‘7 खून माफ’ और 6 पति साफ

फिल्‍म समीक्षक : डॉ. मनोज चतुर्वेदी

 

‘मकबुल’, ‘मकड़ी’, ‘ओमकारा’, ‘कमीने’, ‘इश्कियां’, ‘द ब्लू अंब्रेला’, के बाद ‘7 खून माफ’ में विशाल भारद्वाज ने निर्देशन का लोहा मनवाया है। अभी-अभी ‘नो वन किल्ड जेसिका’ में ”बीप” के प्रयोगों को देखा गया। 4-5 वर्षों पूर्व भी ‘ओमकारा’ में भरपूर रूप से ”बीप” का प्रयोग किया गया था। आजकल फिल्मों में प्रयोग का नया सिलसिला जारी है। जो बदलते सामाजिक मूल्यों एवं मानदंडों की नयी व्या’या है।

 

फिल्म ‘7 खून माफ’ एक ऐसी स्त्री सुजैन (प्रियंका चौपड़ा) की कहानी है जो प्यार की तलाश में छ:-छ: शादियां करती है तथा सभी पुरूष किसी न किसी तरह से मार दिए जाते हैं। इन्टरवल के बाद सूजैन कहती है कि दुनिया के सारे बिगड़ैल मेरे ही लिए बने थे।

 

यह एक ऐसे बिगड़ैल स्त्री की कहानी है जिसे देहाती भाषा में ‘मर्दखोर’ औरत कहा जा सकता है। प्राय: समाचार पत्रों में यह पढ़ने को मिल जाता है कि फलां औरत ने इतनी शादियां की थी। अपने यहां पुरूषार्थ चतुष्टय में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रावधान किया गया। इन चौपायों के संतुलन के बिना गृहस्थी रूपी पाया एकाएक ढह जाता है। अत: कहा गया है कि भोगने से इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती। जिस प्रकार हम अग्नि में हवि देते हैं तथा वह और तीव’ गति से जलने लगती है। ठीक उसी प्रकार अभ्यास और वैराग्य के द्वारा मानव वासना ही नही अपितु संपूर्ण कामनाओं पर विजय प्राप्त कर सकता है।

 

(प्रियंका चौपड़ा) ने इस फिल्म में कमाल का अभिनय किया है। एडविन (नील नितिन), सुजैन जिमि (जॉन अब’ाहम), कीमत लाल (अनू कपूर), वसी मुल्ला (इरफान खान), रूसी निकोलई (अलेकजेंद्र), डॉ. मधुसुदन (नसीरूदीन शाह) के बाद सांतवी शादी में यीशु अर्थात् परमेश्वर को सबकुछ मानकर सिस्टर बन जाती है। वालिवुड की फिल्मों का अर्थशास्त्र मु’य रूप से मैग्ससे पुरस्कारों हेतु ही होता है। आखिर क्या कारण है कि छ:-छ: पतियों की हत्या करने के बाद सुजैन यीशु की शरण में जाती है। जबकि पश्चिम पूर्णतया एंटी-क’ाइस्ट हो गया है। पश्चिम के सारे गिरिजाघर तोड़े जा रहे हैं। हाल हीं में जूलिया राबर्ट्स ने हिंदू धर्म को अंगिकार किया है। जब पश्चिम के देशों पर आपत्ति-विपत्ति आती हैं तो वे भारत की तरफ देखते हैं। लेकिन मैग्ससे के लोभियों ने फिल्म तकनीक के अर्थशास्त्र को विकृत किया है तथा यह पोप और ईसाईयत को खुश करने का प्रयोजन मात्र है।

 

गीत-संगीत के दृष्टि से ‘डार्लिंग आंखो से………’ तथा ‘बेकरार…’ गीत भी युवाओं को थिरकने के लिए विवश कर देते हैं।

 

निर्माता : रानी स्क्रूवाला

निर्देशक : विशाल भारद्वाज

कलाकार : प्रियंका चौपड़ा, जॉन अब’ाहम, नील नितिन मुकेश, अनू कपूर, नसीरूदीन शाह, इरफान खान, विवान शाह

गीत : गुलजार

संगीत : विशाल भारद्वाज

 

2 COMMENTS

  1. अखिल से पूरी सहमती है
    लिखने से पहले ज़रा सोचे ऐसा न हो लेने के देने पद जाये

  2. आप बहुत बेकार के चिन्तक हैं. आपको पियंका में एक मर्दखोर औरत दिखी किन्तु एक पीड़ित और पुरुष वर्चस्व से पददलित स्त्री की मुक्ति की आकांशा नहीं दिखी. हैरत है आप जैसे महापुरुषों पर…… ध्यान दे महोदय फिल्म में कभी भी प्रियंका को पुरुषो के पीछे सेक्स या किसी जिस्मानी लालसे में भागते नहीं दिखाया गया है बल्कि सरे पुरुष ही उसके लिए मुह बाये कुत्ते की तरह लालच करते हैं.
    आपकी यह मर्दखोर औरत वाली प्रवित्ति ”फूलन देवी” में भी नज़र आती होगी न…. ….

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