरिन्थ, बेबी फैक्टरी और कुछ शॉर्ट फिल्मों समेत ढ़ेरों उम्दा फिल्में दिखाई जाएंगी. यही नहीं 5 अगस्त तक नियमित रूप से देश दुनियां के फिल्मकार और सिनेमा जगत से जुड़ी हस्तियां सिनेमा के तमाम पहलुओं पर चर्चा करते रहेंगे. फिल्म समारोह की और बातें आपसे होती रहेंगी तब तक मैं आपके लिए इस समुद्र मंथन में से कुछ और मोती चुन कर लाता हूं. अलविदा.