विविधा

42 वर्षों का बांग्लादेश

-फखरे आलम-  banglaindoborder

16 दिसम्बर 2013 को बांग्लादेश ने अपने स्थापना का 42वां वर्षगांठ मनाया। 16 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान टूटकर बांग्लादेश बना था। बांग्लादेश में लगातार स्थिति खराब होती जा रही है। वर्ष 71 में पाकिस्तानी सेना के साथ देने और बंगालियों के खिलाफ ऑपरेशन में शामिल लोगों को सजा दिलाने के लिए ध्ररना प्रदर्शन जारी है। बांग्लादेश के शान्ति में उस समय और अधिक व्यवधान उत्पन्न हो गया, जब जमाते इस्लामी के नेता मुलला अब्दुल कादीर को फांसी दे दी गई। विरोध में बांग्लादेश में जो अशांति फैली उसमें हिन्दू अल्पसंख्यकों की जान और माल की बहुत अधिक छति हुई। मुलला के फांसी पर अंतिम मोहर बांग्लादेश की उच्चयतम न्यालय ने लगाई, मानवअधिकार के अनेकों संगठनों के हस्तक्षेप के पश्चात ढाका स्थित शाहबाग में धरना और प्रदर्शन जारी है।

जमात-ए-इस्लामी के नेता अब्दुल कादीर मुल्ला को 1971 में पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर नरसंहार के आरोप में फांसी दी गई जो बांग्लादेश की हालत बिगाड़ने में घी का काम कर गई। 5 जनवरी 2014 को बांग्लादेश में आम चुनाव सम्पन्न हुए हैं। और जानकार मुलला के फांसी को शेख हसीना वाजिद की शासन पर काला ध्ब्बा बात रहे हैं।

शेख मोजिबूर रहमान 1964 तक फातिमा जिन्ना को अपना नेता स्वीकार करते रहे, मगर जेनरल आयुब खान ने फातिमा को पाकिस्तान विरोधी साबित कर दिया, साथ में जनरल ने धर्मिक नेताओं के द्वारा महिला शासक को अधार्मिक घोषित करवा दिया था। मगर उस समय भी शेख मोजिबुर रहमान, खान वली खान और मोलाना मोदूदी फातिमा के साथ थे। 1970 के आम चुनाव में शेख की अगुवायी में अवामी लीग को भारी बहुमत प्राप्त होने के बावजूद भी यहिया खान ने शेख को सत्ता न देकर फौजी कार्रवाई शुरू कर दी थी। मुक्ति बाहिनी को भारत ने समर्थन देना शुरू कर दिया था। जो बांग्लादेश के गठन का प्रमुख कारण रहा था।

अब्दुल कादीर को शेख हसीना वाजिद के द्वारा गठित ट्रेबुनल ने आजीवन कारावास सुनाई थी जिसे उच्चतम न्यायालय ने मृत्युदण्ड में बदल डाला था। मुल्ला की फांसी अनेक प्रश्न छोड़ गया कि बांग्लादेश की स्थापना के पश्चात् उन्होंने नई सरकार को स्वीकार किया था, बल्कि उन्होंने बांग्लादेश की संविधन के अधीन चुनाव में भाग लिया और दो-दो बार संसद के सदस्य निर्वाचित हुए, मुल्ला एक पत्रकार थे और दैनिक ‘‘संग्राम’’ के संपादक! वह ढाका प्रेस कल्ब के उपाध्यक्ष भी रहे थे। जमाते इस्लामी, पाकिस्तानी सैनिक के साथ दो प्रमुख संगठन अलबदर और अलशम्स के झण्डे़ तले नरसंगहार किया, यहिया खान ने इस खूनी खेल की बूनियाद रखी और 16 दिसम्बर 1971 को जनरल अमीर अब्दुल्लाह खान नियाजी ने लगभग, 93 हजार कैदियों के साथ भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। जनरल का निजि मौजर मैंने राष्ट्रीय संग्राहलय नई दिल्ली में देखा था जो बाद के दिनों में चोरी हो गई थी। 27 मार्च 1971 को पाकिस्तानी फौज के एक बंगाली अधिकारी मेजर जियाउर रहमान, अपने अधिकारी करनल जूनैजो की हत्या कर के चटगांव रेडियो से स्वतंत्रता की घोषणा की थी। शेख मोजीब बांग्लादेश के पिता और रहमान बांग्लादेश की स्वतंत्रता के नायक कहलाए।

