डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारत को लेकर अमेरिकी नीति में एक बड़े परिवर्तन की खबर इधर गर्म है। खबर यह है कि पिछले सात वर्षों से अमेरिका ने अपनी भारत-नीति को पाकिस्तान और अफगानिस्तान से अलग रख रखा था लेकिन अब उसकी कोशिश है कि जो अफसर और विशेष दूत पाकिस्तान और अफगानिस्तान को देखते हैं, वे ही भारत को भी देखें। याने अमेरिकी विदेश मंत्रालय (डिपार्टमेंट आफ स्टेट) का दक्षिण एशिया विभाग अब इन तीनों देशों को एक साथ रखकर अपनी नीति बनाएगा। इस विभाग के अन्तर्गत दक्षेस (सार्क) के सारे देश तो आते ही हैं, मध्य एशिया के पांचों मुस्लिम राष्ट्र भी आते हैं। इस नई पहल के कारण भारत के विदेश नीति विशेषज्ञों में काफी हड़कंप मचा हुआ है।
भारत के सेवा-निवृत्त विदेश सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन का कहना है कि अमेरिका की यह नई नीति भारत के लिए लाभदायक नहीं होगी, क्योंकि अमेरिका चाहेगा कि पाकिस्तानी राष्ट्रहितों की रक्षा हर कीमत पर हो। अमेरिका की यह नीति दूसरे महायुद्ध के बाद से ही चली आ रही थी। इसे शीतयुद्ध का खंडहर भी कहा जा सकता है। बुश प्रशासन ने पहल की और ओबामा प्रशासन ने इस बदला। इसी के कारण भारत-अमेरिका संबंधों में अपूर्व उछाल आया। परमाणु-समझौता हुआ, व्यापार बढ़ा, पाकिस्तान पर दबाव पड़ा, भारत-अफगान संबंध इधर बेहतर हुए और आतंकवाद पर अमेरिकी रुख कड़ा हुआ। लेकिन यदि फिर पुरानी नीति शुरु हो गई तो उसका खामियाजा भारत को ही भुगतना पड़ेगा।
मेरी राय इस मामले में ज़रा भिन्न है। मैं मानता हूं कि यदि अमेरिका पक्षपात रहित होकर काम करे और भारत-पाक-अफगान–समग्र नीति बनाए तो सारे दक्षिण एशिया का बहुत भला हो सकता है। इस नीति की वकालत पिछले कुछ वर्षों से मैं निरंतर करता रहा हूं। तीनों देशों के शीर्ष नेताओं से मैंने कई बार व्यक्तिशः अनुरोध किया है कि वे त्रिपक्षीय बैठक करें और अपने सर्वसम्मत निर्णयों पर महाशक्तियों की मुहर लगवाएं। यदि अमेरिका दबाव डाले और पाकिस्तान से कहे कि उसे अफगानिस्तान में भारत के साथ मिलकर काम करना होगा तो क्या पाकिस्तान अमेरिका की अवहेलना कर सकता है? भारत और पाक मिलकर आतंकवाद का सामना कर सकते हैं। भारत-पाक व्यापार अरबों रु. का हो सकता है। भारत के लिए मध्य एशिया के सभी राष्ट्रों और पाकिस्तान के लिए दक्षिण एशिया के सभी राष्ट्रों के लिए थल-मार्ग खुल सकते हैं। इधर भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते जितने घनिष्ट हुए हैं, उन्हें देखते हुए हमारे विदेश मंत्रालय को अब अमेरिकियों की मंशा पर ज्यादा शक नहीं रह गया है। इसीलिए वह अमेरिका की नई दक्षिण एशियाई नीति का विरोध नहीं कर रहा है। मैं सोचता हूं कि इस नई अमेरिकी नीति का फायदा भारत और पाकिस्तान, दोनों को उठाना चाहिए। यदि अमेरिका की नीति में कहीं किसी दुराशय की झलक भी दिख जाए तो भारत को अपनेवाली पर उतरने से कौन रोक सकता है?