सुरेश हिन्दुस्थानी
देश की राजधानी दिल्ली में एक पूर्व सैनिक की शहादत पर जिस प्रकार की राजनीति देखने को मिली, उसे देश के लिए बहुत ही शर्मनाक कही जा सकती है। क्योंकि विरोध करने वाले राजनीतिक दलों ने इस बात की जरा भी चिन्ता नहीं की कि पूर्व सैनिक ने किन कारणों से आत्महत्या की थी। राजनीति करने वाले दलों को वास्तव में उस सैनिक के घर जाकर देखना था कि जिस स्थिति में उसके समक्ष इस प्रकार के हालात उत्पन्न हुए, उस हालत को दूर करने का सामूहिक प्रयास किया जाता, लेकिन हमारे देश में एक परंपरा के अनुसार सरकार को ही कठघरे में खड़ा करने की राजनीति हमेशा से ही की गई, और वही आज भी दिखाई दे रहा है।
यहां सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात यह है कि जिस कांगे्रस का शासन देश में सबसे ज्यादा रहा, उस कांगे्रस के शासन में भी यह समस्या विद्यमान रही। वर्तमान में देश में जो भी समस्याएं दिखाई दे रही हैं, वह मात्र ढाई वर्ष का शासन करने नरेन्द्र मोदी की सरकार की देन नहीं कही जा सकती। यह समस्याएं लम्बे समय से चली आ रही हैं। पूर्व की सरकारों ने इन समस्याओं के निराकरण के बारे में कभी भी ऐसा काम नहीं किया, जिससे समस्या का निवारण हो सके। वैसे कांगे्रस की हमेशा से ही यह धारणा रही है कि देश में समस्या ही नहीं रहेगी तो फिर उनको पूछेगा ही कौन। अपनी पूछ परख कराने के लिए ही कांगे्रस ने केवल अपनी सत्ता बनाए और बचाए रखने का ही खेल खेला। इस पूरे प्रकरण में दिल्ली राज्य पर शासन करने वाली आम आदमी पार्टी भी पूरी तरह से दोषी दिखाई देती है। सवाल यह है कि क्या हर समस्या के पीछे सरकार ही जिम्मेदार है? जब तक यह भाव हमारे देश के राजनेताओं में रहेगा, तब तक देश की समस्याओं से कभी भी मुक्ति नहीं पाई जा सकती।
भिवानी जिले के पूर्व सैनिक रामकिशन के शव को राम मनोहर लोहिया अस्पताल में रखा गया था। सूचना मिलने के बाद वहां उनके परिवारजन भी पहुंच गए थे। बताते हैं कि उन्होंने ही फोन करके राजनीतिक दलों के नेताओं को वहां बुलाना शुरू कर दिया। पहले दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पहुंचे। दिल्ली पुलिस ने उन्हें अस्पताल परिसर में जाने से मना कर दिया। पुलिस ने साफ कर दिया कि अस्पताल परिसर और आसपास के क्षेत्र में वह किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधियों की इजाजत नहीं देगी। इसके कुछ देर बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी भारी लाव-लश्कर के साथ जा पहुंचे। वे भी रामकिशन के परिवार से मिलने की जिद पर अड़ गए। इन दोनों नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस नेताओं के निशाने पर कोई और नहीं, सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी थे। ऐसे मुद्दों पर राजनीति करने की बजाय हमारे देश के राजनेताओं को अपनी ओर से समस्या सुलझाने का काम करना चाहिए, लेकिन कांगे्रस और आम आदमी पार्टी ने इस समस्या को उलझाने का ही काम किया है। कांगे्रस ने हमेशा से ही देश में समस्याएं पैदा की और अरविन्द केजरीवाल जनता द्वारा दी गई जिम्मेदारी पर ध्यान देने के बजाय मोदी को कोसने में ही अपने पूरे कार्यकाल को निकाल रहे हैं। केजरीवाल बार बार यही कहते हैं कि मोदीजी हमें काम नहीं करने दे रहे। जबकि वास्तविकता यह है कि आप केजरीवाल स्वयं ही कोई काम करना नहीं चाहते।