इस विघटन और नए देश बांग्लादेश की स्थापना में सबसे अधिक छति बिहारी मूल के दो लाख से अधिक नागरिकों का हुआ जो आज भी अपने पाचवें वंश में न बांग्लादेश के रहे और न पाकिस्तान के जो आज भी बांग्लादेश में नारकीय जीवन बिता रहे हैं। मगर बांग्लादेश की स्थापना और लोकतंत्रीय उतार-चढ़ाव न केवल बांग्लादेश की राजनीति को प्रभावित कर रही है, बल्कि पश्चिम एशियाई देशों को भी प्रमाणित कर रही है। खास कर बांग्लादेश की मजबूत होती लोकतांत्रिक व्यवस्था और प्रगति किसी उदाहरण से कम नहीं है।

अमेरिका और ईरान समझौता पर विशेष

शुक्र है कि अमेरिका और ईरान ने टकराव के बजाए हाथ मिला लिया। बड़े लम्बे समय से दोनों देशों के मध्य मनमुटाव एवं टकराव जैसी स्थिति बनी रही। अमेरिका और ईरान के मध्य मध्यस्ता करने वालों की कूटनीति सफलता रही कि विश्व एक बड़ी युग देखने से बच गया। शान्ति के इस समझौते में आखिरकर विजय दोनों देशों की है। विश्व समुदाय इस टकराव के कुप्रभाव से बच गया।

सर्वप्रथम अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने कूटनीति प्रभाव से ईरान में इस्लामी क्रान्ति के नायक खोमेनी के राजनीति प्रभाव का एक तरह से अंत कर दिया है। जनेवा स्थित छह शक्तिशाली देशों के कूटनीतिज्ञों एवं ईरान के प्रतिनिधियों के मध्य जो समझौता सम्पन्न हुआ, वह इस सदी की सबसे बेहतर विश्व बेरादरी की राजनीति एवं कूटनीति प्रयासों में से एक है। मगर अमेरिका-ईरान समझौते का कड़ा विरोध कर के इजराइल और अरब आखिर क्या चाहता है? इजराईल के प्रधनमंत्री इस समझौते को ऐतिहासिक भूल सा करने में लगे हैं।

2010 से लगातार अमेरिकी राजनीति दबाव के कारण! विश्व आर्थिक प्रतिबंध के कारण ईरान की आर्थिक स्थिति एकदम से खराब हो चुकी है। स्थानीय ईरान के बाजार में 1 अमेरिकी डॉलर करीब 30 हजार ईरानी रियाल के बराबर है। महंगाई से परेशान ईरानी जनता अब बाहर निकलना चाहती है। वर्तमान राष्ट्रपति हसन रूहानी का भारी मतों से चुनाव जीतना और रूढ़ीवादी अहमदी नेजाद की प्राज्य संकेत है। ईरानियों के बदलाव के रूख की। वर्तमान ईरानी राष्ट्रपति ने अपनी सरकार के द्वारा यहूदी और यूरोपीय नीतियों में बदलाव के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति से न्यूयार्क में वार्ता की। दम तोड़ती ईरान की आर्थिक प्रतिबन्धों पर छह महीनों की रियायत और फिर ईरानी तेल निर्यात में छूट मौजूदा ईरान की सरकार की बड़ी कूटनीति उपलब्ध है। 2010 से ईरान को कुल 20 अरब डॉलर मूल्य की क्षति हो चुकी है।

अमेरिका-ईरान समझौते पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने कहा है कि यह पहला कदम है जो विश्व को शान्ति प्रदान करेगा! यह समझौता ईरान को परमाणु हथियार बनाने नहीं देगा। प्रथम चरण में यह समझौता छह महीनों पर आधारित होगा। यह समझौता एक नए गठजोड़ और नए राजनीति शुरूआत की संकेत अवश्य ही देता है।