दिल्ली के जंतर मंतर पर एक सैनिक के आत्महत्या करने के मामले में कांगे्रस और आम आदमी की ओर से जिस प्रकार की राजनीति की गई, उसे मात्र केन्द्र सरकार का विरोध करने का कदम ही कहा जाएगा। वास्तव में राजनीतिक दलों को कम से कम एक बार इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि कि क्या यह मामला राजनीति करने का है। जिस तरह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच राजनीतिक सुर्खियों में आने की होड़ देखने को मिली वह और भी आश्चर्यजनक है। राहुल गांधी ने जिस प्रकार संवेदनशील स्थान राम मनोहर लोहिया अस्पताल पहुंचकर एक दृश्य उत्पन्न करने की कोशिश की, उससे लगा कि अस्पताल जैसी जगह को राजनीति का क्षेत्र बनाया जाना चाहिए या नहीं, उन्होंने इसका भी ध्यान रखना मुनासिब नहीं समझा। राहुल गांधी की वर्तमान राजनीति केवल और केवल वर्तमान में समाचार की सुर्खियों में जगह पाने की रही है। लेकिन उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि वह कांगे्रस के राष्ट्रीय नेता हैं और एक राष्ट्रीय नेता के नाते उनकी देश के प्रति भी कुछ जिम्मेदारी बनती है।
भिवानी जिले के पूर्व सैनिक रामकिशन के शव को राम मनोहर लोहिया अस्पताल में रखा गया था। सूचना मिलने के बाद वहां उनके परिवारजन भी पहुंच गए थे। बताते हैं कि उन्होंने ही फोन करके राजनीतिक दलों के नेताओं को वहां बुलाना शुरू कर दिया। पहले दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पहुंचे। दिल्ली पुलिस ने उन्हें अस्पताल परिसर में जाने से मना कर दिया। पुलिस ने साफ कर दिया कि अस्पताल परिसर और आसपास के क्षेत्र में वह किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधियों की इजाजत नहीं देगी। इसके कुछ देर बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी भारी लाव-लश्कर के साथ जा पहुंचे। वे भी रामकिशन के परिवार से मिलने की जिद पर अड़ गए। इन दोनों नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस नेताओं के निशाने पर कोई और नहीं, सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी थे।
इस पूरे मामले में कांगे्रस और आम आदमी पार्टी श्रेय लेने के मामले में एक दूसरे से आगे निकलने की प्रतियोगिता में केन्द्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास करते दिखाई दिए। यहां उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि केन्द्र में जब कांगे्रस की सरकार रही, उस समय देश की समस्याओं पर गंभीरता पूर्वक चिंतन करके उसे सुलझाने का प्रयास किया जाता तो संभवत: आज देश की हालत यह नहीं होती। लेकिन कांगे्रस ने कभी भी पूरे मन से देश की समस्याओं को सुलझाने का काम नहीं किया। अगर किया होता तो देश के राजनीतिक परिदृश्य से कांगे्रस का इस प्रकार से विलोपन नहीं होता, जिस प्रकार से लोकसभा के चुनाव में दिखाई दिया। यहां सबसे ज्यादा गौर करने बाली बात यह भी है, आज भी कांगे्रस केवल अपनी स्थिति में सुधार करने का प्रयास करती हुई दिखाई नहीं देती। अभी केन्द्र सरकार द्वारा जिस प्रकार से पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट बंद करने का निर्णय लिया गया। यह निर्णय कांगे्रस को देश की जनता को परेशान करने वाला दिखाई दिया। कांगे्रस को समझना चाहिए कि जनता तो कुछ ही दिनों तक परेशान रहेगी, लेकिन देश का कितना भला होगा।
सैनिक परिवारों में मोदी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से बड़ी संख्या में सैनिक और पूर्व सैनिक हैं। इनमें से तीन राज्यों में चुनाव हैं। विरोधियों को लगता है कि हरियाणा के इस पूर्व सैनिक की आत्महत्या पर हल्ला काटते हुए वे अगर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने में सफल हो गए तो बहुत संभव है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा को सैनिक परिवारों के वोट से हाथ धोना पड़े। इसीलिए यह शर्मनाक सियायत करने की कोशिश की गई है। यह परिपाटी खतरनाक है।
सुरेश हिन्दुस्थानी